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1 नवम्बर सन् 2017 को

 ब्यावर उपखण्ड को हुए इकसठ साल

बासठवें वर्ष में प्रवेश्‍ करने पर राज्य सरकार इसे जिला घोषित करे

 

आलेख - वासुदेव मंगल, ब्‍यावर

जिला अजमेर (राज.)

 

1 नवम्बर 1956 के पहले अजमेर मेरवाड़ा स्वतन्त्र भारत देश का चैदंवा राज्य था।

इसको राजस्थान राज्य में विलय, राज्य पुनर्गठन आयोग व केन्द्रिय सरकार की समिति की सिफारिश के अनुसार किया जाना था।

परन्तु इस अजमेर मेरवाड़ा राज्य का विलय आयोग और समिति की सिफारिश के विपरीत किया गया तत्कालिन राजस्थान की सरकार द्वारा।

जिसका दंश मेरवाड़ा राज्य और अजमेर राज्य की जनता आज इकसठ साल से भुगत रही हैं सरकार के सिर पर जूँ तक नहीं रेंग रही हैं।

अब तक, अजमेर मेरवाड़ा राज्य के 1 नवम्बर 1956 को विलय के बाद, राजस्थान सरकार प्रदेश में चैदह सरकारे आई हैं वर्तमान में चैदहवीं सरकार का प्रस्तावित दसंवा सत्र बजट सत्र होगा। अब भी सरकार देर से ही सही मगर मेरवाड़ा अर्थात् ब्यावर को जिला घोषित कर देती है तो भी उसकी यह भूल दूरूस्त हो जायेगी क्योंकि यह तो मेरवाडा की जनता का अधिकार है मेरवाड़ा की स्थापना से ही। यह तो स्वतन्त्र मेरवाड़ा स्टेट था स्थापना से ही। ब्यावर मेरवाड़ा राज्य में सात तहसीलें थी। ब्यावर, आबू, भीम, टाटगढ़, बदनोर, मसूदा और बिजयनगर।

विलय की यह मुख्य शर्त थी। कि चूँकि ब्यावर व्यापारिक और औद्योगिक मेरवाड़ा क्षेत्र है जहाँ पर राज्य स्तर के सभी कार्यालय कार्यरत है। इस बात की सिफारिश आयोग और समिति ने की थी कि ब्यावर मेरवाड़ा राज्य को विलय करने के समय राजस्थान प्रदेश को जिला घोषित किया जावे।

लेकिन लेखक को बड़े खेद के साथ लिखना पड़ रहा है कि राजस्थान की तत्कालिन सरकार ने सिफारिश के विपरीत जानबूझकर ब्यावर मेरवाड़ा राज्य को ब्यावर जिला घोषित न कर जबरिया ब्यावर उपखण्ड घोषित, राजस्थान में विलय के समय 1 नवम्बर 1956 को किया जो मेरवाड़ा राज्य की जनता के साथ सरासर धोखा और अन्याय किया गया।

 

ब्यावर को उपखण्ड घोषित करने के दुष्परिणामः-

पहला दुष्परिणाम:- मेरवाड़ा के चार टुकडे़ किये गए मेरवाड़ा का पहला टुकड़ा आबू तहसील को टुकड़ा किया गया जिसको सिरोही जिले में मिलाया गया।

मेरवाड़ा का दूसरा टुकड़ाः- मेरवाड़ा राज्य का दूसरा टुकड़ा भीम तहसील को किया गया जिसको उदयपुर जिले में मिलाया गया। बाद में जब उदयपुर के एक भाग को जिला बनाया गया था उसको ब्यावर जिला नामकरण न करके सरकार ने जानबूझकर राजसमन्द जिला नामकरण किया। सरकार ने जानबूझकर ब्यावर के साथ दूसरी बार ना इन्साफी की। अतः भीम तहसील अब राजसमन्द जिले में है।

मेरवाड़ा का तीसरा टुकड़ाः- मेरवाड़ा राज्य का तीसरा टुकड़ा कर बदनोर तहसील को भीलवाड़ा जिले में मिलाया गया।

मेरवाड़ा का चैथा और अन्तिम टुकड़ाः- बाकी बचे हुए चैथे टुकडे़ में ब्यावर को उपखण्ड घोषित कर तत्कालिन मेरवाड़ा राज्य की चार तहसीलों को दो तहसीलों में समायोजित कर बिजयनगर को मसूदा में और टांटगढ़ को ब्यावर तहसील में मिलाकर ब्यावर उपखण्ड नामकरण रख दिया गया।

दूसरा दुष्परिणामः- मेरवाड़ा स्टेट था जिसे क्रम अवनत के समय सिफारिश के अनुसार ब्यावर जिला घेाषित किया जाना चाहिये था। परन्तु तत्कालिन जयपुर महाराज सवाई मानसिंह जी द्वितीय तत्कालिन राजस्थान सरकार के राजप्रमुख थे, कि जयपुर को राजधानी बनाये रखने की तुष्टीकरण की नीति के कारण सुखाड़िया सरकार ने जानबूझकर यह बखेड़ा खड़ा कर अजमेर राज्य को राजस्थान की राजधानी बनाई जाने के स्थान पर जिला बना दिया और मेरवाड़ा अर्थात् ब्यावर जिला बनाये जाने के स्थान पर उपखण्ड बना दिया।

तीसरा दुष्परिणाम:- ब्यावर उपखण्ड बनाये जाने से धीरे-धीरे ब्यावर से ऊन, रूई, अनाज और सर्राफा व्यापार खत्म कर दूसरे शहरों में स्थानान्तरित कर दिया गया राजस्थान की सरकार द्वारा।

चैथा दुष्परिणाम:- ब्यावर जिला नहीं बनाये जाने से कपड़े की तीन चालू मिलों को कल कारखानों में काॅटन जिनिंग पे्रसिंग फैक्ट्रियों दस बारह चालू फैक्ट्रियो को बन्द कर दिया गया। इसका सीधा सा असर दस हजार रोटी-रोजी कमाने वाले व्यापारी और मजदूरों पर पड़ा। व्यापारी और मजदूरों को बेरोजगार कर दिया गया जानबूझकर राजस्थान की इसकठ सालों में चैदह सरकारों द्वारा। सौ सालों से चालू विकसित व्यापार और कल कारखानों को बन्द करके। ऐसा करके क्या मिला राज्य सरकार को? मात्र सर्वधर्म समभाव के प्रणेता एक अंगे्रज सैन्य अधिकारी कर्नल डिक्सन के मेरवाडा और ब्यावर को बसाये जाने के कारण सरकार ने विलय के समय मेरवाड़ा राज्य की जनता के साथ यह बदला लिया कि यहां के सौ साल के विकसित व्यापार और उद्योग को तहस नहस नेशनाबूद कर दिया गया सरकार द्वारा। यह तो सरकार के विकास की कोई नीति नहीं हुई।

पाँचवा दुष्परिणाम:- शनैः शनैः ब्यावर से राज्य स्तर के सभी सरकारी दफ्तर एक एक करके हटाये जाने लगे। इस प्रकार यहां से करीब-करीब सरकार द्वारा सभी दफ्तरों का सफाया कर दिया गया। कुछ संस्थानों को जानबूझकर क्रम अवनत कर दिया गया। यह सब सरकार की ब्यावर को बर्बाद करने के लिये जानबूझकर सोची समझी चाल के अन्तर्गत किया गया ताकि ब्यावर भविष्य में फिर से कभी भी तरक्की नहीं कर सके।

छठा कारण:- 2002 की मई 30 को ब्यावर उपखण्ड से मसूदा पंचायत समिति और तहसील को अलग कर ब्यावर उपखण्ड की कमर तोड़ दी गई राजस्थान सरकार द्वारा। मसूदा को अलग उपखण्ड बना दिया गया जानबूझकर सोची समझी रणनीति के तहत् ब्यावर मेरवाड़ा को बर्बाद करने के लिये।

साँतवा कारण:- सोची समझी चाल के तहत् ब्यावर विधान सभा क्षेत्र को अजमेर संसदीय क्षेत्र से अलग कर राजसमन्द संसदीय क्षेत्र के साथ जबरिया जोड़ दिया गया जबकि मेरवाडा राज्य के साथ अजमेर राज्य को सन् 1842 ई. में जोड़ा गया था ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा प्रशासनिक सुविधा के लिये। और इस प्रकार इन दोनंो अंगे्रजी राज्यों का जुुड़वा नाम अजमेर मेरवाडा रक्खा गया।

आंठवा कारण:-ब्यावर उपखण्ड को प्रशासनिक दृष्टि से वर्तमान में अजमेर जिले के अन्तर्गत रक्खा गया है जबकि ब्यावर विधान सभा क्षेत्र को हटाकर अजमेर संसदीय क्षेत्र में जयपुर की दूदू विधान सभा क्षेत्र को जोड़ा गया है। इस प्रकार सरकार ब्यावर के साथ सौतेला व्यवहार कर अजमेर व ब्यावर की जनता को आपस में लडा रही हैं ताकि न तो ब्यावर और न ही अजमेर भविष्य में उन्नति करने पावे।

नंवा कारण:- रही सही कसर राजस्थान राज्य सरकार ने ब्यावर उपखण्ड से टाटगढ़ तहसील को सन् 2013 में अलगकर टाटगढ़ के नाम से एक अलग से उपखण्ड बना दिया। कितनी तरक्की की राज्य सरकार ने ब्यावर मेरवाड़ा की इकसठ साल में।

इस प्रकार ब्यावर की रही सही कमर और तोड़कर रख दी राजस्थान सरकार ने।

आज ब्यावर उपखण्ड के बासठवें वर्ष में प्रवेश करने पर ब्यावर क्षेत्र? की साढ़े तीन लाख जनता ब्यावर को आने वाले बजट सत्र में ब्यावर को राज्य सरकार से जिला बनाने की पुरजोर मांग करती है जो जायज ही नहीं जरूरी भी है।    

 

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