रचनाकारः वासुदेव मंगल
सेठ चम्पालालजी उदारमन, मानवसेवी धर्मात्मा पुरूष थे। धर्म और संस्कृति
के प्रचार हेतु आपने नगर के बाहर अजमेरी गेट के निकट दाहिनी ओर एक
विशाल नसियां का निर्माण विक्रम संवत् 1948 यानी ईसवीं सन् 1892 में
कराया जो वर्तमान ईसवीं सन् २०२३ में 131 साल पुरानी स्थापत्य कला का
ब्यावर में बेजोड़ नमूना है। सेठजी की नसिया परिसर में मन्दिर के
अतिरिक्त साधु सन्तों के स्मारक, साधु-आवास, त्यागी आश्रम का समुचित
प्रबन्ध किया गया। भगवान नेमीनाथ के मंदिर के गर्भगृह में
स्वर्णचित्रित की गई वेदियां है। मुख्य वेदी पर भगवान नेमीनाथ की भव्य
प्रतिमा वीतराग का सन्देश प्रदान करती है। यह अतिशयकारी आकर्षक मूर्ति
मानी जाती है। स्वर्णनिर्मित वेदी की नक्काशी उत्कृष्ट कला का निर्देशन
है। उस पर स्वर्ण कलष की पच्चीकारी और इटेलियन टाईल्स् के फर्श ने उनकी
शोभा को चतुर्गुणित कर दिया है। मुख्य वेदी के उभय पाश्र्व में स्थित
वेदियों में अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी एवं द्वितीय तीर्थंकर
भगवान अजितनाथ की भव्य प्रतिमाएॅं विराजमान् है। मन्दिर के बाहर विशाल
चैक के पाश्र्व भाग में स्थित एक कक्ष में रत्नमयी बहुमूल्य प्रतिमाएॅं
स्थापित की गई है। इस नसियां में श्रावकों साधु-सन्तों के आवास का
उत्तम प्रबन्ध है। स्थान की रमणियता व भव्यता साधना के लिये अति अनुकूल
है। नसियां के विशाल भू-भाग में प्रवचन सभाओं एवॅं सार्वजनिक समारोहों
के लिये अनेक प्रांॅगण है। मन्दिर के बाल-प्रॉंगण में एक सुन्दर मान
स्तम्भ का निर्माण भी कराया गया हैं। नसियां में सोने से बना दो मंजिला
बहुत सुन्दर एक रथ एॅंव एक रथ दो घोड़ों का, प्राचीन कला को दर्शाता है।
इसके अतिरिक्त सुन्दर लकड़ी से निर्मित एक कलात्मक ऐरावत हाथी भी है। यह
सुन्दर रथ अनुपम है। नसियां परिसर में अत्याधिक महत्वपूर्ण संस्था श्री
ऐलक पन्नालाल दिगम्बर जैन सरस्वती भवन जिसमें जैन दर्शन एवॅं प्राच्य
विद्या की विधिक-विषयक पाण्डूलिपियों एवं मुद्रित ग्रन्थों का विशाल
भण्डार सुरक्षित है। इस विशाल विद्या मन्दिर की स्थापना 85 वर्ष पूर्व
नसियां में विराजमान् पूज्य ऐलक पन्नालालजी महाराज साहिब की सत्प्रेरणा
से हुई थी। वे तत्कालीन समाज में अत्यन्त प्रभावशाली सन्त थे। उनके
प्रभाव से अनेक शिक्षण संस्थाओं की स्थापना हुई है। आप
मन्त्र-यन्त्र-तन्त्र, आयुर्वेद आदि विषयों के प्रकाण्ड विद्वान थे।
महाराजश्री के आशीर्वाद से रानीवाला परिवार के राय साहिब श्री
मोतीलालजी, तोतालालजी ने एक अत्यन्त भव्य भवन का निर्माण कराया जिसका
सन् 1935 में विधिवत् श्रीगणेश किया गया। इस भवन में अनेक स्थानो से
हस्तलिखित ग्रन्थों के संग्रह धर्मशास्त्र, दर्शनशास्त्र, नीतिशास्त्र,
ज्योतिष सिद्धान्त, आगम, व्याकरण, आयुर्वेद आदि प्राच्य विद्या के अनेक
विषयों पर लगभग दो हजार पाण्डुलिपियों सहित करीब आठ हजार ग्रन्थ उपलब्ध
कराये गये हैं। यहॉं पर उपलब्ध ग्रन्थों के आधार पर भातीय ज्ञान पीठ
द्वारा प्रमाणिक सॅंस्करण प्रकाशित किये गये हैं। अतः इस भवन के
सॅंचालन ट्रस्टी सेठ श्री सज्जन कुमारजी रानीवाला शोधार्थियों के
शोघ-निमित अध्ययन अनुसन्धान के लिये प्राचीन साहित्य की फोटो कॉपी
उपलब्ध करवाते हैं। इस भवन में महत्वपूर्ण चित्रित ग्रन्थ भी उपलब्ध
है। भावों के चित्रांकन का अद्भुत नमूना देखकर दर्शक स्वॅंय भी चित्रमय
सा हो जाता है। श्रीसज्जनकुमारजी इस नसिया परिसर व सरस्वती भवन के रख
रखाव में दिलचस्पी के साथ समर्पित है। अतः शिल्प और प्राचीन साहित्य
विद्या का अदभुत खजाना इस ब्यावर शहर में विद्यमान् है जिसको देखकर एवं
मनन कर बरबस दर्शक एंव पाठक धन्य हो जाता है। सेठ साहिब श्री का भरसक
प्रयास यह ही रहता है कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस साहित्य खजाने से
लाभान्वित हो। इसी कारण जैने धर्म के महान् मुनिराज, आचार्यश्री ने
अपने चार्तुमास एवं प्रवास के लिये इस स्थान को मण्डित किया है जो
निम्न प्रकार है।
चरित्र चक्रवर्ती पूज्य आचार्य श्रीशान्ति सागरजी महाराज दक्षिण
समता स्वाभावी पूज्य आचार्य श्रीशान्ति सागरजी महाराज छाणी
पूज्य आचार्य श्रीशिवसागरजी महाराज
पूज्य आचार्य श्रीविमल सागरजी महाराज
सन्त शिरोमणि पूज्य आचार्य श्रीज्ञानसागरजी महाराज
पूज्य आचार्य श्रीविद्यासागरजी महाराज
राष्ट्रसन्त पूज्य आचार्य श्रीविद्यानन्दजी महाराज
मुनिवर पूज्य आचार्य श्रीकुन्थुसागरजी महाराज
मुनिवर पूज्य आचार्य श्रीसुधर्मसागरजी महाराज
मुनिवर पूज्य आचार्य श्रीसुधासागरजी महाराज
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इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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