बैंकों की लाभप्रदत्ता एवॅं उनका सामाजिक दायित्व 

लेखक- वासुदेव मंगल 
  
आज जब दुनियाॅं इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कर चुकी है तो बैकिंग उद्योग को भी आज की बदलती हुई दुनियां में देखना प्रासंगिक ही नहीं अपितु अनिवार्य हो गया हैं । तकनीक के नित नये आयाम व्यापार और उद्योग में जुड़ते जा रहे हैं । परिवर्तन की गति तेजोत्तर होती जा रही है । इस सोच से कि भारतीय बैंक कहीं इस दौर में प्रतिस्पद्र्धा में अन्य देशों के बैंकों से पिछड़ न जाय यह आवश्यक है कि बैंकों को दोहरे मानदण्डों से गुजरना है । लाभ अर्जन के साथ-साथ सामाजिक दायित्वों का वहन भी बैंकों को करना है । सूचना के तीव्रतम माध्यमों ने इस क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन किये हैं । भारतवर्ष एक कृषि प्रधान देश है, यहां की सत्तर प्रतिशत आबादी गाॅंवों में बसती है, साथ ही भारत की तीन चैथाई जनता गरीबी की रेखा के नीचे जीवन बसर कर रही है । बेरोजगारी व तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या विकराल रूप धारण किये हुए है । सरकार का मुख्य दायित्व देशवासियों को रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, चिकित्सा उपलब्ध कराये । साथ ही पानी और बिजली की व्यवस्था भी सुलभ कराये । ये सब सुविधाएॅं देशवासियों को ज्यादा से ज्यादा तभी सुलभ हो सकती है जब सरकार ज्यादा से ज्यादा देशवासियों को रोजगार के साधन उपलब्ध कराये, और चूंकि बैंक अर्थ सम्बन्धी कारोबार करती है इसलिये बैंको पर अधिकतम सामाजिक दायित्व को पूरा करने की जिम्मेवारी है । सरकार तो नीति निर्धारण करती है, परन्तु उन नीतियों को लागू करने का काम बैंकों का है । 
  
आथ्र्।िक दृष्टि से कमजोर तबके को बैंक अपनी शाखाओं और कार्यालयों के माध्यम से आसान किश्तों पर कम ब्याज पर दीर्घकालीन अवधि के ऋण प्रदान कर आमजन की माली हालत में सुधार कर सकती है, लेकिन साथ ही बैंको को यह भी सुनिश्चित करना है कि दिया जाना वाला ऋण कहीं अदत्त सम्पत्तियों में परिवर्तित न हो जाय । उन पर निरन्तर निगाह रखने की आवश्यकता होती है । सामाजिक गतिविधियां हैं जिनकों लाभ अर्जित करने के साथ संचालित कर सकती है जो इस प्रकार हैं:- 
  
1 महिलाओं को वित्तीय सहायता उपलब्ध करानाः- ऐसी महिलाएॅं एवं बालिकाओं को जो अपना स्वयं का रोजगार चलाना चाहती हैं को आसान किश्तों पर सकरार की विभिन्न नीतियों के अन्तर्गत ऋण उपलब्ध करना । जैसे नेहरू रोजगार योजना के अन्तर्गत ऋण उपलब्ध कराना । 
2 विकलांग व्यक्तियों कोः- इसी प्रकार विकलांग व्यक्तियों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कर सामाजिक दायित्व का वहन किया जा सकता है । 
3 शिक्षित बेरोजगार युवक युवतियों को सरकार की भिन्न-भिन्न योजनाओं के अन्तर्गत ऋण उपलब्ध कराकर उनके जीवन स्तर को सुधारा जा सकता है । जैसे प्रधानमन्त्री रोजगार योजना के अन्तर्गत जरूरतमंद व्यक्तियों को ऋण उपलब्ध कराना । 
4 भूतपूर्व रक्षा कर्मचारियो को बैंकों से वित्तीय सहायता उपलब्ध कराकर उनके परिवार हेतु कल्याण कार्य किया जा सकता है । 
5 प्राकृतिक आपदाओं से पीडि़त व्यक्तियों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराकर बैंकें उनके कल्याण में भागीदार बन सकती है । 
  
दूसरा गाॅंवों में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के माध्यम से कृषि ऋण उपलब्ध कराकर सामाजिक दायित्व का निर्वहन किया जाना जैसे कृषि-दीर्घकालिक ऋण जो पशुधन खरीदने हेतु रासायनिक खाद, बीज खरीदने हेतु, नये कुएॅं खुदवाने हेतु अथवा मौजूद कुओं को सिंचाई के लिये पानी हेतु, गहरा करवाने हेतु पम्पसेट अथवा ट्रेक्टर खरीदने हेतु, मुर्गीपालन हेतु, दुधारू पशुओं के डेयरी कार्य करने हेतु । 
  
तीसरा सहाकारी संस्थाओं के माध्यम से सहाकारी बैंक भी इस कार्य में महत्वपूर्ण योगदान कर सकते हैं । जैसे निर्मित उत्पाद को बाजार उपलब्ध करवाना । कच्चे माल को खरीदने के लिये धन देना । कच्चे माल से निर्मित माल बनाने की क्रिया हेतु धन उपलब्ध कराना इत्यादि । 
  
चैथा छोटे उद्योगपतियों को लघु उद्योगो को लगाने के लिये मध्यम दर्जे के अथवा अल्प अवधि के अथवा दीर्धकालीन ऋण उपलब्ध कराना । क्रियाशील पूंजी हेतु ऋण देना आदि । 
  
इसके अतिरिक्त अपरम्परागत समाजोन्मुखी गतिविधियों का निर्वहन करना भी बैंको को धन उपलब्ध कराने के साथ-साथ सामाजिक उत्तरदायित्व होना चाहिय जो इस प्रकार है:- 
  
1 रक्तदान शिविर लगाकर ऐसा किया जा सकता है जिसमें सामाजिक सेवा करने का उद्देश्य निहित होता है । 
2 चिकित्सा शिविर लगाया जाकर समाज के जरूरतमन्द गरीब रोगियों के विभिन्न रोगों की निःशुल्क जाॅंच करवाना तथा उससे सम्बन्धित दवाईयां उपलब्ध करवाना इत्यादि । 
3 पशु चिकित्सा शिविर लगाकर ऐसा किया जा सकता है । 
4 विकलांग व्यक्तियों एवं अनाथों के प्रति चिंता करना भी बैंक का सामाजिक दायित्व है । 
5 प्याऊ लगवाना भी इसी सेवा के अन्तर्गत आता है । 
6 पर्यावरण संस्था को धन से सहायता करना । 
7 प्रौढ़ शिक्षा देने की व्यवस्था करना । 
8 जन-असंक्रमीकरण का कार्य करवा जैसे टीकाकरण इत्यादि, साफ-सफाई का कार्य करवाना । 
9 चैपाल द्धारा किसान सम्मेलन का आयोजन करना । 
10 प्रतियोगी परीखाओं में सर्वोच्च अंक हासिल करने वाले विद्यार्थियो को नगद पुरस्कार अथवा ट्राफियाॅं, शील्ड व अन्य प्रकार के पारितोषिक प्रदान कर उनको प्रोत्साहित करना इत्यादि । 
11 बैंको द्धारा सामाजिक कल्याण हेतु कार्यरत संस्थाओं को वित्तीय सहायता प्रदान कर सामाजिक कार्य सम्पादित किया जा सकता है । 
  
यह तो हुई बैंकों के सामाजिक उत्तरदायित्व की बात । 
  
अब हम वर्णन करते हैं बैंको की समाज के दायित्व का निर्वहन अपने लाभ अर्जन के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए करना चाहिये जो इस प्रकार है:-  
भारतीय बैंक अभी तक आर्थिक प्रगति की दौड़ में पिछड़े हुऐ हैं । आप सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रतिस्पद्र्धा बहुत ज्यादा है और अवसर भी बहुत ज्यादा है । अतः प्रोडक्ट् व सर्विस दोनों ही वैश्विक अर्थव्यवस्था का हिस्सा रहेंगे । सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से हम हमारी बैकिंग सेवाओं को बेहद कुशल तरीके से बेहतर बना सकेंगे । आज, कम्प्यूटरीकरण का जमाना है । इन्टरनेट सर्विसेज का समय हैं । कुशलतापूर्वक ग्राहक को अपनी आकर्षक सेवाओं और मनमोहक व्यवहार के जरिये ही हमारे बैंकिंग उद्योग को लाभप्रदत्ता प्रदान कर सकते है । ऋण व्यवस्था में लचीलापन, उदारीकरण के साथ-साथ यह भी निरन्तर ध्यान रखने की आवश्यकता है कि हमारी खरीद सेवा व बेचान सेवाओं में परस्पर सामंजस्य बना रहना चाहिये । ग्राहक को मांगने पर तुरन्त डाटा उपलब्ध हो जाय इस प्रकार की तकनीक मशीनीकरण ए.टी.एम. सुविधा इत्यादि सुलभ कराई जानी चाहिये । बेहतर सुविधा और सेवा ही हमारी लाभप्रदत्ता को अक्षुण बनाये रख सकती है । 
  
आज के बदलते परिपेक्ष्य में अर्थव्यवस्था पर लचीले ऋण अंकुश के साथ-साथ वैश्विकरण की उदारी नीति को अख्तियार करते हुए बैंकों को कम से कम एन.पी.ए. के नजरिये को ध्यान में रखते हुए सृजनात्मक लाभप्रदत्ता में मानदण्ड अपनाये जाकर कार्य करने होंगे ताकि वे विश्व प्रतिस्पद्र्धा में अपनी अमूल्य सेवाओं के जरिये ठहर सके । 
  
अब समय आ गया है तब हमको अपना मार्केट तैयार करना होगा । बेंकें अनेक होंगी । सरकारी, निजी व विदेशी बैंके । परन्तु स्वस्थ प्रतिस्पद्र्धा अपनाते हुए हमारी सेवाओं के प्रति जन-आकर्षण पैदा कर सके हमारी सेवाओं की गुणवत्ता के आधार पर । यह ही हमारा मुनाफा होगा और यही हमारा लक्ष्य होगा तभी हम सफल हो सकेगें । इसके लिये बैंकों को भ्।ी अपनी नीतियों में समय की पुकार के साथ परिवर्तन करने की सख्त आवश्यकता है तब ही बैंक लाभप्रद रह सकेंगे । जन की आकॅंाक्षाओं के अनुरूप अपने को ढ़ाल सकें तभी हम सार्थक हो सकेंगे । इसके लिये हमारी परिश्रम की लागत को कम से कम करें तब ही लाभ अर्जित कर सकेंगे, ऐसे तरीकों को बैंकों को आने वाले समय में अपनाने होंगे ।

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