‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से....... 
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✍वासुदेव मंगल की कलम से.......  

छायाकार - प्रवीण मंगल (फोटो जर्नलिस्‍ट)
मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर
Email - praveenmangal2012@gmail.com


 

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सुर्य ग्रहण क्या है?
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फ्रीलान्सर: वासुदेव मंगल ,ब्यावर

आज 29 मार्च ईसवीं सन् 2025 तद्नुसार चैत्र बदी अमावस्या विक्रम संवत् 2081 को सूर्य ग्रहण है। चूँकि पृथ्वी सौर परिवार का एक ग्रह हैं और यह सूर्य की परिक्रमा करता है। इसी प्रकार चंद्रमा पृथ्वी का उपग्रह है और यह पृथ्वी की परिक्रमा करता है । पृथ्वी और चन्द्रमा अन्तरिक्ष में सूर्य के प्रकाश को रोककर लम्बी-लम्बी परछाईयाँ बनाते। घूमते घूमते जब कभी सूर्य, पृथ्वी और चन्द्रमा एक सीधी रेखा में आ जाते हैं तथा चन्द्रमा, पृथ्वी और और सूर्य के बीच में आ जाता है, तो चन्द्रमा की परछाई या छाया, जो सूर्य की विपरीत दिशा में होती है, पृथ्वी पर पड़ती है अथवा चन्द्रमा सूर्य से आने वाली प्रकाश की किरणों को पृथ्वी के किसी भाग पर आने से रोक लेता है। पृथ्वी के इस भाग पर रहने वाले लोगों को ऐसा लगता है कि पृथ्वी पर अन्धेरा हो गया हैं। इसको सूर्य ग्रहण लगना कहते है।
सूर्य, चन्द्रमा और पृथ्वी के एक सीध में आने की स्थिति केवल अमावस्या के दिन ही होती है। इसलिए सूर्य ग्रहण अमावस्या के दिन ही पड़ता हैं।
अब यक्ष प्रश्न यह है कि सूर्य ग्रहण हर अमावस्या को क्यों नहीं पड़ता है? तो प्रश्न का सीधा सीधा यह उत्तर है कि पृथ्वी के भ्रमण-पथ का तल और चन्द्रमा के भ्रमण-पथ का तल एक दूसरे के साथ 5 डिग्री पर झूके हुए हैं। यदि दोनों के भ्रमण-पथों के तल एक ही सीध में होते तो हम हर अमावस्या को सूर्य ग्रहण देख पाते। इस झूकाव के कारण घूमता हुआ चन्द्रमा, पृथ्वी के परिक्रमा-पथ से कभी नीचे होता है, तो कभी ऊपर। केवल कभी-कभी ही तीनों एक सीध में आ पाते है।
पृथ्वी, सूर्य और चन्द्रमा की स्थिति जानकर यह पता लगाया जा सकता है कि सूर्यग्रहण कब पडे़गा और कितने समय तक पडे़गा। यदि चन्द्रमा सूरज के प्रकाश को पूरी तरह से रोक लेता है, तो पूर्ण सूर्य ग्रहण होता है और चन्द्रमा यदि सूरज के थोडे़ हिस्से को ढक पाता है, तो आंक्षिक सूर्य ग्रहण होता है पूर्ण सूर्य ग्रहण में भी सूर्य के किनारे दिखाई देते हैं। 
29-03-2025
 
 

ब्यावर के गौरवमयी अतीत के पुर्नस्थापन हेतु कृत-संकल्प

इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker

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