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दूसरा सहस्त्राब्दी का सबसे बड़ा काला दिन
रचनाकार: वासुदेव मंगल
6 अगस्त सन् 1945 को ठीक 8.15 मिनट पर जापान के हिरोशिमा शहर पर परमाणु बम गिराया गया। यह बम अमेरिका के पायलट पाॅल टिब्बस् ने एनोला से हवाई जहाज से गिराया था। इस जहाज में पायलट के अतिरिक्त छ सदस्य ओर थे। 3 फीट चैड़े 10 फीट लम्बे इस परमाणु बम में 20 हजार टन के उच्चकोटि के विस्फोटक थे जिसे 30 हजार फीट की ऊंचाई से गिराया गया हिरोशिमा शहर के बीचों-बीच भीड़भाड़ वाले रिहायशी ईलाके में। दुष्परिणाम यह हुआ कि एक लाख 40 हजार लोगों की मृत्यु हुई। इनमें से 20 प्रतिशत लोग बम विस्फोट से मारे गऐ। 60 प्रतिशत आग और उत्पन्न भंयकर गर्मी के शिकार हुए और 20 प्रतिशत लोग विकीरण से तड़प-तड़पकर हमेशा के लिये सो गऐ। मौत का ताण्डव यहीं खत्म नहीं हुआ। इसके शिकार आज भी मौजूद है जो न तो उस समय पैदा ही हुए थे और न ही होने वाले थे। आज भी उस बम से प्रभावित बच्चे पैदा हो रहे हैं जो या तो लूले-लॅंगडे है या बहरे हैं अथवा हमेशा के लिये अन्धे हैं।
बम का प्रभाव इतना घातक था कि मानव बुरी तरह विकृत हो गये। कईयों का शरीर सलामत रहा तो आॅंखें बाहर निकल गई या धॅंस गयी या नीचे की ओर खिसक गई। किसी की टाॅंगें छाती पर चढ़ गई किसी के हाथ ऊतर गये या शरीर गल गय। हड्डियों में कीडे पड़ गये या कोढ़ हो गया। कईयों की तो झटके के कारण जिभें निकलकर बाहर गिर गई ओर जीवन भर के लिये गूॅंगे हो गये। शरीर पर फोडे़ होना या चमड़ी फट जाना तो लोगों को पदक के रूप में मिला।
आज दिल दहला देने वाली और शरीर के रोंगठे खडे़ कर देने वाली सॅंयुक्त राज्य अमेरिका की इस शर्मनाक घटना को छप्पन साल चार महीने पच्चीस दिन हो गए। परन्तु फिर भी मानव मनुष्य के खून का प्यासा बना हुआ है।
हेरोशिमा पर परमाणु बम गिराने वाला चालक दल
21 वीं सदी में व तीसरी सहस्त्राब्दी की शुभ बेला में कदम रखने पर सारे विश्व की मानवता को यह सॅंकल्प लेना होगा कि आने वाली खूबसुरत सहस्त्राब्दी व शताब्दी समस्त मानवता के कल्याण के लिये एक खूबसुरत ऐसा उपहार हो जिसके क्रियान्वयन से विश्व रूपी मानव की बगीयाॅं रंग-बिरॅंगी फूंलो से खिली हुई प्रतीत हो। सारे विश्व की विज्ञान की उपलब्धि का सकारात्मक उपयोग सारे विश्व की मानव जाति के कल्याण के लिये किया जाना चाहिये न कि उसके विनाश के लिये।
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