14 सितम्बर राष्ट्रभाषा हिन्दी दिवस पर
विशेष
वासुदेव मंगल की कलम से........
राष्ट्र भाषा हिन्दी के उन्ननयन के लिये हम प्रतिवर्ष 14 सितम्बर को पूरे देष में हिन्दी दिवस मनाते है।
यह एक विडम्बना ही कही जायेगी कि आज भी कई गिने चुने संस्थानों में अंग्रेजी माध्यम भाषा के रूप में ही प्रचलित है। जैसे उच्च न्यायालय, उच्चत्तम न्यायालय, इंजिनियरिंग कालेज, मेडीकल कॉलेज इत्यादि।
यह देष का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि एक तरफ तो हम विषुद्ध हिन्दी भाषा में काम करने को प्रोत्साहन हेतु हिन्दी दिवस की सार्थकता मानते है। और दूसरी तरफ हिन्दी को हेय भाषा मानकर उससे परहेज करते है।
वर्तमान में इलेक्ट्रोनिक तकनीक, कम्प्यूटर, इन्टरनेट मषीनीकरण का जमाना है। अब तो रोबोट मषीनें मानव की जगह मन्यूअल वर्क करने लगी है।
अतः अंग्रेजी भाषा का हिन्दी में रूपान्तरण आसानी से किया जा सकता है। इसमें कहीं किसी प्रकार की कठिनाई नहीं होगी। वर्जन, मैमोरी, कनेक्टीविटी सब काम सम्भव है।
हमारे देष में निचले स्तर पर स्कूलों और कॉलेजों में विषेषकर हिन्दी भाषी राज्यों में आज भी पढ़ाई बच्चों को हिन्दी भाषा के माध्यम से ही कराई जाती है। परेषानी तब आती है। जब ये ही बालक उच्चत्तर माध्यमिक स्तर की पढ़ाई कर तकनिकी कॉलेजों में दाखिला लेते है और अचानक उनको अंग्रेजी भाषा के माध्यम से पढाई मजबूरी में करनी पड़ती है क्योंकि वहां पर उन संस्थानों में हिन्दी भाषा के माध्यम से पढ़ाई करने कराने का विकल्प नहीं होता है।
अतः ये होनहार बच्चे तब अपनी प्रतिभा में पिछड़ जाते है जो उच्चतर माध्यमिक स्तर पर हिन्दी भाषा के माध्यम से पढ़ाई कर उच्चत्तम प्रतिषत अंक प्राप्त करते है। लेकिन यहां आकर वे हताष निराष हो जाते है। अतः भारत सरकार को चाहिये कि आज हिन्दी दिवस पर इस विषय पर वह दिल से मनन कर बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने से अपने आपको रोके। अतः ऐसे संस्थानों में हिन्दी में सारा काम होना चाहिये। यह समय का तकाजा है।
इसी प्रकार जब निचली अदालतों में हिन्दी में काम होता है तो आज हिन्दी दिवस पर प्रयोग के तौर पर ही सही उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय में भी हिन्दी भाषा के माध्यम से काम करवाना आरम्भ करें। धीरे धीरे यह अभ्यास गति पकड लेगा। तब यह तरीका जो कठिन लग रहा है आसान हो जायेगा।
यह समय की पुकार है और देष उन्ननयन का रास्ता भी है।
आईये आज हम हिन्दी दिवस पर हिन्दुस्तान के तमाम कॉलेजों में और संस्थानों में हिन्दी भाषा में पढ़ाई करने और कराने व हिन्दी भाषा में काम करने व कराने का संकल्प लेवें। हिन्दी का विभाग नहीं मन्त्रालय भी होना चाहिये जो सब कार्यालयों, षिक्षण संस्थाओं में हिन्दी में काम करने की लगातार मॉनिटरिंग करें इसी प्रकार समस्त न्यायालयों में भी हिन्दी में काम करने को प्रोत्साहन देना चाहिये।
अब सरकार की यह दोहरी नीति नहीं चलेगी। मात्र हिन्दी दिवस पर हिन्दी भाषा को आयेजन कर इतिश्री करली जाती हैं बाकी 364 दिनों में हिन्दी के चलन पर कोई फोकस नहीं किया जाता है।
सरकार एक तरफ तो विदेषी भाषा अंग्रेजी का बायकाट करती है और दूसरी तरफ अनेक संस्थानों में अंग्रेजी को प्रोत्साहन देती है। यह परिपाटी देष के लिये घातक है।
आज के दिन आवष्यकता है जिन संस्थानों में न्यायालयों मे सरकारी कार्यालयों में और षिक्षण संस्थाओं में चाहे विद्यालय हो, कॉलेज हो, तकनीकी कॉलेज हो, मेड़ीकल कॉलेज हो, लॉ कॉलेज हो, विष्वविद्यालय हो और कोचिंग संस्थान हो यहां पर हिन्दी भाषा के माध्यम से पढ़ाई नहीं कराई जाती हो या फिर हिन्दी भाषा के माध्यम से काम नहीं किया जाता हो उन स्थानों पर हिन्दी भाषा को प्रोत्साहन दिया जाय।
आज के 141 साल पहीले क्रान्तिकारी सन्यासी ऋषि दयानन्द सरस्वती ने सन् 1875ई. में ही षंखनाद किया था कि भारत भारतवासियों का है और हिन्दी इसकी राष्ट्रभाषा है। अतः वह हिन्दी के प्रबलतम पक्षधर थे। इसी प्रकार भारतेन्दु हरिषचन्द्र भी हिन्दी के प्रबलतम पक्षधर थे।
अतः कौषल पहलू को बच्चों में प्रतिभा उजागर करने का हिन्दी ही श्रेष्ठतम भाषा और माध्यम है। जिसको तुरन्त प्रभाव से लागू किया जाना चाहिये जहां पर यह फेक्टर लागू नहीं है वहां पर उन संस्थानों में।
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