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स्वतन्त्र भारत के सजग प्रहरी
डाक्टर श्यामाप्रसाद मुखर्जी

1901-1953
रचनाकारः वासुदेव मंगल


श्यामा प्रशाद मुखर्जी का जन्म आशुतोष मुखोपाध्याय कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के घर सन् 1901 ई. में हुआ था। श्यामाप्रशाद मुखर्जी भी अपने पिता की भाॅंति सर्वतोमुखी प्रतिभा के धनी थे। 
शिक्षा समाप्त होने पर श्यामाप्रशाद मुखर्जी सन् 1923 ई में कलकत्ता विश्वविद्यालय के सदस्य चुने गये। सन् 1933 ई. में आप ईसी विश्वविद्यालय के उपकुलपति नियुक्त किये गये। इतनी कम उम् में इस पद पर वे ही नियुक्त हुए थे। सन् 1929 ई. में ही वे बॅंगाल की धारा सभा के सदस्य भी चुन लिये गये थे।
उन दिनों बॅंगाल में मूुस्लिम लीग का जोर था। काॅंगे्रस की नीति मुसलमानों को सन्तुष्ट करने की थी। इसका फल यह हो रहा था बहुसॅंख्यक होकर भी हिन्दू जाति उपेषित हो गई। श्री श्यामा प्रशाद मुखर्जी एक नैष्ठिक हिन्दू थे। उनसे यह उपेक्षा सहन नहीं हुई। सन् 1939 ई. में, उन्होेंने हिन्दू महासभा में सक्रिय भाग लेना प्रारम्भ किया। वे उसके उपसभापति चुन लिये गये। बॅंगाल में उनके प्रभाव से वातावरण ही बदल गया।। बॅंगाल के मुस्लिम प्रधानमन्त्री ने उनके प्रभाव के आगे सिर झुकाया। श्री श्यामाप्रशाद मुखर्जी वित्त मन्त्री बनाये गये। 
जब महात्मा गाॅंधी ने सन् 1942 ई. में भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ किया और बॅंगाल के गवर्नर ने मन्त्रीमण्डल से बिना पूछे ही, वहाॅं पर दमन प्रारम्भ कर दिया तो श्यामा प्रशाद मुखर्जी ने, मन्त्री मण्डल से त्यागपत्र दे दिया। 
भारतवर्ष के 15 अगस्त सन् 1947 को स्वतन्त्र होने पर वे, केन्द्रिय सरकार के उद्योग मन्त्री बनाये गये, लेकिन पूर्वी बंगाल में, सन् 1950 ई. में, जब हिन्दुओं पर सामूहिक अत्याचार होने लगे और उनको निर्वासित करने का षड़यन्त्र पाकिस्तान सरकार ने किया और नेहरू लियाकत समझौता, श्यामाप्रशादजी को, अत्यन्त अनुचित जान पड़ा। उनका मत था कि इस समझौते से, भारत का कोई लाभ नहीं हुआ। इसके विपरीत, पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दूओं को वॅंहा के गुण्डों की दया पर छोड़ दिया गया। इस समझौते के फलस्वरूप, श्यामाप्रशाद जी के नेहरूजी से मतभेद हो गये। अतएव मुखर्जी ने अपने पद से त्याग पत्र दे दिया। 
21 अक्टूबर, सन् 1950 ई. में ही, उन्होंने दिल्ली में ही भारतीय जनसॅंघ की नींव डाली। दो वर्ष बाद में, कानपुर में, जनसंघ का पहीला अधिवेशन हुआ। इस अधिवेशन ने यह प्रकट कर दिया कि, इतने अल्पकाल में, यह सॅंस्था, कितनी लोकप्रिय बन गई है।
काश्मीर में शेख अब्दुल्लाह सरकार, वहाॅ के हिन्दूओं पर, अत्याचार कर रही थी। जनसंध ने काश्मीर में, सत्याग्रह करने का निश्चय किया। सत्याग्रह प्रारम्भ होते ही, सरकारी अत्याचार और भी बढ़ गया। अन्त में, काश्मीर की स्थिति जानने के लिये, श्यामाप्रशाद मुखर्जी ने, स्ॅंवय वहाॅं पर जाने का निश्चय किया। काश्मीर सरकार नहीं चाहती थीं कि वे वॅहा जाय किन्तु प्रत्येक संकट का सामना करने का निश्चय करके, वे वहाॅ गये। काश्मीर सीमा में प्रवेश करते ही, उन्हें गिरफ्तार करके, जम्मू जेल में भेज दिया गया।
जेल में श्यामाप्रशाद मुखर्जी बीमार हो गये और समुचित चिकित्सा के अभाव में यह हिन्दू जागरण का उद्दीप्त प्रकाश, जेल में ही, 22 जून सन् 1953 ई. की संध्या को, अब्दुल्ला सरकार के अत्याचार की भेंट हो गया। 

डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की शिक्षा
हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तान। यहीं हमारा लक्ष्य महान्।।
हो जागृत फिर हिन्दू जाति। फैले पुनः जगत में ख्याति।।
पुनः प्रतिष्ठित हो ऋषि धर्म। करें सभी शुचि सुन्दर कर्म।।
हिन्दू नहीं अबल, असहाय। हिन्दू नहीं कभी निरूपाय।।
है हममें प्रतिभा अभिराम। शौर्य जागता बल उद्दाम।।
करें पूर्व पुरूषों का ध्यान। हो अपने गौरव का भान।।
भारतवर्ष हमारा देश। सजे देशहित हम गणवेश।।
त्यागें भेदभाव हों एक। रखे धर्म, मर्यादा टेक।।
बने प्रताप, शिवा आदर्श। साध्य हमारा धर्मोत्कर्ष।।
लक्ष्य हमारा सदा महान्। सदा सहायक है भगवान।।


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