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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

जलवायु परिवर्तन एक भयानक खतरा
सामयिक लेख : वासुदेव मंगल स्वतन्त्र लेखक

बदलते मौसम की मार से प्रकृति के साथ-साथ मनुष्य के जीवन का कोई भी पहलू अछूता नहीं बचा हैं। मनुष्य का भोजन, रहन-सहन, स्वास्थ्य तथा खेती भी गम्भीर रूप से प्रभावित हुई है।
खेती के उत्पादन में आ रही कमी, भूमि के बन्जर होने की गति में हो रही बढ़ोत्तरी तथा सूखा इस बात के प्रत्यक्ष प्रमाण है।
खेतों में खडी फसलें सूखती हुई दिख रहीं है। तापमान में असंतुलन से मनुष्य में संक्रमण फैल रहा हैं बाढ़, तूफान जैसी आपदाओं में बेहताशा बढ़ोत्तरी हो रही हैं तापमान में बढ़ोत्तर होने से ग्लेशियर में उचित मात्रा में बर्फ जमा नहीं हो पाती है। इसका सीधा प्रभाव जल संकट होता है।
इन बर्फ के ग्लेशियरों के कारण ही गंगा जमुना, सिन्ध नदियों के साथ-साथ हजारों पहाड़, झरनों और छोट-छोटी नदियों को भरपूर पानी मिल पाता है। इस पानी से सिंचाई सम्भव हो पाती है और पीने का पानी उपलब्ध होता हैं।
सेहत, आपदाओं या खेती से जुडे़ हुए तमाम मामलों में मौसम में हुए बदलाव से मनुष्य का जीवन चक्र प्रभावित हुआ है।
शोध से यह स्पष्ट हो गया है एन्टी बायोटिक रेजिस्टेन्ट बैक्टीरिया से हमारा स्वास्थ्य बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है।
इसमें सीवेज जो एन्टी रेजिस्टेन्ट बैक्टीरिया का अहम स्त्रोत है। बढ़ती हुई आबादी, बाढ़, सूखा, भीड़-भाड़ वाले ईलाकों में सीवर ओवर फलो के बढ़ते मामलों में बैक्टरिया में म्यूटेशन बढ़ता है। ऐसा अस्वछता के कारण होता है। बच्चों में इस तरह के बैक्टीरिया संक्रमण का खतरा दिनो दिन बढ़ रहा है क्योंकि इस तरह के सूक्षम जीवों में रेजिस्टेन्ट तेजी से पैदा होता हैं
पर्यावरण में बढ़ता प्रदुषण और प्रदूषित कण इस एन्टीबायोटिक रेजिस्टेन्ट जीन बढ़ाने में और बैक्टीरिया में म्युटेशन बढ़ाने में अपनी सक्रियता से दवाओं का असर कम करने में सहायक होते है।
मनुष्य के संक्रमण रोगों में ज्यादातर प्रतिशत मामलों में जलवायु परिवर्तन से फैलना अहम कारण है।
निपाह वायरस भी तो जंगली स्तनधारी जानवरों से मानव में फैलने का मुख्य कारण हैं।
स्वच्छता, उन्नत चिकित्सा सुविधा और सन्तुलित जीवन शैली ही इन आपदाओं में बचाव से सहायक हो सकती है।
शोध से यह स्पष्ट हो गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण चक्रवात की घटनाओं में बढ़ोत्तरी की आशंका बलवत हो रही है। समुद्र के बढ़ते जल-स्तर और जलवायु परिवर्तन के कारण अगले दशकों में तटीय ईलाकों में भीषण चक्रवात और तूफान की घटनाओं के बीच में समय का अन्तराल कम होता जायेगा।
अतः सरकार को सीवेज कार्य बड़ी ही सावधानी से कराये जाने चाहिये। सीवेज कार्य की लापरवाही मानव जन की हानि का मुख्य कारण होता हैं अतः इस कार्य को सहज में न लेकर बड़ा सुक्ष्म सावधानी से सम्पन्न कराना चाहिये। नहीं तो सरकार का यह अमृतकाल विषकाल बन जायेगा जिसकी हानि की पूर्ति होना सम्भव नहीं हो सकेगा। अतः सभी सरकारां को ऐसे कार्य को हल्के में नहीं लेना चाहिये।
प्रदूषण के और भी कई कारण हो सकते है। जैसे प्लास्टिक का इस्तेमाल कर फैंक दिया जाना भी खतरनाक प्रदूषण हैं। वन जंगलों की कटाई करना भी प्राकृतिक जीवन चक्र का सीधा असर यह होता है कि आक्सीजन की कमी हो जाना और कार्बन का फैलते जाने से वायुमण्डल में तापमान लगातार बढ़ता रहता है। नतीजा खतरनाक बिमारियों का फैलना।
अतः स्वच्छ वायु, स्वच्छ जल और स्वच्छ अन्न ही स्वास्थ्य के लिये आवश्यक है। इस बात का ध्यान प्रत्येक नागरिक को, प्रत्येक व्यक्ति को रखना होगा। सीवेज ओवर फलो न हो इस बात का विशेष ध्यान रखना जरूरी है।
 

 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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