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 अब समय आ गया है कि ब्यावर को जिला बनाया जाये

क्रान्तिकारी लेख

ब्यावर शहर के इतिहासकार - वासुदेव मंगल, ब्यावर

छायाकारः- प्रवीण मंगल, ब्यावर

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ब्यावर का इतिहास 294 साल पुराना है। आरम्भ से ही यह छोटी मध्यम बडी पहाडियों से आच्छादित प्रदेश रहा है। कहीं घाटी, कहीं जंगल, कहीं मैदान के कारण यह क्षेत्र मेरवाडा बफर स्टेट के नाम से जाना जाता हैं। यह एक अपवाद है।

आरम्भक काल से अर्थात् 1725 ई. से पूर्व यहां पर मेर जाति निवास करती आई है जिसमें मुख्य रावत और मेरात हैं। सन् 1725 ईं. से इस क्षेत्र में बाहरी सल्तनतों ने आक्रमण करना आरम्भ कर दिया। अतः इस मेर जाति ने बड़ी बहादुरी के साथ नो-दस लड़ाई में उनका बराबर मुकाबला किया।

अन्त में दंसवी बार की अंगे्रजों के साथ हुई लड़ाई में इनकी हार हुई। अतः इस क्षेत्र में 1823ई. में अंगे्रजी हुकुमत ने मारवाड़, मेवाड़ और मेरवाड़ा प्र्रदेश पर नजर रखने के लिये बी-अवेयरके नाम से कर्नल हैनरीहाल के सरफरान में एक केन्द्रिय फौजी छावनी बनाई। कालान्तर में जिसको बोलचाल की भाषा में ब्यावर के नाम से जाना जाता है।

मेर जाति ने जिसमें रावत और मेरात कौम शामिल है ने इस मेरवाड़ा क्षेत्र में 1725 में जयपुर की सेना से पहली लड़ाई लड़ी। दूसरी लड़ाई 1754 में मेवाड की सेना से लड़ी।  फिर मारवाड की सेना से। इसके बाद अजमेर की मराठा सेना से व आखिर में नसीराबाद की अंगे्रजी फौज से लड़ाई सन् 1819 में लड़ी श्यामगढ़, झाक, लूलवा गांवों में। सन् 1823 ई. में बोरवा व अथून गांवों पर भी कब्जा सेन्दड़ा, रामगढ़, सराधना गांवों के साथ साथ कर लिया। इस प्रकार बरार, बदनोर (बदनपुर), नया शहर, मसूदा, कोट किराणा, बरसावाड़ा (टाटगढ़), भीम (मण्डला), चांग इत्यादि गांवों पर अंगे्रजी हुकूमत का अधिकार हो गया।

इस प्रकार उत्तर में नरवर से लेकर दक्षिण में दिवेर गांव तक अंगे्रजी हुकूमत कायम हो गई।

अतः मेरवाडा स्टेट की सीमा उत्तर में नरवर, दक्षिण में दिवरे, पूरब में बघेरा और पश्चिम में बबाईचा है। इस प्रकार एक अंगे्रजी वफर स्टेट कायम हुआ जिसका नाम मेरवाडा बफर स्टेट रखा गया। इस स्टेट में अंगे्रजों द्वारा विजित 31 गांव। मेवाड़ से 99 साल की लीज पर लिये गए 32 गांव और मारवाड़ से 21 गांव। कुल 84 गांवों का समूह मेरवाड़ा बफर स्टेट कहलाया। इस स्टेट का गठन कर्नल जार्ज चाल्स डिक्सन ने किया जो मेरवाड़ा बफर स्टेट कहलाया। बफर का मतलब स्वतन्त्र राज्य से है। अतः मेरवाड़ा बफर स्टेट नई अंगे्रजी रियासत बनी जिसका मुख्यालय ब्यावर शहर को बनाया गया जहां पर प्रशासन की सभी सुविधाऐं सुलभ करायी गई जैसे समस्त प्रशासनिक कार्यालय इत्यादि।

कालान्तर में यह मेरवाड़ा स्टेट ही विभाजित कर वर्तमान में 1 नवम्बर 1956 में उपखण्ड बनाया गया जो पुरातन अतीत में मेरवाड़ा स्टेट था।

मेरवाड़ा स्टेट में उस समय सात तहसीलें होती थी। ब्यावर, मसूदा, बिजयनगर, बदनोर, टाटगढ़, भीम और आबू बाद में आबू गुजरात में जोड़ दिया गया। पुनः राजस्थान में जोड़ने पर सिरोही जिले की तहसील बनी इसी प्रकार हमारी राजस्थान की हुकूमत ने मेरवाड़ा स्टेट को तोडकर भीम तहसील को उदयपुर जिले में व बदनोर तहसील को भीलवाडा जिले में जबरिया जोड दिया गया 1 नवम्बर 1956 को। इस प्रकार मेरवाड़ा स्टेट जो ब्यावर के नाम से अंगे्रजी सल्तनत के द्वारा 1835-40 में कायम की गई थी और जो 121 साल से अस्थित्व में थीं 31 अक्टूबर 1956 तक को टुकडे कर ब्यावर उपखण्ड 1 नवम्बर 1956 को बना दिया गया।

यह सब काम सोची समझी गई रणनीति के तहत् तत्कालिन स्थानीय व राजस्तरीय राजनैतिक पेरोकारों द्वारा की गई ताकि अंगे्रजी सल्तनत की स्वतन्त्र जल, जंगल और जमीन का दोहन नौकाशाही, जनप्रतिनिधि और सभी प्रकार के माफियों के द्वारा तब से लेकर अब तक खुदगर्जी के लिए किया जाता रहा है। ब्यावर क्षेत्र की भोली भाली जनता के साथ कैसा भद्दा मजाक, आर्थिक, राजनैतिक व सामाजिक शोषण आज तक किया जा रहा है।

इसकी वजह एक ही रही है कि 19 सामन्तशाही (रजवाडे-रियासतों), तीन ठिकानों के साथ साथ एक अजमेर मेरवाड़ा स्वतन्त्र (बफर) स्टेट था।

इसका कारण यह था कि अजमेर भी स्वतन्त्र अंगे्रजी राज्य था और मेरवाड़ा भी अंगे्रजी स्वतन्त्र राज्य था जिसको तत्कालीन ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने सन् 1852  में अजमेर राज्य को मेरवाड राज्य के साथ जोड़कर इसका नामकरण अजमेर मेरवाडा कर दिया था। लेकिन इन दोनों राज्यों की कार्यप्रणाली अलग अलग थी अर्थात दोनो ही अलग अलग कमीश्नरों के द्वारा संचालित थे। बाद में ब्रिटिश क्राउन ने भी इसी व्यवस्था (सिस्टम) को बरकरार रखा।

26 जनवरी 1950 से अन्त में अजमेर मेरवाड़ा राज्य स्वतन्त्र भारत देश का 14वां राज्य बना। इसके विधायीका, मन्त्रीमण्डल सब अलग थे।

राज्य पून्र्गठन के वक्त छोटे राज्य को बड़े राज्य में समाहित करने के लिए पून्र्गठन आयोग की सिफारिश पर यह माना गया (सर्व सम्मति से यह स्वीकारोक्ति हुई थी) कि अजमेर मेरवाड़ा छोटे स्वतन्त्र राज्य को राजस्थान में मिलाते वक्त अजमेर को राजस्थान की राजधानी और मेरवाड़ा अर्थात ब्यावर को जो अंगे्रज के द्वारा बसाया गया था को जिला बनाया जायेगा।

परन्तु अजमेर को राजधानी के स्थान पर जिला बना दिया लेकिन मेरवाड़ स्टेट को ब्यावर जिला न बनाकर ब्यावर उपखण्ड बना दिया जानबूझकर, इसलिये कि अंगे्रज के द्वारा बसाया हुआ मेरवाड़ा स्टेट था। जिला बनेगा तो जल, जंगल, जमीन की बंदरबांट नहीं होगी।

अगर उपखण्ड बनाया जायेगा तो मन मर्जी से राजतंत्र द्वारा जल, जंगल, जमीन की जो अंगे्रजों के जाने के बाद फ्री होल्ड है कि मन मर्जी मुआफिक ब्यावर होते हुए भी नया नगर के नाम से जमीन का इस्तेमाल हो रहा है पिछले 62 वर्षों से जबसे  1 नवम्बर 1956 को इसे मेरवाड़ा प्रदेश को राजस्थान में मिलाया गया है ब्यावर उपखण्ड के नाम से जिसका क्षेत्रफल 1750 वर्गमिल है लेकिन जमीन का सारा काम आज भी नया नगर के नाम से ही हो रहा है।

यह खामी तो राज्य सरकार की व्यवस्था की है जिसको तुरन्त प्रभाव से राजस्व विभाग में सरकार को अपने स्तर पर चुस्त दूरस्त तुरन्त प्रभाव से अधिसूचना जारी करके करना चाहिए। इसमें मेरवाड़ा की जनता का क्या कसूर हैं। नया नगर नाम की जगह ब्यावर नाम राजस्व रिकार्ड में अधिसूचना के द्वारा राज्य सरकार को तुरन्त करना चाहिए ताकि आगे के सभी जमीनी काम ब्यावर के नाम से किये जा सके,  न कि नया नगर के नाम से।

हमारी सरकार हमारी जनता का शोषण पिछले 62 वर्षों से कर रही है। अभी भी सरकार के सिर पर जूँ तक नहीं रेंग रही है। वाह रे सुशासन! इससे बढ़कर और क्या राम राज्य आयेगा? सत्ता सुख भोगने समस्त का तब से लेकर अब 62 वर्षों तक जनप्रतिनिधियों, माफियाओं और नौकरशाही द्वारा।

बंदरबांट बहुत हो चुकी। अब सरकार के पास दो विकल्प है। पहिला अब तो 1 नवम्बर 1956 के स्टेटस को बहाल करते हुए राजस्थान सरकार को तुरन्त प्रभाव से इसको जिला घोषित करना चाहिए। वर्तमान में 1 नवम्बर 1956 को उपखण्ड बनाते वक्त जो व्यवस्था सरकार द्वारा की गई थी वह सभी मानदण्ड वर्तमान में जिले के लिए उपयुक्त है। मसलन 365-400 तक राजस्व गांव, 72 - 75 ग्राम पंचायतें, करीब 4-5 लाख जनसंख्या, इतना ही पशुधन, 10-12 थाने, करीब 2 पंचायत समीतियां, 4-5 तहसीले, 3 उपखण्ड आदि आदि।

 

इस प्रकार अतः प्रस्तावित ब्यावर जिले में पहिला विकल्पः-

1.            तीन उपखण्ड - ब्यावर, मसूदा, टाटगढ़ 

2.            चार तहसीले - ब्यावर, मसूदा, बिजयनगर, टाटगढ

3.            दो पंचायत समीति - जवाजा और मसूदा

4.            72-75 ग्रांम पंचायत - 36 जवाजा की और 36 मसूदा की

5.            360-365 राजस्व गांव - 216 जवाजा के 149 मसूदा के

6.            करीब 4-4/5 लाख आबादी

7.            10-12 थाने

8.            करीब 5 लाख पशुधन

दूसरा विकल्प:-

इससे ज्यादा और भी अपगे्रड करें तो रायपुर, जैतारण व बदनौर को भी प्रस्तावित ब्यावर जिले में सम्मिलित कर सकते है क्योंकि इन तहसीलों उपखण्डों के जनता की ब्यावर जिले में मिलने की स्वीकारोक्ति है।

अतः सरकार पर कोई अतिरिक्त आर्थिक बोझ नहीं पडेगा।

मात्र जिले की घोषणा 1 नवम्बर 1956 के या 31 अक्टूबर 1956 के मेरवाड़ा स्टेट के स्टेटस को बहाल करते हुए की जानी है। 31 अक्टूबर 1956 को मेरवाड़ा स्टेट में आबे, भीम, बदनौर तहसीले थी। परन्तु अब भीम और टाटगढ़ सौ किलीमीटर दूर होने की वजह से रायपुर, जैतारण व बदनौर को प्रस्तावित ब्यावर जिले में शामिल किया जा सकता है क्योंकि इनकी दूरी ब्यावर से क्रमशः 37, 45, 40 किलोमीटर दूर है।

अब ब्यावर क्षेत्र की जनता जागरूक हो चुकी है। ब्यावर क्षेत्र की जनता को सरकार द्वारा अब और अधिक बवकूफ नहीं बनाया जा सकता है। जनता सब समझती है। 62 वर्षो से सरकार की अतिशयता यानि राजहठ बहुत बुरा है।

अब तो परिवर्तन का दौर है। जो राज स्वयं ही समझ जाय व सम्भल जाय तो ठीक है नहीं तो जनता तो माकूल परिवर्तन मांगती है। राज नहीं करेगा तो जनता स्वयं ही परिवर्तन कर देगी।  

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