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31 जुलाई को मोहनलाल सुखाड़िया की 100वीं वर्षगांठ पर विशेष

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वासुदेव मंगल की कलम से........


स्वतन्त्र भारत में देषी रियासतों का केन्द्र राजपूताना सन् 1950ई. में राजस्थान राज्य कहलाने लगा। राजपूताना के मध्य में अजमेर मेरवाडा पहले अंगे्रजी शासन के अधीन केन्द्र शासित प्रदेष रहा। स्वतन्त्रता प्रांिप्त पर केन्द्रीय भारत सरकार का केन्द्रषासित प्रदेष बना। सन् 1952 ई. में अजमेर मेरवाड़ा भारत देष का स्वतन्त्र राज्य बना।
मोहनलाल सुखाड़िया का जन्म 31 जुलाई सन् 1916ई. को मेवाड रियासत में हुआ था। 
नवम्बर 1954 में वे राजस्थान के मुख्यमंत्री बने। 1 नवम्बर 1956 को अजमेर मेरवाडा को राजस्थान में मिलाया गया। सुखाड़िया, अजमेर और ब्यावर (मेरवाड़ा) के विलेन मुख्यमन्त्री साबित हुए। 
इस बात का स्पष्ट प्रमाण था कि अजमेर मेरवाड़ा राज्य (ब्यावर) को राजस्थान राज्य में 1 नवम्बर सन् 1956 मिलाते वक्त अजमेर को राजस्थान की राजधानी और ब्यावर (मेरवाड़ा) को राजस्थान का जिला घाषित किया जाना था।
लेकिन दुर्भाग्य से लिखना पड़ रहा है कि वे मोहनलाल सुखाड़िया ही उस वक्त राजस्थान के मुख्यमन्त्री थे जो अजमेर और ब्यावर के भविष्य की राजनीति के लिये विलेन सबित हुए जिसका दंष अजमेर और ब्यावर दोनों क्षेत्र आज साठ साल होने पर भी भुगत रहे है। 
हुआ यों कि राज्य पुनर्गठन आयोग और केन्द्र सरकार की समिति की स्पष्ट रिपोर्ट के बावजूद तत्कालिन राजस्थान राज्य के मुख्यमन्त्री श्री सुखाड़ियाजी ने इन रिर्पोटों को दर किनार करते हुए जबरिया राजहठ द्वारा दोनों क्षेत्रों के साथ ना इन्साफी करते हुए अजमेर को तो राजधानी के स्थान पर जिला और ब्यावर (मेरवाड़ा) को जिले के स्थान पर उपखण्ड बना दिया। कारण, उस वक्त जयपुर महाराज सवाई मानसिंह द्वितीय राजस्थान के राजप्रमुख थे जो किसी भी सूरत में जयपुर को ही राजस्थान राज्य की राजधानी बरकरार रखना चाहते थे। अतः जयपुर महाराज को खुष रखने के लिये परोक्षरूप से श्री सुखाड़ियाजी ने यह कार्यवाही की। 
अगर उस वक्त ब्यावर (मेरवाड़ा) श्री बृजमोहनलालजी शर्मा और अजमेर के श्री हरिभाऊजी उपाध्याय इस कार्यवाही का विरोध करते तो निष्चय ही आज अजमेर और ब्यावर की तस्वीर कुछ ओर ही होती। लेकिन इन दोनों को राजस्थान मन्त्री मण्डल में मन्त्री बना दिये जाने के कारण दोनो चुप रहे। जबकि श्री सुखाड़ियाजी का विवाह तो इन्दुबाला के साथ ब्यावर शहर में ही सम्पन्न हुआ था। फिर भी सुखाड़ियाजी ने कूट राजनीति को ही सर्वोपरि समझा रिष्ते को नहीं। 
सन् 1967 के चुनाव में सुखाड़ियाजी ने एक ओर कूटनीतिक चाल चली। उस समय स्वतन्त्र पार्टी बहुमत में होने से महारावल डूंगरपुर राजस्थान के मुख्यमन्त्री बन रहे थे तब सुखाड़ियाजी ने जयपुर में गोलियां चलवाकर अषान्ति के कारण राजस्थान में राष्ट्रपति शासन लगवा दिया। एक महीने बाद शान्ति स्थापित हो जाने पर जोड़ तोड़ करके अपना बहुमत साबित कर पुनः मुख्यमन्त्री बन गए। 
सन् 1967 के चुनाव के पश्चात् विरोधी पक्ष द्वारा राजस्थान हाई कोर्ट में केस दायर किया गया। लेकिन सुखाडियाजी के द्वारा तथ्यों के विपरीत नहीं बोलने से केस हार गए। 17 वर्ष के इनके शासनकाल में सन् 1954 से 1667 तक ब्यावर के तीन विधायक क्रमषः श्री बृजमोहनलालजी शर्मा 1957 के चुनाव में कांग्रेस से, श्री स्वामी कुमारानन्द कम्युनिस्ट पार्टी से 1962 के चुनाव में और मेजर फतेहसिंह स्वतन्त्र पार्टी से 1967 के चुनाव में ब्यावर से विधायक चुने गए। 
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