ब्यावर मंे शिक्षा का प्रथम चरण  
रचनाकारः वासुदेव मंगल
 
 
ब्यावर की स्थापना के पश्चात 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में शिक्षा का प्रचार प्रसार आरम्भ हो चुका था। ब्यावर नगर शुरू से ही भिन्न भिन्न धर्मावलम्बियों का नगर रहा है। यहाॅं हिन्दू, मुसलिम, सिक्ख, ईसाई, आर्यसमाज, जैन धर्मों के लोगों द्वारा अलग अलग स्कूल चलाये गये जो कालान्तर में क्रमोन्नत होकर महाविद्यालयों का रूप ने चुके हैं।
सबसे पहिले कर्नल डिक्सन ने ब्यावर मंे सन् 1850 ईं. में वर्नाक्यूलर प्राइमरी स्कूल की स्थापना की जो वर्तमान में चम्पालालजी की स्कूल, सरावगी मोहल्ले में थी। कालान्तर में यह स्कूल म्यूनिसिपल द्वारा अधिग्रहीत कर ली गई थी। इसीलिए यह स्कूल म्यूनिसिपल हाॅलेण्ड स्कूल कहलाई और आज पटेल स्कूल के नाम से जानी जाती है। उस वक्त इस स्कूल में कक्षा चार तक की पढ़ाई कराई जाती थी। आरम्भ में उर्दू और अंगे्रजी भाषा ही पढ़ाई जाती थी। बाद में, इस स्कूल में महाजनी की पढ़ाई भी कराई जाने लगी।
सन् 1860 में दी यूनाईटेड प्रेसबिटेरियन चर्च आॅफ स्काटलैण्ड द्वारा रेवरेण्ड डा. विलियम शूलबे्रड के नेतृत्व में ईसाई मिशनरी का प्रचार प्रसार ब्यावर और इसके आस पास के गाॅंवों में किया जाने लगा। इसी श्रृंखला के अन्तर्गत सन् 1860 में डिग्गी मौहल्ले में एक मिशन स्कूल की स्थापना की गई। वर्तमान में इस स्थान पर डिग्गी मौहल्ले में श्रीमूलचन्दजी पहाडि़या व जगन्ननाथजी शर्मा आदि के मकान है। बाद में यह स्कूल अपने निजी परिसर में सन् 1872 से लगातार चलाया जा रहा है। यह परिसर चर्च के पास टेगरी पर बना हुआ है। प्रारम्भ में यह स्कूल प्राथमिक स्तर पर ही चलाया गया था। बाद में इसको माध्यमिक स्तर तक का क्रमोन्नत कर दिया गया। यह शिलशिला बीसवीं सदी के प्रथम दशक तक चलता रहा। बाद में इस स्कूल को क्रमावनत कर दिया गया।
चूकिं यह काल धर्म जागरण काल था। अतः सभी धर्मो के धर्माचार्य अपने अपने धर्म के प्रचार प्रसार के अन्तर्गत राजपूताना में भी शिक्षण संस्थाओं की स्थापना करने पर जोर देते रहे। परिणामस्वरूप अलग अलग धर्मों के लोगों ने स्कूलों की स्थापना करना आरम्भ कर दिया। इसी सिलसिले में सन 1881 के सितम्बर माह में क्रान्तिकारी सन्यासी महर्षि दयानन्द भी ब्यावर में पधारे उन्होने ब्यावर में शिक्षा की जरूरत पर जोर दिया था जो उस समय वक्त की पूकार थी। विशेषकर स्त्री शिक्षा पर ज्यादा जोर दिया।
सन् 1904 में स्वामी प्रकाशानन्दजी सनातन धर्म का प्रचार प्रसार करते हुऐ ब्यावर पधारे। उनकी प्ररेणा से बाॅकें बिहारी के मन्दिर, सूनारों की गली में सनातन धर्म प्रकाशक संस्कृत पाठशाला आरम्भ की गई जो कालान्तर में विनोदीलालजी भार्गव के मकान तेजाचैक में स्थानान्तरित कर दी गई। यह परिसर वर्तमान में लोढ़ा मार्केट कहलाता है। इस परिसर से यह पाठशाला नवरंगरायजी के नोहरे डिग्गी मौहल्ले में स्थानान्तरित की गई। सन् 1910 में सनातन धर्म सभा द्वारा एक नये भवन का निर्माण राठीजी की हवेली के सामने कर दिया गया। तब से यह पाठशाला इस परिसर में चलाई जा रही है जो आज संस्कृत महाविद्यालय का रूप ले चुकी है। इस परिसर में सनातन धर्म प्रकाशक राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय भी साथ साथ चलाया जा रहा है। इसके अतिरिक्त सनातन धर्म राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की एक शाखा देलवाड़ा रोड़ पर भी चलाई जा रही है। इसके अतिरिक्त गिब्सन होस्टल परिसर में सनातन धर्म पब्लिक स्कूल भी चलाया जा रहा है। टाटगढ़ रोड़ पर सनातन धर्म राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय चलाया जा रहा है। सनातन धर्म काॅलेज सन् 1931 में आरम्भ किया गया। जहाॅ पर इंटरकाॅमर्श की पढ़ाई कराई जाती रही है। यह महाविद्यालय उस वक्त राजपूताना में वाणिज्य संकाय में एक मात्र महाविद्यालय था। यहाॅं पर राजपूताना की सभी रियासतों से विद्यार्थी अध्ययन करने के लिये आते थे। यह महाविद्यालय सन् 1954 में स्नातकस्तर पर क्रमोन्नत कर दिया गया। तत्पश्चात् सन् 1956 में इस महाविद्यालय को स्नातकोत्तर स्तर पर क्रमोन्नत कर दिया गया। तब से इस महाविद्यालय में तीनों संकायों में स्नातकोत्तर स्तर तक की पढ़ाई कराई जाती है।
स्वामी दयानन्द सरस्वती की प्ररेणा से नन्दरामजी स्वर्णकार के छोटे भाई की पत्नि श्रीमति गोदावरीबाई ने विक्रम सं. 1970 यानी सन् 1912 ई. में गोदावरी प्राईमरी कन्या विद्यालय की स्थापना आर्य समाज गली मंे की। जबसे यह विद्यालय लगातार आज भी चलाया जा रहा है। कालान्तर में यह विद्यालय क्रमोन्न्त कर दिया गया। सन् 1976 में इस विद्यालय ने डी ए वी कन्या महाविद्यालय का रूप गृहण कर लिया। इस प्रकार गोदावरी कन्या विद्यालय व डी ए वी बालिका महाविद्यालय पास पास में अलग अलग परिसर में वर्तमान में चलाये जा रहे हैं। वर्तमान आर्य समाज मन्दिर परिसर का शिलान्यास तत्कालीन भामाशाह सेठ दामोदरदास जी राठी ने सन् 1911 में किया। यहीं गोदावरी स्कूल के पास सन् 1976 में बैंक के नोहरे में कन्या महाविद्यालय का नया परिसर बनवाया गया।
सन् 1920 में ब्यावर में बालिका शिक्षण संस्था के अभाव की पूर्ति तत्कालीन एक्ट्ा असिसटेन्ट कमिश्नर श्रीबृजजीवनलालजी व श्रीसोहनलालजी शर्मा आॅनरेरी मजिस्टे्र्ट ने एक सोसाईटी के अन्र्तगत, न्यू काॅटन वूल पे्रस स्टेशन के श्रीमोतीलालजी चैखाणी की तरफ से, डिग्गी मौहल्ले के चैराहे पर एक परिसर का निर्माण करवाकर एक कन्या पाठशाला सोसाईटी गल्र्स स्कूल के नाम से आरम्भ की। वर्तमान में यह विद्यालय क्रमोन्नत होकर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के रूप में चलाया जा रहा है। सन् 1959 में राज्य सरकार ने सैय्यद के मजार के पास छावनी रोड़ पर नया भवन बनवाकर दिया। यहाॅं पर भी वर्तमान में राजकीय बालिका उच्चतर माध्यमिक विद्यालय चलाया जा रहा है।
सन् 1920 में शान्ति जैन प्राईमेरी स्कूल, पपलिया बाजार में, सेठ धूलचन्द कालूराम कांकरिया के मकान के समीप उनके द्वारा स्कूल परिसर बनाकर, अक्षय तृतीया के रोज आरम्भ किया गया। यह विद्यालय भी वर्तमान में उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के स्तर पर चलाया जा रहा है। इसी प्रकार जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा टाटगढ़ रोड़ पर चार मील के पत्थर पर जैन गुरूकूल स्कूल की स्थापना की गई। यह विद्यालय भी वर्तमान में राजकीय उच्चतर माध्यमिक स्तर पर चलाया जा रहा है। सन् 1996 को नेहरू नगर में जैन धर्मावलम्बियों द्वारा एक भव्य परिसर का निर्माण कर वर्धमान कन्या महाविद्यालय आरम्भ किया गया। इस प्रकार अलग अलग धर्म के लोगों द्वारा अलग अलग समय में अलग अलग स्कूल व कालेज स्थापित किये गये।
इसी तरह सिक्ख पंथ द्वारा स्टेशन के प्रेस के पास गुरूद्वारा स्कूल चलाया जा रहा है। इसी प्रकार सेठ चम्पालाल रामस्वरूप की नसिया में ऐलक पन्नालाल स्कूल चलाया जा रहा है। यह स्कूल बाद सेदगम्बर जैन पंचायती नसिया प्रागंण में चलाया जा रहा है। वर्तमान में यह विद्यालय उच्च माध्यमिक स्तर पर चलाया जा रहा है। 

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