शिल्पकला पर निर्मित ब्यावर की उनीसवीं बीसवीं
सदी की तीसरी किश्त
आलेखः वासूदेव मंगल, ब्यावर
हाँ, तो अतीत काल में ब्यावर ऊन, रुई जीन्सों का राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय
का ट्रेड सेन्टर होनेे के साथ साथ वूल कॉटन की दस-बारह जिनिंग एवं प्रेसिंग
फैक्ट्रिज होने के साथ ही कॉटन यानि क्लोथ स्पिनिंग एण्ड विवींग की तीन बड़ी
मिलें भी ब्यावर मे स्थित थीं। तिजारत व्यापार में लगभग पांच हजार
सेठ-साहूकार, मुनीम-गुमास्ते, दलाल-आडतिये, तुलावटिये-पल्लेदार थे तो
श्रमिक उद्योग कल-कारखानों में अधिकारियों-कर्मचारियों के साथ लगभग पाँच
हजार लेबर काम करते थे। ये कल कारखाने आठ-आठ घण्टों के अन्तराल से चौबिस
घण्टे चलते थे। ब्यावर के आस पास के गाँवों के ग्रामीणों को रोजगार सुलभ
था। बड़ी खुशहाली का जमाना था। लेखक के पूर्वजों की एक प्रेस पौद्धार जिनिंग
एण्ड प्रेसिंग फैक्ट्री बिजयनगर में थीं जिसको छ महीने लेखक के पिताश्री
सम्भालते थे। ये सारे के सारे कल कारखाने बिजली आने के पहले क्रुड ऑयल से
चलते थे। सब लोगों के चेहरों पर खुशी का इजहार था। सभी जाति की अलग-अलग
पंचायत थीं जहां पर उनके पंचायती झगडे मसले दो-तिहाई बहुमत से सल्टाये जाते।
सरकार की जाति मामलों में कोई सीधी दखलान्दाजी नहीं थी। चारों दरवाजों पर
पुलिस चौकी और चुंगी नाके थे। अपराध के लिए जैल की व्यवस्था थीं जिसका खर्चा
अपराधी के अभिभावकों से वसूल किया जाता। रात्री को बाजारों मे रोशनी के लिए
चिमनी की व्यवस्था थीं। यात्रियों के ठहरने के लिए धर्मशालाएँ थीं। चारों
दरवाजों बाहर सेठ साहूकारों की बगीचियाँ थीं। मेवाड़ी दरवाजे बाहर पश्चिम
दिशा मे शंकर लाल मुणोत की बगीची में वर्तमान मे डाक अधीक्षक का कार्यालय
है। सेठ साहूकारों की हवेलियाँ शहर परकोटे के अन्दर थी। सुरजपोल दरवाजे के
अन्दर अचलदासजी सटाक की हवेली, आगे चलकर गोपालजी मौहल्ले में गोरधनदास
मदनलाल, बन्शीलाल रामकुमार, अमीलाल ईसरदासजी की हवेली, सराफान मोहल्ले में
सीताराम रामनिवास, गणेशजी मन्नालाल की हवेली, शाहजी की हवेली, चिड़ावा वालों
का नोहरा, ललन गली मे कौशल किशोर भार्गव, वकील महेश दत्त भार्गव, नाथूलालजी
घीया, रूघनाथ बाबू जालान ये सब म्यूनिसिपल चैयरमेन रह चुके। फर्श गली
माधोपुरिया मंे नारायणदास लोहिया, आगे कुमारान मोहल्ला फर्श गली में श्याम
-सुन्दरजालजी वकील की हवेली, मेम साहिब गली मे श्रीरामजी फत्तेहपुरिया की
ऊँची चबूतरी की हवेली, मेम साहिब की हवेली, पुरानी सिनेमा गली में लेखक का
रामगढ़िया नोहरा, आगे मोहनलालजी प्रहलादजी फतैह्पुरिया की हवेली। डिग्गी
मोहल्ले में जवाहर मल चाँदमल की हवेली, जवाहरमल सुवालाल, आगे टोकूलालजी
बद्रीलालजी की हवेली, गोपालजी मोहल्ला चौराहे के दक्षिण-पश्चिम कोने पर
चिरंजीलालजी जाजोदिया की तीन मंजिला हवेली व पुरानी सिनेमा गली मे जुड़वा
दूसरी हवेली चिरंजीलालजी जाजोदिया। फत्तेहपुरिया बाजार से नृसिंह गली मे
घीसूलालजी जाजोदिया का आर-पार कटला। डिग्गी मोहल्ले में गोविन्द रामजी
लक्ष्मी नारायणजी की हवेली, मालपानी गली में चतुर्भुज जगन्नाथ मालपानीजी की
हवेली। पाली बाजार में आनन्दरामजी मालपानी की हवेली आदि आदि। नया नगर निवासी
सभी अपना-अपना स्वतन्त्र परम्परागत कारोबार करते हुए बडेे प्यार मोहब्बत से
एक-दूसरे के उत्सव-त्यौहार मे सभी धर्माे के लोग उमंग के साथ भाग लेते थे।
बड़ी हँसी-खुशी का जमाना था। सन् 1842 मे डिक्सन साहिब को अजमेर की कमिश्नरी
भी ब्यावर के साथ दे दी। सन् 1852 मे डिक्सन को कमिश्नर के साथ साथ अजमेर
मेरवाड़ा का सुपरिन्टेन्डेट डिक्सन ने दोनों कार्य बखूबी से जिम्मेदारी से
किए जीवन पर्यन्त तक। बाद के पन्द्रह साल 1857-1871 तक का पीरियड अराजकता
का रहा। अतः इस दरम्यान ब्यावर के निवासी धाड़ातियों के डर से अपने अपने
मकानों मे ताले लगा लगाकर दिसावर अपने अपने गाँवों में ज्यादातर लोग चले गए।
वापिस सामान्य स्थिति होने पर कई तो वापस आये और कोई कोई आज तक नहीं आए।
उनके मकानों में जो रह रहे है वो ही मालिक हो गये।
जैसा कि आपको विदित होना चाहिए कि डिक्सन ने तो अपने फौजियों से जंगल साफ
करवाकर नागरिकों को बसाया था। डिक्सन स्वयं व उनकी बेगम चाँद बीबी ब्यावर
की जमीं में ही दफन हुए। अंग्रेज कमिश्नर भी सन् 1910 तक ब्यावर में तैनात
रहे। 1911-20 तक बृजजीवन लालजी 1921-27 तक लक्ष्मी नारायणजी माथुर फिर
नाथूलालजी घीया, फिर रुघनाथ बाबू जालान, फिर महेश दत्त भार्गव, फिर मुकुट
बिहारीलाल भार्गव, फिर पं. बृजमोहनलाल शर्मा, फिर चिम्मन सिंह लोड़ा, फिर
श्याम सुन्दरलाल वकील, फिर गंगा विशन जोशी आदि आदि अनेक लोग म्युनिसिपल
अध्यक्ष बारी बारी रह चुके है। आप देखिये नगर म्युनिसिपल की वर्तमान
बिल्डिंग विलायती शिल्प कला स्कॉटलैण्ड के एडिनबरा सिटी के टाऊन हॉल की
हुबहू पच्चीकारी की हुई है जो आज भी काबिले तारीफ है। आज इस भवन को 14 फरवरी
को एक सो 15 साल हो जायेंगे। तत्कालिन कॉल्विन अंग्रेज कमिशनर के नाम पर इस
भवन का नाम कॉल्विन टाऊन हॉल नाम रखा था। स्वतन्त्रता के बाद इस भवन का
नामकरण नेहरू भवन कर दिया 1947 में। आज भी शिल्पकला की अदभुत बेजोड़
बिल्डिंग है। इन एक सो 15 साल में ब्यावर शहर की तरक्की आप लोगों के सामने
है। अगर हमारे कर्णधारों के नेक इरादे होते तो ब्यावर कभी भी उपखण्ड नहीं
होता। बीच में सन् 1956 से 1 नवम्बर की 6 अगस्त 2023 तक छासठ वर्ष के
काल-खण्ड जो इसका उदासीनकाल रहा वह भी नहीं होता इस दरम्यान ब्यावर बहुत
पीछे अवनयन में चला गया। ब्यावर के जैसा तत्कालिन व्यापार तो पूरे भारतवर्ष
मे नही रहा होगा ऐसा स्वर्णकाल था हमारे स्वयं हुक्मरानों को ब्यावर का यह
उन्नयन्काल रास नहीं आया अतः ऐसे उन्नत व्यापार को धराशायी कर माने। क्या
मिला उनको ऐसा करने से यह तो वो ही जाने? परन्तु ब्यावर तो अपने अतीत के
गौरव से महरूम हो गया जिसकी भरपाई निकट भविष्य में होनी मुश्किल दिखलाई दे
रही है।
अभी भी सुनहरी मौका है वर्तमान की राजस्थान प्रदेश की सरकार के लिए कि वह
ब्यावर जिले के चहुमुखी विकास की संक्षिप्त कार्य योजना लागू कर त्वरित
विकास करें प्राकृतिक संसाधनों की यहाँ पर कमी नहीं है। अथाह प्रचुर सम्पदा
यहां के भूगर्भ में दबी भरी पड़ी है। आवश्यकता है सच्चे मन से यहाँ के
एन्टरप्रन्योर्स (उद्यमियों) को इन्सेन्टिव दिये जाने की और वो सभी सुविधाएँ
सुलभ कराने की जो ऐसा करने के लिए अति आवश्यक है।
ब्यावर जिले के उज्जवल भविष्य की कामना के साथ लेखक का आप सबको बहुत
धन्यवाद।
बाजारों और गलियों की चबूतरियों को बेचने का सीधा सीधा सा दुष्परिणाम पूरे
शहर का यह हुआ कि दोनों ओर के बाजारों के दुकानदार और गलियों में दोनों ओर
के मकान मालिकों ने उसके आगे सड़क की चबूतरियों जितनी सरकारी सड़क की जमीन
घेर कर अतिक्रमण कर बैठे गए। काउण्टर, झरोखे, छज्जे आदि सड़क पर बनाकर बैठ
गए। कोई कहने वाला नहीं है। बालकोनी सड़क पर बनाली। नगर निकाय मेहरबान तो
फिर डर काहे का। पूरे शहर को बदरंगे बना दिया। बाड़ ही खेत को खा रही है।
धन्य हो। ऐसा बढ़िया राज फिर नही आयेगा। राम नाम की लूट जितनी लूट सको लूट
लो। नहीं लूटोगे तो फिर पश्चताओगे ऐसा राज फिर दोबारा नहीं आने वाला।
आप देखिये रोजगार हो या न हो हर खरीद की जाने वाली उपभोक्ता वस्तु पर तो
टेक्स दे ही रहे है और सरकार कह रही है कि बारह लाख पर मिडिल क्लास को
टेक्स से राहत दी है। इनसे पूछो सरकार कौनसी उपभोक्ता वस्तु ओर सेवा पर
टेक्स नहीं ले रही है। यह तो राजा की प्रजा से सीधी सीधी जी एस टी के नाम
से खुली लूट है और वह भी एक सो 42 करोड़ लोगों से। धन्य हो। ऐसी लूटने वाली
सरकार फिर नहीं आयेगी चाहे राजा की कुर्सी पर कोई बैठो। राजा का टका तो बिना
कमाए खरा है पिछले सन् 2017 से पिछले आठ सालों से 2025 अब नया साल है। इसी
प्रकार दो हजार का नोट बहुत पहले बन्द कर दिया गया वह भी कुछ भाग में अभी
भी चालू है। यह सरकार का चाहकर भी मिस मेनेजमेन्ट नहीं है तो क्या है?
ब्यावर शहर की दस हजार पांच सो फीट लम्बे परकोटे की छ फीट चौड़ी जमीन हडप
करली। इसी प्रकार बावड़ियों, तालाबों की जमीन खुर्द बुर्द कर दी गई। ब्यावर
की जल जंगल जमीन तो स्वतन्त्र है जिसका पिछले छासठ वर्षाे से अधिक समय से
दोहन हो रहा है। नगर सुधार न्यास या फिर नगर विकास प्राधिकरण संस्था को
स्थापित नहीं होने दे रहे है जनता के वर्तमान न्यासी। इससे ज्यादा शहर के
दुर्भाग्य क्या होगा?
04.02.2025
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