‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......
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✍वासुदेव मंगल की कलम से....... |
छायाकार - प्रवीण मंगल (फोटो जर्नलिस्ट)
मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर
Email - praveenmangal2012@gmail.com |
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175वाँ बादशाह - मेला
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फ्रीलान्सर: बादशाह वासुदेव मंगल, ब्यावर
मेले, उत्सव त्यौहार को जीवन्त रखते है। चूंकि भारतवर्ष एक लोकतान्त्रिक,
समाजवाद, धर्म निरपेक्ष देश है। इस देश में विविधता में एकता समाई हुई है।
पूरे देश में विभिन्न धर्म, जाति, प्रान्त व भाषा, वेष-भूषा, रंग-रूप होते
हुए भी एक संस्कृति का वातावरण पूरे देश में व्याप्त है। यह ही इस देश की
महानता हैं।
जहाँ तक ब्यावर के बादशाह मेले का सवाल है तो यह भी अपने आप में एक हर
दिलकश - अजीज का गुलाल का बादशाह मेला है जहां हर कोई आत्मियता स्वरूप
गुलाल से सराबोर होकर आत्मियता का इजहार करता है। तो आईए आज 175वें बादशाह
मेले का वृतान्त स्वयं लेखक छः बार बादशाह बने आपको अपनी जुबानी बता रहे
है।
आगरा के पास फत्तेेहपुर सीकरी में कोई जमाने ये बादशाह अकबर के दरबार में
नवरत्न थे उनमें से एक रत्न थे टोडरमल अगरवाल जो राज के वित्त (फाइनेन्स)
रोकड़ के दरबारी थे। उन्होंने राज को आर्थिक शोचनीय स्थिति से ऊबारा था।
अतएव अकबर बादशाह ने प्रसन्न होकर उनको एक दिन की अपनी बादशाहत प्रदान की
थीं। बस उसी याद में यह मेला ब्यावर शहर में आरम्भ से सन् 1851ई0 से
निरन्तर आयोजित चला आ रहा है। आज यह बादशाह का मन भावन गुलाल का मेला
175वाँ है।
जहां तक ब्यावर मे यह पर्व भरने का प्रश्न है तो इसका उत्तर है कि ब्यावर
को बसाने वाले जहाँपनाह कर्नल डिक्सन ने स्वयं ब्यावर शहरी निवासियों के
फरमान पर इसे 1851 में आरम्भ किया था। हुआ यह कि नया नया शहर बसा था।
आस-पास के ग्रामीण निवासियों के फरमान पर सन् 1840 में उनका तेजाजी महाराज
का मेला आरम्भ किया था। चूंकि मेरवाड़ा स्टेट की सीमा नरवर-दिवेर-बघेरा और
बवाईचा थीं। नरवर तेजाजी महाराज के गांव के पास होने की वजह से यह मेला
ब्यावर में भी शुरू किया गया था। अतः शहरी लोंगों के फरमान पर बादशाह मेला
उन्हीं की बताई थीम पर 1851 में शुरू किया गया अतः ब्यावर के ये दोनों मेले
वर्तमान में भी निरन्तर बडे़ जोश खरोश व उमंग- आस्था के साथ बराबर भरे जा
रहे हैं।
जहां तक लेखक द्वारा बादशाह का अभिनय करने का प्रश्न है तो लेखक भी यह जानना
चाहते थे कि मानवरुपी बादशाह-वजीर में इतनी अद्म्य ताकत देवरुपी कैसे आती
है कि बादशाह का एक हाथ मेले के लाखों हाथों से बादशाह पर उड़ाई जाने वाली
मणों गुलाल लगातार छः घण्टों तक बिना रूके पूरे मेले की समा को कैसे बांधे
रखते है। वश इसी आकांक्षा, ने लेखक को छः बार बादशाह का किरदार वहन करने की
भगवान ने शक्ति प्रदान की और लेखक को 128वाँ, 136वाँ, 137वाँ, 138वाँ,
140वाँ और अन्त में 1991 में 141वाँ मेला अभिनय का अवसर मिला।
जहाँ तक लेखक का अनुभव है तो यह देविक मेला है कि मनुष्य रूपी बादशाह मेें
इतनी अदम्य शक्ति कहाँ से आ जाती हैं कि लगातार दो बाय दो की पालकी में
अस्सी कली के साढे सात किलो वजन के पहने चोगे के साथ लगातार छः घण्टे तक
असंख्य मेलार्थियों की गुलाल का सामना कर लेता है। वास्तव में यह एक जादुई
मेला है। अकबर बादशाह ने स्वयं अपने दरबार की ड्योडी से टोडरमल बादशाह वजीर
की सवारी रवाना की और जब सवारी पूरे शहर की परिक्रमा कर वापिस आई तो सम्मान
स्वरूप उसी बादशाह - सवारी की अगवानी भी अकबर ने स्वयं ने की। जहां तक
बीरबल के बादशाह सवारी के आगे झूमने का सवाल है तो उनका एक साथी बादशाह बना
था। अतः इसी खुशी में बीरवल स्वयं अपनी इच्छा से खुशी का इजहार करते हुए
सवारी के आगे आगे झूमकर नृत्य करते हुए खुशी का इजहार करता हुआ चल रहा था।
जहाँ तक जनता द्वारा बादशाह के हाथों गुलाल प्राप्त करने का प्रश्न है तो
बादशाह के हाथ से मिली गुलाल शकुनी होती है जिसे वह अपनी तिजोरी में रखता
है जिससे उस पर देवी की मांगलीक कृपा बनी रहे।
आखीरकार ब्यावर में भी बादशाह की सवारी वहीं आकर समाप्त होती है जहाँ से यह
आरम्भ हुई थी। तब तक रात्री को 11 बजते है। अतः बादशाह तो अपने ईष्टमित्रों
परिजनों के साथ ढोल के साथ घर जाते है और बीरबल नगर परिक्रमा को निकलते है
जो अगले प्रातः 10-11 बजे तक शहर की परिक्रमा कर अपने घर जाते है।
बीरबल सलामत बादशाह के मुजरा करने रास्ते में उनके घर भी जाते है जहाँ
बादशाह के दरबार में घूमर व मोरिया नृत्य के जरिए मूजरा करते हैं फिर
बादशाह से गुलाले रूपी नजराना लेकर गले मिलकर विदा लेते है। जब तक बादशाह
अपने घर पर बादशाह की ड्रेस में ही रहते हैं और जनता जनार्दन का गुलाल से
अभिवादन करते रहते है। तो यह है ब्यावर का शाही मेला जो अपने आप मे एक अनोखा
मेला है जिसकी यादे मेलार्थी के मानस पटल पर बरसों तक रहती है।
आप सभी को बादशाह वासुदेव मंगल की ढेर सारी शुभकामना। लेखक के रंग हजार
है:- फी्रलान्सर भी है - बादशाह भी है - प्रखर वक्ता भी है- ब्यावरहिस्ट्री
डोट कोम वेबसाईट के निर्माता निर्देशक भी है।
इस बार यह मेला 15 मार्च 2025 को सांयकाल 4 बजे से भैरूजी के खेजड़े से
आरम्भ होकर बादशाह की सवारी जनता जनार्दन से खेलती हुई रात्री 8 बजे
कलेक्ट्रेट कार्यालय जायेगी जहां पर बादशाह की मोर्चों पर गुलालरूपी
फाइटिंग होगी। इसमें कलेक्टर तो अकबर के किरदार में और टोडरमल बादशाह के
किरदार में होते हैं। यह गुलाल रूपी फाईटिंग भी देखना काबिले तारीफ होती है
यहाँ बादशाह की सवारी अपने गणतव्य स्थान को लौटती है और जनता जर्नादन अपने
मन में मेले की अगली याद संजोये जाते हैं।
चूँकि, वर्तमान में आरारोट के आटे कीे गुलाल बनाई जाती है जो ज्वलनशील होती
है। अतः इसके इस्तमाल में स्वास्थ्य रूपी सावधानी बरतनी चाहिये और लाल
गुलाल का ही प्रयोग करना चाहिये न कि अन्य रंगों के गुलाल। मेला समिति वे
प्रशासन के कार्यकर्त्ता इस बात का विशेष ध्यान रक्खें।
13.03.2025
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ब्यावर के गौरवमयी अतीत के पुर्नस्थापन हेतु कृत-संकल्प
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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