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ब्यावर जिले के साथ-साथ अन्य विचारणीय बिन्दुओं पर गौर फरमाने के सुझाव।
 

लेखक : वासुदेव मंगल
माननीय आपने ब्यावर को जिला घोषित किया। इसके लिये आपका एक बार पुनः अभिनन्दन और आभार।
अब श्रीमान ब्यावर की भौगोलिक, नैसर्गिक, राजनैतिक, आर्थिक, ओद्योगिक व्यापारिक स्थिति के बारे में आपको विस्तृत रूप से बताना अति आवश्यक है जिससे आप इस क्षेत्र की राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक व जाति के आधार पर वस्तु स्थिति का आसानी से समझ कर अवलोकन कर भली प्रकार आंकलन कर सकंगें।
ब्यावर 1836 में शिल्पकला के आधार पर जयपुर के पेटर्न पर बसाया गया सुन्दर नैसर्गिक शहर हैं इस शहर के आस-पास के चारों तरफ के सुरम्य प्राकृतिक वातातरण के साथ साथ अरावली की पहाड़ियों में अकूत बहुमूल्य खनिज सम्पदा का खजाना भरा पड़ा है।
चारों ओर यहां पर असीमित चरागाह, पशुधन, खेती, प्राकृतिक वन जंगल, पर्यटन स्थलों के साथ घाटियां, नदी-नाले व दूर-दूर तक फैली हुई चारों तरफ छोटी बड़ी अनके पहाडिया हैं।
यह शहर राजा महाराजाओं का ईलका तो है नहीं। इसको तो एक अंग्रेज सैन्य अधिकारी ने स्काटलैण्ड के डिक्सन गांव के उत्तरी पहाड़ी के सौन्दर्य के आधार पर बसाया था। अतः मेरवाड़ा बफॅर स्टेट एक अंग्रजी रियासत रहीं है जो 1938 में अजमेर राज्य में मिला दी गई और अजमेर राज्य के नाम से जानी जाती रही।
अतः 1836 में ही 187 साल पहले इसको ऊन और कपास जिन्सों का महत्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र बनाकर इस शहर को आबाद किया था। बाद में डिक्सन अजमेर और ब्यावर दोनो राज्य के कमिश्नर और अधीक्षक रहे 1857 तक।
श्रीमान् तब से ही अतीत का ब्यावर क्षेत्र जो सन् 1938 तक मेरवाड़ा स्टेट के प्रसिद्ध नाम से दुनिया भर में लगभग सो साल से भी ज्यादा समय तक जाना जाता रहा।
इस क्षेत्र के उत्तर में अजमेर अंग्रेजी राज्य, दक्षिण में मेवाड़ देशी रियासत व पश्चिम में मारवाड़ देशी रियासत रही हैं।
अतः आरम्भ से ही ब्यावर तिजारत का एक प्रमुख केन्द्र रहा हैं जिसके समकक्ष उस समय के सिन्ध प्रान्त का मीरपुर खास, पंजाब का फाजिल्का, उत्तर भारत का कानुपर, मध्य भारत का इन्दौर, बम्बई प्रान्त के चार शहर क्रमशः बम्बई, अहमदाबाद, राजकोट और भावनगर शहरों के साथ-साथ नवाँ ब्यावर शहर राजपूताना प्रान्त का था।
अतः 1836 से लेकर सो साल तक 1939 तक ब्यावर तिजारत और उद्योग का स्वर्णिम काल रहा।
1947 में भारत की स्वतन्त्रता के साथ ही यह ईलका भी स्वतन्त्र घोषित हुआ अजमेर और ब्यावर की यह स्थिति अंग्रेजों के जाने के बाद स्वतन्त्र अजमेर राज्य हो गया और 1950 की 26 जनवरी को इसको भारत का ‘स’ श्रेणी का 14 वाँ राज्य घोषित किया गया और राजपूताना का राजस्थान प्रदेश नाम रक्खा गया।
1952 में भारत देश में पहला आम चुनाव हुआ। अतः अजमेर राज्य की विधान सभा अजमेर में स्थापित होने के साथ ही स्वतन्त्र मंत्री मण्डल अजमेर विधायिका का कार्य होने लगा। उस समय अजमेर उत्तर से व दक्षिण से दो संसद सदस्यों की व्यवस्था थी। जिसमें एक संसद सदस्य श्री ज्वाला प्रशादजी शर्मा अजमेर उत्तर से व श्री मुकुट बिहारी लालजी भार्गव अजमेर दक्षिण यानी ब्यावर से संसद सदस्य थे।
1953 में राज्यों को पुनर्गठन करने के लिये राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना की गई जिसने केन्द्र सरकार को अपनी रिपोर्ट (प्रतिवेदन) 1955 को दी। इस रिपोर्ट के आधार पर अजमेर छोटे ‘स’ श्रेणी के राज्य को राजस्थान राज्य में मिलाये जाने पर अजमेर को राजस्थान की राजधानी व ब्यावर को प्रसिद्ध व्यापारिक केन्द्र होने के कारण राजस्थान प्रदेश का जिला बनाया जाना था। परन्तु केन्द्र सरकार के अनुमोदन करने के बाद भी तत्कालिन राजस्थान की राज्य सरकार ने इस व्यवस्था में अपने स्तर पर ही आमूलचूल परिवर्तन करते हुए जयपुर को ही प्रदेश की राजधानी बरकरार रखकर अजमेर को मात्र जिला बनाया और ब्यावर बलात् जबरिया राजहठ से उपखण्ड बना दिया गया। तब से लेकर 67 साल बाद श्रीमान् आपने अब जाकर ब्यावर ईलाके की अहमियत समझकर इसको जिला घोषित किया है इस सराहनीय कार्य के लिये आपका बहुत-बहुत वन्दन।
यहाँ पर आपकी जानकारी हेतु कुछ बिन्दु से अवगत कराना चाहता हूँ। आप यदि सुलभ हो सके तो ब्यावर जिले के सर्वागीन विकास के लिये साथ में यह रियायत भी दे सकें तो आपकी बहुत सारी कृपा होगी। ऐसा करने पर आपको बिल्कुल भी आर्थिक और राजनैतिक परेशानी नहीं होगी और आप सत्ता का चौका भी आसानी से लगा सकोगे।
ये बिन्दु निम्न प्रकार हैं-
पहला : मेरवाड़ा 84 गांवों का समूह था जिसमें 32 मेवाड़ के व 21 राजस्व गांव मारवाड़ की देशी रियासतों के 99 साल के लीज् पर 1840 में अंग्रेजों के 31 गांवों के साथ रहे।
सन् 1939 में लीज की समाप्ति पर मेवाड़ व मारवाड़ के 32 व 21 गांव लौटाने पर बाकी 31 मेरवाड़ा के गांवों को अजमेर राज्य में मिलाये जाने से अजमेर मेरवाड़ा राज्य अस्तित्व में आया परन्तु फिर भी अजमेर राज्य के साथ साथ मेरवाड़ा राज्य (ब्यावर) का राजनैतिक अस्तित्व भी बरकरार रहा जिसका प्रतिनिधित्व राज्य में श्री बृजमोहनलाल जी शर्मा करते रहे और केन्द्र में श्री मुकुट बिहारी लाल जी भार्गव करते रहे 30 अक्टूबर 1956 व बाद में भी 1957 के द्वितीय आम चुनाव तक व बाद में तृतीय आम चुनाव 1962 तक।
मुकुट बिहारीलालजी भार्गव तो तृतीय आम चुनाव में भी अजमेर लोक सभा के लिये 1962 से भी 1967 तक संसद सदस्य रहे।
यहाँ पर यह वर्णन करना अतिशय युक्ति नहीं होगी कि 1 नवम्बर 1956 से अजमेर को राजधानी नहीं बनाने के बदले में तीन संस्थान माध्यमिक क्षिक्षा बार्ड, रेवेन्यु बोर्ड और राजस्थान लेक सेवा आयोग दिये। परन्तु ब्यावर को तो डि ग्रेड (क्रमावनत) करने पर यानी जिला नहीं बनाने पर कुछ भी तो क्षतिपूर्ति में राजस्थान सरकार ने नहीं दिया। और ब्यावर को उपखण्ड बना दिया।
परिणामस्वरूप ब्यावर क्षेत्र का पतन तब से नवम्बर 1956 से 67 साल तक राजनैतिक पतन होता रहा। उस काल (मेरवाड़ा राज्य ) में ब्यावर में व्यापार (ऊन, कपास, रूई, वायदा और अनाज) उन्नत अवस्था में था। उद्योग में तीन सूती कपडे़ की मिलें व दस बारह जिनिंग कारखाने उन्नत अवस्था में थे तथा इन्हीं स्तर के सभी प्रशासनिक कार्यालय भी कार्यरत थे जिनको बलात् उपखण्ड बनाये जाने से एक एक करके सभी को ब्यावर से हटा दिये गए या बन्द कर दिये गए जिसमें ब्यावर का क्रानिकल व्यापार, उद्योग और प्रशासनिक कार्यालय शमिल है।
जिला बनाये जाने पर स्वतः ये सब कार्यालय फिर से कार्यरत हो जावेंगें।
दूसरा : वर्तमान में जिला बनाने पर आप मारवाड़ के व मेवाड़ के गांवों का पुनः ब्यावर जिले में समायोजन कर सकोगे। जैसे :- रायपुर, जैतारण, मसूदा, बदनोर, बिजयनगर और मेड़ता इत्यादि।
तीसरा :- ऐसा करने पर राज्य सरकार के चार निजी संस्थान अल्ट्रा टेक, अम्बूजा और श्री बाँगड़ सिमेण्ट के प्लाण्ट ब्यावर जिले में आने से करीब दस हजार करोड़ से ज्यादा का सालाना राजस्व राज्य के खाते में जमा हो सकेगा जिससे ब्यावर जिले का संर्वागीन विकास हो सकेगा साथ ही इन्फ्रास्ट्रक्चर कार्य सम्पन्न हो सकेगे।
चौथा : ब्यावर जिले का फैलाव 50 मील की परिधि में होगा। अतः इसके वैज्ञानिक तरीके से विकास के लिये जिले में साथ ही ब्यावर विकास प्राधिकरण (बी.डी.ए.) ब्यावर डेवलेपमेण्ट अथोरिटी भी बना देवे तो बहुत द्रुतगति से ब्यावर जिले का विकास होगा। क्योंकि जनसंख्या की दृष्टि से भी ब्यावर जिले की आबादी 15-20 लाख की होगी अतः मानवश्रम सुलभ हो सकेगा। और आपको ऐसा करने से कोई परेशानी भी नहीं होगी।
पाँचवा :- चूंकि वर्तमान में ब्यावर नगर परिषद् कार्यकरत हैं जिसमें 60 वार्ड स्थित है। करीब ब्यावर सिटी की आबादी भी पांच लाख से अधिक है अतः साथ ही बी.एम.सी. अर्थात् ब्यावर म्युनिसिपल काउन्सिल को बी.एम. कोर्प में क्रमोन्नत करके ब्यावर म्युनिसिपल कोरपोरेशन बना देवे तो ब्यावर शहर का वैज्ञानिक तरीके से दु्रत विकास हो सकेगा और मेयर का पद भी कायम हो सकेगा।
अतः वाजिब जानकर लिख रहा हूँ। चूंकि केन्द्र ब्यावर स्टेशन को अमृतयोजना में नये सिरे से बना रहा है जहाँ पर सभी ट्रेनों का ठहराव हो सकेगा
आप भी अमृतकौर अस्पताल को नये सिरे से बना रहे हो और इतना धन खर्च रहे हो तो साथ में मेडीकल कालेज का परिसर भी हास्पिटल प्रागंण में बना देवे तो भविष्य में ब्यावर जिले को स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत बड़ा उपहार मिल जावेगा।
जिले के चलते काम में ये इमारतें भी बन जावेगी तो निकट भविष्य में काम आयेगी।
अतः आप इन बिन्दुओं पर गौर फरमाकर इनके गुण दोष के आधार पर फैसला कर ब्यावर जिले की जनता को कृतार्थ जरूर करेगें ऐसी आपसे अपेक्षा ही नहीं अपित् आप पर पूर्ण विश्वास है।
एक बार फिर अग्रिम धन्यवाद के साथ।

इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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