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भारतीय स्वतन्त्रता संघर्ष में ब्यावर का योगदान  


रचनाकारः वासुदेव मंगल 

 


वैसे तो ब्यावर का उदय क्षितिज पर 19वीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में ही हो चुका थ्।ा । ब्यावर नगर को सबसे पहले फौजी छावनी के रूप में ही इसके संस्थापक चाल्र्स जैम्स डिक्सन एक फौजी हुक्मरान ने बसाया था । परन्तु इसके चारों तरफ की पृष्ठभूमि पशुपालन की बहुतायत ने तुरन्त छावनी को तिजारती शहर में तब्दील कर दिया, और शनैः शनैः यह ऊन की बड़ी मण्ड़ी बन गई । रूई और कपास की भी मण्डी बन गई । कालान्तर में अंगे्रजों की हुकूमत के कारण 19वीं शताब्दी के उत्तार्द्ध में सन् 1880 में दिल्ली से अहमदाबाद के बीच रेल्वे लाइन बनाये जाने के कारण 19वीं सदी के अन्तिम दशक में यहां काॅटन पे्रस का जाल-सा फेल गया और देखते-देखते 15.20 काॅटन पे्रस लग गये । यातायात की रेल सुविधा सुलभ हो जाने पर यह शहर औद्योगिक और व्यापारिक नगर बन गया । काॅटन पे्रस मे यूनाइटेड, न्यू, वेस्ट पेटेन्ट, हाइड्रोलिक, राजपूताना, मेवाड़ी रायली काॅटन पे्रस प्रमुख थे । इसी तरह सेठ दामोदर दास राठी पोकरण वालों द्धारा दी कृष्णा स्पीनिंग एण्ड वीविंग मिल्स लिमिटेड की स्थापना भी उसी काल में ही कर दी गई थ्।ी । हां, तो अब आरम्भ होता है ब्यावर का मिलेनियम काल । मारवाड़, मेवाड़ की पृष्ठभूमि से लगता ब्यावर शहर आखिरकार मारवाडि़यों का नगर बन गया । शनैः शनैः यहां पर सर्राफा व्यापार भी आरम्भ हो गया । इस प्रकार व्यापार और उद्योगों में उत्तरोतर इजाफा हो रहा था । कई मारवाडि़यों ने अपनी सर्राफा दुकानें आरम्भ कर दी थीं । इस प्रकार ब्यावर नगर का सर्राफा बाजार जिसमें 52 सर्राफा हुआ करते थे, दी तिजारती चैम्बर सर्राफान के आधिपत्य में चलने लगा । इस प्रकार ब्यावर की फौजी छावनी तो नाम मात्र रह गई और तिजारती मण्डी ऊन, रूई और सर्राफा की हो गई । सन् 1909 में ब्यावर में दूसरी टेक्सटाइल मिल्स दी एडवर्ड मिल्स लिमिटेड सेठ चम्पालाल रामस्वरूप ख्।ुर्जा वालों ने लगाई, जो बाद में ‘रानी वाला’ के नाम से जाने जाते रहे हे । उस समय सारे कल-कारखाने क्रूड आॅयल अथवा कोयले से चलते थे । यह काल साथ ही सामाजिक व राजनैतिक जन-जागरण का काल भी थ्।ा । अतः इसी काल में ईसाई मिशनरियों के साथ साथ आर्य समाज, सनातन समाज का प्रादुर्भाव भी हुआ । इसी सन्दर्भ में स्वामी दयानन्द सरस्वती के आगमन से इस क्ष्।ेत्र में उनके उपदेश प्रासंगिक थे । साथ ही साथ स्वामी प्रकाशनन्दजी के आगमन के साथ सनातन धर्म का फैलाव भी आर्य समाज एवं क्रिश्चियनीटी के साथ-साथ शिक्षा जगत में शुरू हुआ , इसी दरम्यान सन् 1911 में नगर परिषद का वर्तमान परिसर बनकर तैयार हो गया था । अब समय था प्रथम विश्व युद्ध का । धुरी राष्ट्र एक तरफ थे, बाकी विश्व दूसरी तरफ था । इसी वक्त भारत में महात्मा गांध्।ी द्धारा सन् 1914 में भारतीय राजनैतिक स्वतंत्रता आन्दोलन की बागडोर संभाल ली गई थी । अजमेर-मेरवाड़ा के ब्यावर नगर ने उस वक्त भी राजपूताना ही नही अपितु सारे भारतवष्र्। में राजनीति में सक्रिय भूमिका अदा की । स्वाधीनता पूर्व ब्यावर अंगे्रजी शासन के अन्तर्गत चीफ कमीश्नरी के अधीन थ्।ा । ब्यावर का राजनैतिक व सामरिक दृष्टि से बड़ा महत्व रहा है । अंग्रेंजों ने समूचे राजस्थान की रियासतों को नियन्त्रण में रखने के उद्देश्य से ही ब्यावर को फौजी मुख्यालय छावनी बनाया था । परिणामस्वरूप राजनैतिक जागृति का श्रीगणेश भ्।ी सर्वप्रथम ब्यावर में ही हुआ । अतः बींसवीं सदी के आरम्भिक काल में ब्यावर राजपूताने का ही नहीं अपितु पूरे भारतवष्र्। की राजनैतिक गतिविधियों का केन्द्र बन गया । दूसरे शब्दों में राजनैतिक गतिविधियों का पथ-प्रदर्शक, सार्वजनिक जीवन, राजनैतिक चेतना, शिक्षा प्रसार, सामाजिक सुधार, सांस्कृति विकास, धार्मिक पुनरूत्थान एवं नवजागरण का सूत्रपात राजस्थान की इस कार्य स्थली ब्यावर से ही हुआ । जब राजपूती रियासतों के राजे-महाराजे, महारावल व महाराणा मध्यकालीन सामन्तवादी चोगे को धारण किये विलासिता व दासता एवं अक्रमण्यता की निन्द्रा में अपनी आत्म गौरव भूले हुए थ्।े, तब ब्यावर आधुूनिकता, वैज्ञानिकता एवं पुर्नजागरण से सम्पादित हो समूचे भारत का मार्गदशर््ान करने के लिए अग्रसर हो रहा था । राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में ब्यावर का अपना विशिष्ट योगदान रहा है । यह राजनैतिक जाग्रति का अग्रदूत रहा है । ब्यावर के शीष्र्।स्थ राजनैतिक कार्यकर्ताओं के निर्माण का श्रेय आर्य समाज को है । इन राजनैतिक कार्यकर्ताओं में प्रताप सिंह बारहठ, खरवा के क्रान्तिकारी राव गोपाल सिंह । स्वामी दयानन्द प्रथम क्रांन्तिकारी सन्यासी थे जिन्होंने घोष्।ित किया ‘भारत भारतीयों का हैं तथा हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है। 
ब्यावर की प्राकृतिक व भौगोलिक रचना क्रान्तिकारियों को शरण देने व प्रशिक्षण्। प्राप्त करने में सहायक सिद्ध हुई। मसूदा के पास श्यामगढ़ के किले में श्री गोपाल सिंह व उनके सहयोगीयों द्वारा एक विपल्वकारी केन्द्र की स्थ्।ापना की गई । ब्यावर पर्वतीय प्रकोष्ठ ने बंगाल, महाराष्ट्र , पंजाब तथा उत्तर प्रदेश के क्रान्तिकारियों की ब्रिटिश सरकार के गुप्तचरों के जाल से रक्षा की । श्री चन्द्रशेखर, श्री भगवती चरण और श्री वासुदेव ने समय-समय पर ब्यावर में ही शरण ली थी । इसी प्रकार सोशलिस्ट रिवोन्यूशनरी आर्मी की ब्यावर शाखा ने सरदार भगतसिंह को यहां शरण दी । बंगाल के स्वामी कुमारानन्द ने ब्यावर को अपनी कार्यस्थली बनाया । इस प्रकार भारत के प्रसिद्ध क्रान्तिकारियों को शरण देने का ब्यावर एक उपयुक्त स्थल सिद्ध हुआ । शस्त्र उपलब्धि का ब्यावर केन्द्र था कारण जागीरदारों के आक्रोश ने ऐसा करने में सहायता की । क्योंकि रियासतों में शस्त्र रखने पर पाबन्दी नहीं थी । ब्यावर क्रान्तिकारियों के लिये वैधानिक वरदान सिद्व हुआ   क्योंकि ब्यावर की सीमायें देशी रियासतों से जुड़ी हुई थीं । अतः ब्रिटिश्। नौकरशाही व पुलिस के दमनचक्र से बचने के लिए क्रान्तिकारी ब्यावर से भागकर देशी रियासतों में चले जाते थे । अतः क्रान्तिकारियों ने ब्यावर को अपना रक्षा कवच माना । ब्यावर क्रान्तिकारियों का मुख्य केन्द्र था । इसी शिविर से क्रान्तिकारी योजनाओं का सृजन, निर्देशन, नियन्त्रण एवं अधीक्षण किया जाता था । ब्यावर के केन्द्र में होने से प्रशिक्षित होकर प्रचक्षु क्रान्तिकारी देश के विभिन्न भागों में भेजे जाते थे । ब्यावर में इनके प्रमुख केन्द्र थे श्यामगढ़ का किला, चिरंजीलाल भगत की व घीसूलाल जाजोदिया की बगीची एवं सेठ दामोदर दास राठी की कृष्णा मिल्स का अतिथि गृह । 
ब्यावर के क्रान्तिकारियों के जीवन पर क्रान्तिकारी साहित्य का सीधा प्रभाव पड़ा । ‘युगान्तर’ व ‘संध्या’ समाचार पत्र भवानी मन्दिर, वर्तमान राजनीति, मुक्ति कानपाथे पुस्तकों का यहां के क्रान्तिकारियों की मनोवृति ढालने में अत्यन्त योगदान रहा । गीता, स्वामी रामतीर्थ के व्याख्यान्, सावरकर का ‘वार आॅफ इण्डीपेन्डेन्स’ अरविन्द का कर्मयोगी, डिग्बी की प्रोस्पेरियस इण्डिया और बंकिम बाबू के आनन्द मठ, माधव श्।ुक्ल की कविताओं ने क्रान्तिकारियों के जीवन में देश्।-भक्ति की भावना का संचार किया । बाहर के क्रान्तिकारियों का ब्यावर के क्रान्तिकारियों पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा । इन क्रान्तिकारियों में श्यामजी कृष्ण्। वर्मा, रास बिहारी बोस, शचीन्द्र सान्याल, अरविन्द घोष, चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, स्वामी कुमारानन्द, विजय सिंह पथिक, अर्जुन लाल सेठी, प्रताप सिंह बारहठ, जी.आर. पाण्डे, रामचन्द्र बापट, सेठ दामोदर दास राठी, सेठ घीसूलाल जाजोदिया, केसरी सिंह बारहठ, राव गोपालसिंह जोरावरसिंह बारहठ, नारायण सिंह, बाबा नृसिंहदास, स्वामी नृसिंहदेव, पण्डित रूद्रदत्त, सूरजसिंह, रामप्रशाद, बालमुकुन्द, रामकरण, वासुदेव एवं रामजीलाल बन्धु । सन् 1907 से 1911 का समय क्रान्तिकारी संगठनों की स्थापना का रहा । ‘वीर भारत सभा’ नामक संस्था की स्थापना सर्वश्री सेठी, बारहठ पथिकजी ने की । जिसके सदस्य कन्हैयालाल आजाद, जगदीश दत्त व्यास, लक्ष्मीनारायण पहलवान, सोमदत्त लहिड़ी, लक्ष्मीलाल लहिड़ी, विष्णु दत्त, मणीलाल दामोदर पण्डि़त ज्वाला प्रसाद, रामसिंह व भूपसिंह आदि स्थानीय क्रान्तिकारी प्रमुख थ्।े । एक अन्य संगठन के प्रमुख राव गोपाल सिंह थे, जिनको फील्ड मार्शल कहा जाता था । सेठ दामोदर दास राठी इस संगठन के कोषाध्यक्ष्। थ्।े व विजय सिंह पथ्।िक इस संगठन के सर्वे-सर्वा थे । बीसवीं श्।ताब्दी के प्रथम चतुर्थांश के अनन्तर ब्यावर में हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिवोन्यूशनरी आर्मी की शाखा की स्थापना की गई। अजमेर मेरवाड़ा के क्रान्तिकारियों ने शिक्षण संस्थओं की ओट में क्रान्ति प्रचार किया। 
बीसवीं सदी के द्वितीय दशक में गांधीजी द्वारा चलाये गये असहयोग आन्दोलन से उदारवादी कांगे्रस की गतिविधियों में शनैः शनैः प्रगति हुई, इसके प्रमुख कार्यकर्ताओं में बैरस्टर गौरीशंकर, श्री श्याम सुन्दर भार्गव व राव साहिब विश्वम्भरनाथ टंडन थे । इनके तत्वावधान में ब्यावर में दो राजनैतिक सम्मेलन हुऐ  जिनका सभापतित्व डाॅ. अन्सारी व पण्डित मोतीलाल नेहरू ने किया था । इन सम्मेलनों में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक व मौलाना शौकत अली उपस्थित थे । अजमेर मेरवाड़ा की राजनीति इन दिनों तीन दलों में विभाजित थी । ‘सेवा संघ’ पहला दल था जिसके प्रधान श्री विजय सिंह पथिक थे । दूसरा दल कांगे्रस का था जिसके प्रधान अर्जुनलाल सेठी थे । तीसरा दल गांधी वादियों का था जिसके प्रमुख सेठ जमनालाल बजाज थे । हरिभाऊ उपाध्याय थे । प्रान्तीय स्तर पर कांगे्रस में गांाधी वादियों की प्रधानता थी । श्री अर्जुन लाल सेठी के विरूद्व श्री हरिभाऊ उपाध्याय अध्यक्ष निर्वाचित हुए । गांधीवादी आन्दोलन ने कृष्।क आन्दोलन तथा सत्याग्रह आन्दोलन पद्वति को जन्म दिया । बाबा नरसिंहदास गांधीवादी विचारधारा के ब्यावर में प्रमुख नेता बन गये । गांधीवादी विचारधारा के प्रचार हेतु हरिभाऊ उपाध्याय ने ‘त्याग-भूमि’ नामक पत्र का प्रकाशन किया तथा हटूण्डी में गांधीवादी आश्रम का निर्माण किया । 16 मार्च 1920 में ब्यावर में खिलाफत समिति की स्थापना की गई । सर्वश्री चान्दकरण शारदा, गौरी शंकर भार्गव, मौलाना मुईनुद्वीन ने ब्यावर में डाॅ. अन्सारी की अध्यक्षता में खिलाफत दिवस मनाया । जगह-जगह सभायें, धरने एवं हड़तालें की गई । विदेशों को भारत से खाद्यान्नों के निर्यात का विरोध किया गया । सरकारी संस्थाओं एवं नौकरियों का बहिष्कार किया गया । विदेशी वस्त्रों की होलियां जलाई गई एवं स्वदेशी वस्तुओं का प्रचार हुआ । सेठ दामोदर दास राठी ने स्वदेशी वस्त्रों के प्रचार हेतु कपड़ा मिल्स की स्थापना की । 1916 के होमरूल आन्दोलन ने अजमेर मेरवाड़ा में कांगे्रस को नया उत्साह बल प्रदान किया । सन् 1929 में अजमेर मेरवाड़ा के सर्वश्री विजयसिंह पथ्।िक , श्।ोभालाल व रामनारायण चैधरी ने राजस्थान का कलकत्ता में नेहरू रिपोर्ट पर सहमति देने हेतु प्रतिनिधित्व किया । 1930 में सविनय अवज्ञा आन्दोलन के नमक सत्याग्रह में ब्यावर से नारी वर्ग ने सक्रिय भूमिका निभाई । सन् 1931 में गांधी-इरविन समझौता विफल होने से सत्याग्रह ने ब्यावर में पुनः उग्र रूप धारण कर लिया। 
सन् 1938 के हरिपुरा कांगे्रस अधिवेशन के बाद रियासतों में प्रजामण्डल स्थापित हुए । अजमेर मेरवाड़ा पुनः रियासती आन्दोलनों का केन्द्र बना । इसका मुख्य उद्देश्य रियासतों में उत्तरदायी शासन की स्थापना करना था । यह आन्दोलन भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का ही एक भाग था । 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के अन्तर्गत भारत की राजनीति में एक नया उत्साह दिखाई देने लगा । फलस्वरूप सभी तत्व चाहे व विप्लववादी हो या अहिंसावादी, एक झण्डे के नीचे आकर स्वतन्त्रता प्राप्ति के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कटिबद्व हो गए।   

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