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चिर शान्ति का प्रतीक - मुक्तिधाम   
रचनाकार:- वासुदेव मंगल 


  
मानव मार्ग से भटक जाने से दुखी होता है। मार्ग से भटकेगा नहीं तो उसे जीवन में कभी भी दुखी नहीं होना पड़ेगा। मानव की सुखशान्ति स्वयं में ही निहित है। स्वंय में ध्यान लगा लिया जाये तो शान्ति स्वतः ही प्राप्त हो जायेगी। दूसरों की बुराईयाॅं जितनी देखगें उतना ही कष्ट अधिक होगा। स्वयं की बुराइयाॅं देखें और उन्हें दूर करने का पर्यतन करें तभी वास्तविक शान्ति पा सकेगें। दूसरों के दुखों को जितना ज्यादा देखेगेे व उनके दुखों को ज्यादा से ज्यादा दूर करने का प्रयत्न करेगें तो उसमें हमको चिरशान्ति मिलेगी जो ही सच्चा सुख होगा। इसी श्रृखंला में ब्यावर का मुक्तिधाम एक सौपान है एक कड़ी का काम करती है।



  
यूँ तो संसार में अपार धन है जिसे पाने कि लालसा मानव को लगी रहती है। परन्तु यह वह मार्ग है जिसपर चलकर मानव दुखी हो जाता है। संसार में पाँच दोष्। माने गये है। काम, क्रोध, लोभ, मोह और मद जिसमें मानव भटक कर दुखी होता है। 
  
मुक्ति-धाम वह स्थान है जहाँ मानव का नश्वर शरीर आकर जो पंचभूतों का बना होता है अपनी जीवनलीला समाप्त कर अन्त में उन्ही पाँच तत्वों में यानि अग्नि, पानी, हवा, आकाश और जमीन में मिल जाता है अर्थात पाॅंच दोषों के बन्धन से मुक्त हो जाता है। 
  
इस स्थान पर आकार अन्तिम संस्कार में आने वाले सभी मनुष्य के मन में अचानक अपने जीवनकाल के दोषों की रेखाऐं उनके मस्तिष्क में बराबर उठने लगती हैं और जीवन के कल्याण की बात उद्धेव्लित होती रहती है जिससे उसके बाकी का सारा जीवन कल्याण मय हो और उस प्राणी को आवागमन के बन्धन से छुटकारा मिल सके। इस बात की प्ररेणा प्राणी को यहाँ मुक्ति-धाम पर आकर मिलती है जो एक वैराग्यनुमा वातावरण होता है। 


  
मानव यदि क्रोध, मान और द्वेष का त्याग कर-त्याग, वात्सल्य व सद्भावना का मार्ग अपनाऐं तो उसे चिरशान्ति मिलती है जिसका पाठ वह इस स्थान पर मुक्ति-धाम से प्राप्त कर सकता है। 
  
ब्यावर का मुक्ति-धाम तारीफ करने लायक है। वास्तव में हिन्दू सेवा मण्ड़ल ट्रस्ट का यह अनूठा प्रयास है जिसमें नगर के सभी हिन्दू, सिख, जैन धर्मावलम्बीयों का सक्रिय व आर्थिक सहयोग प्राप्त हो रहा है। राजस्थान के लिऐ ही नहीं वरन् देश के लिए ब्यावर का मूक्तिधाम अध्यात्म की एक जीती-जागती अनोखी मिसाल है व साथ में पर्यटन स्थल भी है। इसका अनुसरण दूसरे शहर वालों को भी करना चाहिऐ। सुन्दर-सुन्दर मन भावन रंग-बिरंगे फूलों से सजी क्यारियाँ, खुले घास के मैदान, बैठने के सुन्दर बगीचें, पीने के लिए शीतल शुद्ध जल, स्नान के लिऐ समुचित गरम व ठण्डे पानी की व्यवस्था, शिवालय, आध्यात्मिक वाचनालय, एवं मन को प्रफुल्लित करने वाले अन्य घटक यहाँ इस मुक्ति-धाम पर मौजूद है जो काबिले तारीफ है वास्तव में हिन्दू सेवा मण्ड़ल साधूवाद का पात्र है जिसके अनूठे प्रयास से यह कार्य रूप में परणित हुआ है।

  
यहाॅं पर बनाये गये तमाम निर्माण वैज्ञानिक एवं सुनियोजित ढंग से किये गये हैं जो बरबस मानव मन को शान्ति प्रदान करने हेतु स्वतः ही अपनी और आकर्षित कर लेते हैं। स्नान प्रागण में मिश्रीलाल गोध्र्।नलाल द्वारा सूरम्य वाचनालय का निर्माण कराया गया हैं। बलदेवदास पूरणमल द्वारा शिवालय का निर्माण कराया गया हैं। दो अलग-अलग स्नानाघार एक मर्दाना एवं दूसरा जनाना जिनमें 50-50 नल एक साथ लगे हुऐ हैं। अन्तिम संस्कार के पश्चात व्यक्ति एक साथ स्नान कर सकते हैं इस प्रकार अन्तिम संस्कार के लिऐ लकड़ी की भी व्यवस्था माकूल की गई हैं। इसके लिऐ प्रागण में ही लकडी की टाल अलग से बनायी गई हैं जहाॅं पर चैबीस घण्टे लकड़ी उपलब्ध रहती है। आथ्र्थ्‍ दृष्टि से कमजोर व्यक्ति के लिऐ निशुल्क लकड़ी की व्यवस्था भी यहाॅं पर की गई है। मुक्ति-धाम के चारों ओर दिवार बनाई गई है। जिसमें सुन्दर-सुन्दर कलात्मक गमलों बेलों से सुसज्जित हरे-हरे घास के उद्यान है जिसमें मनमोहक बेल-बूटें, रंग-बिरगें फूलोें की छठा दृष्टिगोचर होती है। बैठन के यह उद्यान मानव-मन को शान्ति प्रदान करते है। दिवंगत प्राणी तो मानो पाॅचो दोष से मुक्त होकर पंचभूत में मिल जाता है। जिसकी मात्र स्मृति ही रह जाती है और रह जाता उसके जीवन का इतिहास इस संसार में जो औंरो के लिए मार्गदर्शन बन जाता हैं। वास्तव में पर्यावरण का ब्यावर का मुक्ति-धाम एक आदर्श नमूना है। प्राणी अपनी कमाई का सही सदूपयोग इस स्थल के विकास के लिए कर अपने को गोरान्वित महसूस करता हैं। इसके अतिरिक्त दिवंगत प्राणी की अन्तयेष्टि होने तक सुन्दर-सुन्दर भजन की मधुर-वाणी चलती रहती है। जिससे शव-यात्रा में सम्मिलित प्राणीयों के मन एवं मस्तिष्क में प्रभु के प्रति आसक्ति पैदा होती हैं और कुछ समय के लिए मन भौतिक दोषों से मुक्त होने की चाह रखने लगता है कई प्राणी तो दुर व्यस्नों को त्यागने का प्रण ले लेते हैं और अपने भावी-जीवन को सफल बना लेते है।

 
इस स्थल के और विकास के लिए दानदाताओं की होड़ लगी हुई है। लेखक स्वयं हिन्दू सेवा मण्ड़ल का आजीवन सदस्य हैं तथा इसके विकास हेतु मण्ड़ल कार्य कारिणी को समय-समय पर अपने अनुभवी सुझाव से वाकिफ कराते रहते है। इस श्रंखला के अन्तरगत अगली कड़ी में धार्मिक देवताओं की प्रतिमाऐं स्थापित करने की योजना विचाराधीन है जो स्थान अभाव के कारण स्नानाघर प्रागण के प्रथम तल पर निर्माण कर स्थापित की जाने की योजना हैं।

 

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