‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......
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✍वासुदेव मंगल की कलम से.......

छायाकार - प्रवीण मंगल (फोटो जर्नलिस्‍ट)
मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर
Email - praveenmangal2012@gmail.com

 

 

 

दूसरा सहस्त्राब्दी का सबसे बड़ा काला दिन

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तीसरे विश्वयुद्ध की आहट
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सामयिक लेख: वासुदेव मंगल, ब्यावर
दुनियाँ ने पहले विश्व युद्ध को देखा जो सन् 1914 से 1919 तक लगभग छ साल तक चला। दुनियाँ ने दूसरा विश्व युद्ध भी देखा जो सन् 1939 से 1945 लगभग सात साल चला। इन विश्व युद्ध के परिणाम भी देखे। ये विश्व युद्ध क्यों हुए? ये युद्ध विभिन्न आस पास के देशों में स्थित प्रचुर प्राकृतिक भूगर्भिय, समुद्री, पहाड़ी, मैदानी और जमीनी संसाधनों के दूर-दूर तक फैले होने के कारण हुए। पहला युद्ध हंगरी, बुल्गारिया, रोमानिया से यूरोप के उनके अन्य आस पास के देशों के साथ हुआ था। इस युद्ध में उस समय ब्रिटेन को उपनिवेश भारत की सेना भी ब्रिटेन की तरफ से लड़ी थी जिसमे मगरा ब्यावर के सैनिक भी थे और शहीद भी हुए थे। उनकी स्मृति में एक स्मारक अभी भी चाँदमल मोदी के पार्क मे स्थित है। अतः ब्यावर के शूरवीर मगरा के एक बहादुर कौम है। इस बात को एक सो साल से भी ज्यादा समय हो गया। यह लड़ाई तेल और प्राकृतिक गैस के इन देशों में असमान वितरण और उत्पादन के कारण हुई थी। फिर एक समझौते से युद्ध समाप्त हुआ।
दूसरा विश्व युद्ध प्रथम युद्ध की अनुपालना के समझौता टूटने से हुआ। यह युद्ध भी नाझी सेना और मित्र राष्ट्रों के मध्य हुआ। धुरी राष्ट्र में जर्मनी इटली और जापान एक तरफ और मित्र राष्ट्रों मे कनाड़ा, अमेरीका, ब्रिटेन, फ्रांस और रुस दूसरी तरफ। यह लड़ाई भी प्राकृतिक संसाधन के असमान नियमितीकरण के फलस्वरूप ही भड़का। इस युद्ध में भी ब्यावर के शूरवीर थे। इनके नाम भी उसी स्मारक में उत्कीर्ण किये हुए है। इस युद्ध का परिणाम यह हुआ कि हिटलर को बन्दी बना लिया गया था। जर्मनी की राजधानी बर्लिन शहर के मध्य एक मोटी दिवार बनाकर दो भागों मे बाँट दी। पूर्वी बर्लिन और पश्चिमी अर्थात नाजियों को दो भागों में बांट दिया। इटली का शासक मुसोलिनी भूमिगत हो गया। जापान के शासक ने हथियार डाल दिये थे। इस लड़ाई में भी जापान ने उत्तरी जापान सागर में अमेरिका का एक जंगी जहाज समुद्र में डुबो दिया था जिसके कारण अमेरिका ने जापान के दो नगर हेरोशिमा और नागासाकी शहरों पर छ और नौ अगस्त सन् गुनिसो पैंतालिस में परमाणु बम गिराकर भयंकर उत्पात मचा दिया था। इसके कारण जापान ने पन्द्रह अगरत गुनिसो पैंतालिस मे समर्पण कर दिया। इधर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस टोकियो से मन्चुरिया के डिरेना नगर मे भूमिगत हो गए कारण नेताजी सुभाष ने भी भारत के पूर्वी प्रान्त मणिपुर की गोरों की पहाड़ी पर विजय हासिल कर आजाद हिन्द फौज के मार्फत तिरंगा फहरा दिया था।
परन्तु किस्मत का पासा पल्टा। इसमंे हांलाकि भारत उपनिवेश भी विजय हुआ था और आजाद हिन्दू फौज के सिपाहियों को ब्रितानी सेना ने बन्दी बना लिया था। परन्तु ब्रिटेन की इस युद्ध मे माली हालत जर्जर होने के कारण ब्रिटेन ने भारत को स्वतंत्र करने का मन बना लिया था। इसीलिये तत्कालिन लेबर पार्टी के प्रधानमन्त्री लार्ड एटली ने भारत को स्वतन्त्रता प्रदान कर दी। इसी का परिणाम हुआ कि यूरोप में नोर्थ एंटलाण्टिक ट्रीटी ओरगेनाईजेशन संघ बना जिसके वर्तमान मे बत्तीस सदस्य देश है और इसी का परिणाम हुआ कि अमेरिका की करेन्सी डालर समस्त विश्व में व्यापार की मुद्रा बनी। फिर यूरोपीय डालर का भी चलन हुआ जो प्रचलन में है। अब चूंकि रासिया संघ का विघटन पन्द्रह देश में सन् 1991 में हो गया। यह बात वर्तमान में रूस के शासक को नागवार हुई। परिणामस्वरूप 2008 में रूस ने जॉर्जिया पर आधिपत्य कर लिया और 2014 में फिर पूर्वी उक्रेन के चार प्रान्तों पर आधिपत्य कर लिया। अभी हाल ही में 24 फरवरी सन् 2022 से लगातार फिर से यूक्रेन के दक्षिणी राज्य को फिर लेने के लिये युक्रेन से सीधा युद्ध छेड़ दिया जिसको एक हजार दिन व्यतीत हो गए अब यह युद्ध विश्व युद्ध में बदलने जा रहा है।
लेकिन इस युद्ध में हाल ही में ड्रास्टिक मोड़ यह आया कि तुर्किय अमेरिका और इजराइल एक तरफ हो गए है। इनके साथ यूरोपीय नाटो देश भी है। उधर रूस, ईरान, सीरिया देश, दूसरी तरफ है देखते है यह महायुद्ध अब क्या रूप लेता है? इस बात का बेसब्री से इन्तजार है जो भविष्य के गर्त में है।
इन्तजार करिये और देखिये आगे आगे होता है क्या? हो सकता है यह युद्ध तीसरे विश्व युद्द में बदल जाये कारण रासिया ने अन्य यूरोपीय देशों की तेल की सप्लाई लाईन रोक दी है। इस युद्ध का कारण भी प्राकृतिक तेल और गैस ही होगी ऐसा वातावरण बनता हुआ दिखलाई दे रहा है।
इस राह में रोड़ा हाल ही में उत्तरी गोलार्द्ध के चाईना के ट्रेड ट्रान्सपोर्ट कोरिडोर के साथ ही दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों को जो नया दक्षिणी टेªड ट्रांसपोर्ट कोरिडोर बनने जा रहा है वह भी मुख्य कारण है तथा फिलीस्तिन, अजरबेजान के तेल व प्राकृतिक गैसों के भण्डार भी है। जिनके कारण भी यूरोपीय इस्लाम (मुस्लिम) और ईसाई देशों के सगठनों में परस्पर युद्ध की परम्परागत विभिषिका भी दिखलाई दे रही है अपना अपना अधिकार जमाने की समुद्री मार्ग से व्यापारिक वर्चस्व की।
दो धुव्रीकरण नार्डिक देश नार्वे, स्वीडन, फिनलैंड, अमेरिका बनाम आर्कटिक महासागर मे रसिया एवं अन्य देश इधर मीडिल ईस्ट में अमेरिका, तुर्कये व इजरायल बनाम सीरिया, रूस, ईरान।
अभी तक तो यह युद्ध बायो बेपन अर्थात किटाणु के इन्जेक्शन रूपी हथियार से किटाणुओं को वायुमण्डल में फैलाकर दो साल सन् 2020 व 2021 में करोना बिमारी के नाम से पूरे विश्व को भयभीत कर दिया। अब 2022 से केमिकल वेपन अर्थात वेक्स यानि मोम से बने हथियारों से यह युद्ध दो साल से हो रहा है। इसके साथ स्पेस युद्ध ड्रोन, मिसाईल से, साइबर युद्ध अब तो रोबोटिक युद्ध यानि कृत्रिम सैनिक जो रिमोट से संचालित होते है। इस प्रकार ‘ए आई’ यानि आर्टिफिशियल इंटेलीजेन्सी (कृत्रिम दक्षता) से लड़े जाने वाले युद्ध है। जो रिमोट कण्ट्रोल से लड़े जा रहे है।
अब आखिरी स्टेज युद्ध की है वह न्यूक्लीयर वार है यानि परमाणु युद्ध जिसका हस्र आपने द्वितीय विश्व मे देखा यह है यह है अनन्त काल तक प्रवाहित रूप में प्रज्जवलित होने वाली रेडियेशन ऊर्जा जिससे दुनिया का जीवन खतरे में हो जायेगा।
अतः अब समय आ गया है कि मानव को न्यूक्लीयर ऊष्मा (ऊर्जा) को विकास के कार्यों में काम में लेना चाहिये न कि विनाश के लिए। नहीं तो समस्त मानवजाति का विध्वंस होगा और दुनियां अन्तहीन हो जायेगी।
न्यूक्लीयर वेपन ने दुनिया मे विनाश की स्थिति पैदा कर दी है जिसे यथाशीघ्र समाप्त किया जाना चाहिए। खतरनाक हथियारों के जरिये देशों के मध्य होड़ नहीं होनी चाहिये। इससे तो मानव जाति का अस्तित्व ही खतरे में पड जायेगा। अतः ग्लोबल हयूमिनिटी वेलफेयर डक्ट्रिन से सोचना आवश्यक है न कि ड्रेस्ट्रोय के डाक्ट्रीन से।
लेखक ने दूसरे विश्व युद्ध के विभिषिका के परिणाम तो देख है और आज भी दिव्यांग के रूप में देख रहे है। दिव्यांग प्रजनन उसी का परिणाम है। अतः इस साक्ष्य से मानवजाति को सबक लेना चाहिए और भविष्य में ऐसा कोई काम नही करना चाहिए जो मानवहित के विपरीत हो। आशा है युद्धरत देश विवेक से काम करेंगे।
04.12.2024
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इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker

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