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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

22 अप्रेल 2023 को विश्‍व पृथ्वी दिवस पर विशेष
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लेखक : वासुदेव मंगल, ब्यावर
धरती माता के प्रति मानव धर्म को निभाना होगा।
यह दिन हमको पृथ्वी के बारे में सोचने और इसके संरक्षण के लिये कुछ करने को विवश करता है।
हम इस दिन सोचने के लिये मजबूर होते हैं कि विश्व में हरियाली क्यों सूख रही है, पानी क्यों घट रहा है? ग्लेशियर क्यों पिघल रहे हैं ओर तापमान क्यों बढ़ रहा हैं? समुद्र का पानी क्यों उलाचें मार रहा है? क्यों आँधीं और तूफान आ रहे है? गर्मी के मौसम में भी पहाड़ों पर बर्फ क्यों जम रही हैं? जंगलों में आग क्यों लग रही है?
प्रकृति क्यों विकराल होती जा रही हैं? मौसम और ऋतुएँ समय से पहीले क्यों बदल रही है? नदियाँ अपना रास्ता क्यों बदल रही है? पहाड़ टूट कर क्यों गिर रहे है।
लेखक स्वयं 80 साल के हैं। स्वयं ने कई प्रकार के जमाने देखे हैं अच्छे से अच्छा जमाना भी बीसवीं सदी पचास के दशक का देखा है और खराब से खराब जमाना भी आज तीस के दशक इक्कीसवीं सदी का भी देख रहे है।
ऐसा क्यों हो रहा है यह स्वयं में उत्तरित है। चिंतन करने से इसका उत्तर मिल जाता है।
आज के अस्सी साल पहीले सीधा सादा जमाना था। आज आवश्यकताएँ और इच्छाएँ और तृष्णाएँ दुनियां भर की हो गई मनुष्य की।
उस समय मानवता सर्वोपरी हुआ करती थी। पैसा दूसरे नम्बर पर माना जाता था।
आज जमाना बदल गया है। पैसा ही भगवान हो गया हैं। मानवता नाम की चीज नहीं रह गई हैं। सारे रिश्ते-सम्बन्ध गौण हो गए। इस परिधि में ही प्रकृति हो गई। प्रकृति की भी कोई मार्यादा नहीं रह गई है।
भौतिकता के चकाचौंध में मानव भी दास हो गया हैं उस जमाने में सादा जीवन उच्च विचार हुआ करता था। अतः प्राणी सन्तुष्ट था। लेकिन मशीनीकरण के युग में मनुष्य मशीनों का गुलाम हो गया है।
विज्ञान ने जितनी तरक्की की उसने प्रकृति पर धापकर कुठाराघात किया।
इसका कारण हमारे सामने है। गाड़ियों का धुआँ, कल कारखानों का धुआँ दम घोटू घुँआ प्रदुषण का कारण बन गया। इसकी विषैली गैस ने ही अनेक प्रकार की घातक बिमारियाँ पैदा कर दी। शरीर से वर्जिश नहीं करने पर कई तरह के राजरोगों ने जन्म ले लिया। विशैलापन मिलावट खोरी ने शरीर को जर्जर कर दिया।
पहीले ग्रहणियाँ कुँओं से पानी लाती थी। घट्टी चलाती थी। पुरूष लोग भी खेत खलिहान, मार्केट, दुकान, नौकरी इत्यादि की वजिर्श करते थे। सार काम दिन रात हाथ पैरों की वर्जिश से होते थे। लेखक के अपने विचार है।
धीरे-धीरे साईकिल आटो गाड़ी हो गई। हाथ पैरों की वर्जिश खतम हो गई। अब डाक्टर सब से पहीले शाम सवेरे घूमन की सलाह देते है।
बाद में कल कारखानों ने इन्फ्रास्ट्रक्चर आधारभूत कल कारखाने चालू हो गए जैसे सिमेण्ट, कोयला उद्योग इत्यादि पेड़ों की अन्धा धून्ध कटाई ने पर्यावरण का प्राकृतिक चक्र्र खतम कर दिया अर्थात् आक्सीजन प्रायः समाप्त कर दी। पेड़ों से ही आक्सीजन मिलती हैं जिससे जीव सांस लेता हैं उसमें भी बैक्ट्रीया के किटाणुओं ने जगह ले ली जिससे पिछले तीन सालों से समझदार देशों की सरकारों ने कोरोना का नाम देकर जनता को भ्रम में रख छोड़ा है। मरने के लिये। अतः वायुमण्डल में कार्बन ही कार्बन हो गया जिससे धरती तप रही हैं जीव घूट घूट कर मर रहे है। इसी प्रकार पहाड़ों को काटा जा रहा है जिससे नमी खतम हो रही है। जंगलों को काटा जा रहा हैं
इसी प्रकार नदी-नाले, झिल, बावड़ियों, तालाबों को उजाड़ा जा रहा है। कहने का तात्पर्य यह है कि प्रकृति के चक्र को खतम करने से यह सारी समस्या उत्पन्न हो गई है।
रही सही प्लास्टिक ने पूरी कर दी।
अतः यह समस्या मानव निर्मित समस्या हैं प्रकृति के सन्तुलन को यदि फिर से दुरूस्त कर दिया जाता है तो पुनः एक बार यह वायुमण्डल ही फिर पर्यावरणीय हो जावेगा और मनुष्य फिर से आनन्द के हिलोरे और अनुभूति ले सकेगा।
आज विश्व पृथ्वी दिवस पर हम सबको यह सोचकर चलने की जरूरत है कि क्यों मनुष्य चलता चलता या फिर खड़ा खड़ा या फिर बैठा बैठा स्वर्ग सिधार जाता है? इस बात का सीधा सा जवाब यही है कि आज मनुष्य ने प्रकृति की कृत्रिम दिवार बना दी है जिससे यह सब समस्या पैदा हुई है।
आज हम सबको मिलकर प्रकृति के इस असंतुलन को दूर करने का संकल्प लेना होगा तब ही जाकर यह विकट समस्या दूर हो सकेगी। अपित् नहीं तो यह संकट दिनों दिन और ज्यादा गहराता जायेगा जिसका भविष्य में कोई समाधान नहीं है।
स्वस्थ्य प्रद विश्व की शुभकामनाओं के साथ। सभी सुखी रहे स्वस्थ्य रहे। इसी थीम के साथ पहला सुख निरोगी काया और, दूसरा सुख पास में हो माया। लेखक की विश्व पृथ्वी दिवस पर ढेरों शुभकामनाओं के साथ।
 

इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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