ब्यावर के 175वें स्थापना दिवस पर विशेष

रचनाकार व प्रस्तुतकर्ता - वासुदेव मंगल


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1 फरवरी सन् 2010 को ब्यावर के शताब्दी-हीरक स्थापना दिवस पर ब्यावर क्षेत्र अथार्त पूर्व मेरवाड़ा-स्टेट व शहर के निवासीयों को कोटी-कोटी बधाई।
प्यारे क्षेत्रवासियों, आज ब्यावर शहर व मेरवाडा-स्टेट के 174 वर्ष पूरे होने पर चिन्तन और मन्थन का समय है। आपको विदित होना चाहिए कि ब्यावर क्षेत्र अथार्त मेरवाडा की स्थापना ही स्टेट के रूप में हुई, और ब्यावर को इस मेरवाड़ा स्टेट का मुख्यालय बनाने हेतू 1 फरवरी सन् 1836 में ब्यावर शहर की आधारशीला रखी गई।
राजपूताना में 18 देशी रियासतों के साथ दो अंग्रेजी राज्य थे। एक अजमेर दूसरा मेरवाड़ा। यहाँ पर मेर जाति के निवास करने के कारण इसको मेरवाड़ा नाम दिया गया। इस जाति में रावत और मेहरात सम्मिलित है, जो आज भी नरवर से लेकर दिवेर तक निवास कर रहे है। मेरवाड़ा स्टेट की सीमा उत्तर में खरवा, दक्षिण दिवेर, पूर्व में बघेरा और पश्चिम में बबाईचा है। 
अतः ब्यावर अंग्रेजी राज्य होने के कारण, उस वक्त अति विकसीत राज्य था। यह प्रत्येक क्षेत्र में विकसित था। उद्योग में बडे मंजले व कूटीर उद्योग। सूती वस्त्रांे की तीन मीलें, बडे उद्योग में - पन्द्रह-बीस काॅटन जिनिंग एवं प्रेसिंग फेक्ट्रिज् मंजोले उद्योग में और कूटीर उद्योग में सूती दरी, रस्सी व रस्सा बनाना, मर्दाना जनाना मौजेडीये बनाना, कपडे़ की रंगाई-छपाई इत्यादि। तत्पश्चात् सूघंनी तम्बाकू बीड़ी कूटीर उद्योग व मौसमी तिलपपड़ी कूटीर उद्योग इसमें और सम्मिलीत हो गये। अंग्रेजी काल में सिचांई और खेती के लिए पीने के पानी हेतू कुंए, बावडी और तालाब की व्यवस्था की गई, जमीन, जौत एवं उत्पादन के विपणन इत्यादि की व्यवस्था की गई।
इसी प्रकार व्यापार में ऊन, रूई व सर्राफा व्यापार में राष्ट्र स्तर की मण्डी रहीं। परन्तु यह सब बातें इतिहास की बात हो गई। अंगे्रजी काल में स्थापना से लेकर सन् 1950 तक सम्पूर्ण विकास था जो प्रगति के शिखर तक विकसीत रहा।
परन्तु स्वतंत्रा प्राप्ति के पश्चात हमारे रहनुमाओं ने कितनी और कैसी प्रगति की है। यह सब आपके और हमारे सामने है। उस समय क्षेत्रवासियों को विभिन्न व्यापार और उद्योग के जरिये रोजगार के सुलभ साधन उपलब्ध थे। 


वर्तमान मेें निराशाभरा जीवन - कारण इस क्षेत्र के व्यापार-उद्योगों को चैपट कर दिया गया। परिणामतः क्षेत्रवासी बेरोजगार हो गये। जिससे तनाव भरी जिन्दगी हो गई। 
आज ब्यावर क्षेत्र को जिला बनाना तो दूर की बात हो गई, उपखण्ड को भी खण्डित कर दिया गया। मेरवाड़ा स्टेट को क्रमशः 1 नवम्बर 1956 व फिर 30 मई सन् 2002 में।
एक सी एम एण्ड एच ओ कार्यालय अर्थात मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य कार्यालय था। वह भी हटा दिया गया। और 4 दिसम्बर सन् 2009 से एक मात्र श्री महालक्ष्मी मील्स् की मशीने भी खोल ली गई है। इसको एक मैदान का रूप दिया जा रहा है, तथा अब क्षय-निवारण केन्द्र अर्थात टी बी क्लिनिक हटाये जाने की बात चल रहीं है।
अंगेजी काल में राजपूताना में सबसे पहिला मदरसा सन् 1850 में, सबसे पहिला चर्च सन् 1860 में, सबसे पहिला प्रिन्टिग पे्रस 1860 में , सबसे पहिली नगरपालिका सन् 1 मई 1867 में व सबसे पहिला अस्पताल सन् 1869 में ब्यावर में ही स्थापित किया गया था जो भारत वर्ष में एक मिसाल है। ये सब ब्यावर को अंगेजी काल की देन है। 
मेरवाडा स्टेट में उस वक्त 84 राजस्व गाँव, 9 दर्र, 24 कीले व 12 कोस की गोलाकार घाटी हुआ करती थी। जो समृद्व व उन्नत प्रदेश था। लेकिन आज वह इतिहास की बात है। 
अतः केन्द्र सरकार द्वारा ब्यावर का विकास तो पुनः मेरवाडा स्टेट बनाकर ही सम्भव हो सकता है, अन्यथा नहीं। क्योंकि मेर जाति आदिवासी (ट्राईवाल जाति) है। जिसका विकास आजादी के 63 साल बाद भी बिल्कुल भी नही हुआ है। 
मेर जाति ने 9 युद्ध किये थे। पहिला जयपुर महाराज से, दूसरा उदयपुर महाराणा से, तीसरा जोधपुर महाराज से फिर जयपुर महाराज से पाँचवा और छठा युद्ध मराठों से, सांतवा, आंठवा और नवा युद्ध अंगे्रजो से किया था। पहिले आंठ युद्ध तो मेरों ने जीते, लेकिन नवा युद्ध मेर जाति हार गयी जिसमें अथूण खाॅन को रामगढ, सेन्दडा रोड पर मार दिया गया व लाखा खाॅन को सराधना सेन्दडा रोड पर पकड लिया गया। तब से सन् 1823 में इस क्षेत्र में अंग्रजों का अधिकार हो गया। 
पर्यावरण की जगह प्रदूषण ने ले ली। बे रोक-टोक खनन् इत्यादि व मिट्टी के कारखानों को स्थापित कराकर, इस क्षेत्र की अकूत-सम्पत्ति बाहर के लोग कमाकर बहार ले जा रहे है और इस क्षेत्र के निवासी लाचार होकर यह नजारा पिछले 30 साल से देख रहे है। परिणामतः घातक बीमारीयाँ फैल गई है, जैसे चर्म रोग, कैंसर, तपैदिक और अस्थमा। उपजाऊ जमीन के स्थान पर बंजर जमीन हो गई, जिससे सब्जी व अनाज का उत्पादन नहीं के बराबर हो गया। इन कारखानों को चलाने के लिए बिजली उत्पादन के लिए पानी की स्थानीय व्यवसायिक खरपतवार से पानी का जमीन में स्तर बहुत निचे चला गया है। जिससे क्षेत्र में पीने के पानी की भारी समस्या उत्पन्न हो गई है। जनसंख्या बढ़ रही है - बेरोजगारी बढ रही है और महगांई सूरसा की तरह मुँह बाहें खड़ी है।
स्थानीय ब्यावर नगरपरिषद परिसर के काल्विन हाॅल को 14 फरवरी सन् 2010 को 100 साल पूरे हो रहे है। वर्तमान में इसको नेहरू भवन के नाम से जाना जाता है। 
इसी प्रकार 3 मार्च सन् 2010 में ब्यावर के नाॅर्दन सूल-बे्रड मेमोरिल चर्च को 150 वर्ष पूरे हो रहें है। परन्तु इसके 100 साल व 150 साल के उत्सव मनाये जाने की इनके प्रबन्धकों में कोई उत्साह दिखलाई नहीं दे रहा है। इसी प्रकार आज 1 फरवरी सन् 2010 को ब्यावर शहर की स्थापना का 175वाँ दिवस है अथार्त इसके भी वर्षपर्यन्त चलने वाले कार्यक्रम स्थानीय शासन-प्रशासन की तरफ से होने चाहिए, जो नहीं हेै। एक साल तो दूर, एक दिन के कार्यक्रम का आयोजन भी नहीं किया जाता है। कैसे जागरूकता आयेगी यहाँ के निवासियों में। 

वासुदेव मंगल
(इतिहासकार एवं लेखक)
1 फरवरी को ब्यावर का शताब्दी हिरक अर्थात 175वें स्थापना दिवस पर गीता कोचिंग सेन्टर व मंगल फोटो स्टुडियो े परिवार की तरफ से ब्यावर क्षेत्रवासियों को हार्दिक बधाई।


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