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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

 

1 जून 2023 को पृथ्वीराज चौहान के 861वें जन्म दिन और 860 वीं वर्षगाँठ पर विशेष
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लेखक : वासुदेव मंगल, ब्यावर

भारत का इतिहास शौर्य गाथा से भरा पड़ा है।
यद्यपि भारतीय काल चन्द्रगुप्त मौर्य द्वितीय के समय उज्जैन के शासक ने अपने विक्रमादित्य के नाम से संवत् 2079 पूर्व चैत्र माह की प्रतिपदा को आरम्भ किया जो विक्रम संवत् कहलाता है। वर्तमान में विक्रम संवत् 2080 चल रहा है।
अंग्रेजी गेग्रीरियन कलेण्डर के अनुसार ईसा मसिह के काल से अंग्रेजी कलेण्डर काल खण्ड माना जाता है जो विक्रमादित्य राजा के 57 (सत्तावन) साल बाद में हुए। अतः ईसवी सन् 2023 चल रहा है वर्तमान में।
इसी काल की गणना में चूँकि इतिहास के मुताबिक भारत में आर्य और अनार्थ अर्थात् द्रविड़ संस्कृति पांच हजार साल पुरानी बताई जा रही है।
चूंकि यह इतिहास का विषय है। भारत में बौद्धधर्म के प्रवर्त्तक गौतम बुद्ध और जैन धर्म के चौबिसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी काल आज से दो हजार पाँच सौ वर्ष पूर्व का बताया जा रहा है।
उसके बाद का यह दो हजार इक्कीसवीं सदी का यह काल खण्ड चल रहा है।
इसी को आधार मानकर हम पश्चात्वर्त्ती राजाओं का इतिहास निरन्तर चलाते आ रहे है।
इसी विधा के अन्तर्गत सम्राट पृथ्वीराज चौहान का जीवन परिचय अभिहश्यित कर रहे है।
पृथ्वीराज चौहान का नाम भारतीय इतिहास में एक बहुत ही अविस्मरणीय नाम है जिनका जन्म 1 जून ईसवी सन् 1163 में 860 साल पूर्व वर्तमान में गुजरात नाम के राज्य के पाटन शहर में हुआ था।
चौहान वंश में जन्में पृथ्वीराज सम्राट आखरी हिन्दू शासक थे वे अपने पिता सोमेश्वर और माता कर्पूरदेवी की सन्तान थे।
चूँकि सम्राट पृथ्वीराज चौहान की जयन्ती अक्सर कई लोग हिन्दी पंचाग विक्रम काल से मानते है। परन्तु विक्रम काल में जिस दिन इनका जन्म हुआ था उस दिन अंग्रजी तारीख 1 जून ईसवी सन् 1163 थी।
अतः यहां पर 1 जून इसलिये अनुकूल है कि तत्कालिन विक्रम मिती हिन्दी मिती घट बढ़ लौंग के साल के साथ प्रतिवर्ष घटती बढ़ती रहती है लेकिन जन्म के दिन अंग्रेजी तारीख एक जून के महीने की निश्चित है।
अतः गणना करने में सीधे सरल तरीका होने से यहां पर सम्राट पृथ्वीराज चौहान का जन्म दिन 1 जून ही मानकर उनका लेख यहाँ पर लिखा जा रहा है।
महज 11 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् दिल्ली और अजमेर, का शासन सम्भाला और अपने शासन का विस्तार कई सीमाओं तक किया लेकिन वे अन्त में राजनीति का शिकार हुये और अपनी रियासत हार बैठे। परन्तु उनकी हार के बाद कोई हिन्दू शासक उनकी कमी को पूरी नहीं कर पाया।
पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही एक कुशल यौद्धा थे। उन्होंने युद्ध के अनेक तरीके सीखे थे। उन्होंने बाल्यकाल से ही शब्दभेदी बाण विद्या का अभ्यास किया था।
पृथ्वीराज के बचपन के मित्र चंदबरदाई उनके लिये किसी भाई से कम नहीं थे।
अजमेर की महारानी अपने पिता की अंगपाल दिल्ली की इकलौती सन्तान होने के कारण अंग पाल ने अपने दोहित्र पृथ्वीराज को अपने बाद दिल्ली का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। था। उसी के तहत् सन् 1166 में महाराज अंगपाल की मृत्यु के पश्चात् पृथ्वीराज चौहान का दिल्ली का दिल्ली की राजगद्दी पर राज्य अभिषेक किया गया और उन्हें दिल्ली का कार्यभार सौंपा गया।
इस प्रकार पृथ्वीराज चौहान अजमेर के साथ साथ दिल्ली के सम्राट भी थे।
पृथ्वीराज चौहान के दिल्ली के शासक रहते हुए उन्हें कन्नोज के राजा जयचन्द की लडक़ी संयोगिता से केवल चित्र को देखकर एक दूसरे के प्यार में मोहित हो चुके थे। परन्तु जयचन्द अपनी पुत्री का विवाह किसी भी कीमत पर पृथ्वीराज के साथ नहीं करना चाहते थे। क्योंकि वे पृथ्वीराज से ईर्ष्या करते थे।
अतः ईर्ष्यावश जयचन्द ने अपनी पुत्री संयोगिता का स्वंयवर रक्खा जिसमें पृथ्वीराज को आमन्त्रित नहीं किया केवल उनकी मूर्ति द्वारपाल के स्थान पर रक्खी। परन्तु इसी स्वयंवर में पृथ्वीराज ने संयोगिता की ईच्छा से उनका अपहरण भरी महफिल में किया और उन्हें भगाकर अपनी रियासत ले आए और दिल्ली आकर दोनों का विवाह पूरी विधि से सम्पन्न हुआ।
पृथ्वीराज चौहान के पास विशाल सेना थी। इस सेना में तीन लाख सैनिक और तीन सो हाथी थे। इसी संगठित सैना के बूते पर पृथ्वीराज ने कई युद्ध जीते और अपने राज्य का विस्तार करते चले गए।
परन्तु अन्त में कुशल घुड़सवारों की कमी और जयचन्द की गद्दारी के कारण व अन्य राजपूत राजाओं के सहयोग के अभाव में वे मुहम्मद गौरी से द्वितीय युद्ध हार गए।
मोहम्मद शाबुद्दीन गौरी का सम्पूर्ण पंजाब पर राज था जो पंजाब के भटिण्डा से सम्पूर्ण पंजाब प्रान्त पर राज करता था। पृथ्वीराज विस्तार के लिये सतरह बार पंजाब पर आक्रमण कर मोहम्मद शाहबुद्दीन गौरी को हरा दिया और सभी बार गौरी को हराने के बाद भी माफ कर उसके जीते हुए हिस्से को लौटा दिये।
अन्तिम युद्ध में गौरी ने तराई की लड़ाई में जयचन्द के सहयोग से सन् 1192 में पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया। इस युद्ध में पृथ्वीराज और चन्दबरदाई को बन्दी बना लिया गया। इसके बाद गौरी ने जयचन्द को भी मारकर पूरे पंजाब, दिल्ली, अजमेर और कन्नौज में गौरी ने अपना शासन कायम कर लिया। इसके बाद में कोई राजपूत शासक भारत में अपना राज लेकर अपनी वीरता साबित नहीं कर पाया।
गौरी से युद्ध के बाद पृथ्वीराज को बन्दी बनाकर गौरी के राज्य ले जाया गया। वहां पर पृथ्वीराज चौहान को यातनाऐं दी गई। पथ्वीराज की आँखों को गर्म सरियों से जालाया गया। इससे वे अपनी आँखों की रोशनी खो बैठे। अब पृथ्वीराज चौहान से उनकी मृत्यु के पहले आखरी ईच्छा पूछी गयी। तो उन्होंने भरी सभा में अपने मित्र चन्दबरदाई के शब्दों पर शब्दभेदी बाण का उपयोग करने की ईच्छा प्रकट की। इस प्रकार चन्दवरदाई द्वारा बोले गए दोहे-
“चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता उपर सुल्तान है, मत चुको चौहान“।।
ये वही दोहा है जिसको सुनकर पृथ्वीराज ने गौरी की हत्या भरी सभा में कर दी। इसके पश्चात् अपनी दुर्गति से बचने के लिए दोनों ने एक दूसरे की जीवन लीला भी समाप्त करदी। जब संयोगिता ने यह खबर सुनी तो उसने भी अपना जीवन समाप्त कर लिया।
इस प्रकार एक हिन्दू राजा का अन्त हुआ। इस बात को 831 साल हो गए। लेखक पृथ्वीराज चौहान की जयन्ती पर उनको शत् शत् नमन करते है।
आज देश के नवयुवक और नवयुवतियों को प्थ्वीराज चौहान के आदर्शों को आत्मसात करने की आवश्यकता है। मिति के हिसाब से ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी को उनकी जयन्ती मनाई गई। जो इस वर्ष 28 मई सन् 2023 ईसवीं को थी।
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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