‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से....... 
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✍वासुदेव मंगल की कलम से.......  

छायाकार - प्रवीण मंगल (फोटो जर्नलिस्‍ट)
मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर
Email - praveenmangal2012@gmail.com



ब्यावर के उन्नीसवीं, बीसवीं सदी के दास्तान की सातवीं-किश्
वासुदेव मंगल - फ्रीलान्सर ब्यावर
ब्यावर में सन् 2012 से ही मास्टर प्लान लागू हैं। गोपालजी मोहल्ला रेजिडेन्शियल इस्टेट में दे रखा है। अतः इसमें कॉमर्शियल इस्टेट एवं इण्डस्ट्रियल इस्टेट की तमाम कार्यविधि करने की मनाई है। मात्र गोपालजी मोहल्ला रिहायशी बस्ती है जिसमंे रहवासी मकानात आते है। घरो मे वाणिज्यिक दूकानों का संचालन निषिद्ध है। इसी प्रकार घरांे में किसी भी प्रकार की मशीन रूपी कल कारखाना नहीं चलाया जाएगा। इण्डस्ट्री से सम्बन्धित कोई भी ग्राईण्डर आदि लगाकर चलाना निषिद्ध है।
अतः जिलाधीश महोदय से लेखक की प्रार्थना है कि रेजिडेन्शियल इस्टेट गोपालजी मौहल्ला ब्यावर में प्रोहीविटेड एक्टीविटीज पर तुरन्त प्रभाव से सर्वे कर रोक लगाने की कृपा करेंगें। मास्टर प्लान अनुरूप ही स्थान विशेष पर कार्यविधि संचालित होनी चाहिए।
आप देखिये लोहा बाजार मे विनोदीलालजी भार्गव का नोहरा था। जोे गली में आर पार दो दरवाजों वाला था। मुकुट बिहारीलाल जी शाहपुरा (भिलवाड़ा) से उनके गोद आए थे। मुकुटजी इसी में रहते थे परन्तु राजनीति के शोक में वे कर्जदार हो गए। लोढ़ाजी उनको कर्जा देते रहे। अन्त में यह नोहरा लोढ़ाजी ने ले लिया जहां पर आज लोढ़ा मार्केट है। इससे पहले यह नोहरा म्युनिसिपैलिटी का कार्यालय था।
आप देखिये प्राईवेट सेक्टर में मेवाड़ी दरवाजे बाहर कृषि उपज मण्डी मार्ग पर आगे जाकर पश्चिम मे सेन्ट पॉल स्कूल है। आप देखिये यह सब मिर्ची चौड़ा मैदान था जहाँ पर लाल मिरच सूखा करती थीं। टाटगढ़ कालेज रोड से बह्नानन्द मार्ग का उत्तरी हिस्सा फिर कृषि मण्डी चौराहे पोश्चमी - उत्तरी कोने से लेकर टेठ मेवाड़ी गेट के लोकाशाह नगर - विनोदनगर से ब्रहम्ानन्दधाम से लेकरकृषि माडी चौराहे के पश्चिमी-उत्तरी भाग तक का भूभाग जो मिर्ची चौड़ा मैदान कहलाता है पूरा का पूरा अतिक्रमण की भेंट चढ़ गया। सेण्ट पोल स्कूल के आगे जाकर आदर्श विद्या मन्दिर, फिर उसकी हास्टल, फिर आशा पुरा माता मन्दिर। फिर मन्दिर की उत्तर दिशा में रिहायशी कालोनी बस गई है। इधर पश्चिम दिशा में शास्त्री नगर फिर एल आई सी का दफ्तर फिर पी एण्ड टी कालोनी, फिर सिन्धी कालोनी, फिर बोहरा कालोनी, फिर कृष्णा कालोनी। इधर मेवाड़ी दरवाजे बाहर पूर्व दिशा प्रताप कालोनी फिर कंचन देवी स्कूल, टेठ आगे तक अमरी के बाडिये तक जो तालाब का पेटा था अब ठेठ कृषि मण्डी चौराहे के उत्तरी-पूर्वी कोने से पूर्वी दिशा मार्ग की ठेठ जाकर उत्तरी दिशा घूमकर विजय नगर रोड तक पूरे तालाब का पेटा कालोनियों से पट गया है। उधर अजमेर रोड पर कल्याणमल तेजराज की बगीची की जगह सेण्ट्रल एकेडमिक स्कूल है। पुलिया के उत्तरी दिशा मे द्वारकाधीश मैरिज गार्डन बन गया है तो पुलिया के आगे पुरब दिशा के मोड़ पर केसरी नन्दन गार्डन मैरिज होम बन गया है। गोपालजी मोहल्ले से गंगाजी के मन्दिर के पीछे दक्षिण-पुरब दिशा में तुलसी राम रामस्वरूपजी का नोहरा विद्यमान है। इसी प्रकार लेखक के निवास के उत्तरी दिशा में नोहरा पहले चिरंजीलालजी भगत का नोहरा था जहां पर अब सात मकान बने हुए हैं जिनका आवागमन उत्तर में उनके द्वारा रखी गई गली से है। चिरंजीलालजी भगत मेम साहिबा वाली हवेली में चले गए। इधर लेखक के निवास के दक्षिण दिशा में लक्ष्मीनारायणजी मुनीमजी की हवेली है। गोपालजी मोहल्ले के चौराहे के पश्चिमी मार्ग मे चिरंजी लालजी जाजोदिया की तीन मन्जिल हवेली के से जुडा पश्चिम में राम वल्लभ जी जाजोदिया की दो चौक की हवेली है। उसके आगे कँुजी लालजी हनुमान प्रसादजी का नोहरा है। उधर गोपालजी चौराहे के पश्चिमी उत्तरी कोने में मोखम सिंहजी छाजेड का इन्डोर मार्केट है जिसके तीन गेट है एक मेम साहिब गली में, दूसरा गोपालजी चौराहे के पश्चिमी मार्ग पर और एक गेट फतेहपुरिया चौराहे के उत्तर मंे अजमेरी गेट के अन्दर वाले बाजार में। नृसिंह चौराहे के पश्चिमी- दक्षिणी कोने में बाजारी भवन है।
आप देखिये छावनी मार्ग पर हास्पिटल मार्ग के दोनो तरफ की सड़क वाली जमीन फेसिलिटी पर ठेठ तक जमीन पर मकान दुकाने आदि बन गए है। अमृतकौर अस्पताल के आस पास की जमीन सारी की सारी बिल्कुल पैक हो गई है। यहां तक की अब तो छावनी पार रेल लाईन पर डूंगरी रोड़ दोनों ओर की जमीन भी पूरी की पूरी पैक हो गई है। कई कालोनियां बस गई है। कोई कह नहीं सकता है कि यह भी जंगलाती जमीन रही है। तात्पर्य यह है कि यदि राज्य सरकार सन् 1956 में चाहती तो ब्यावर के शहर के बाहर की चारों ओर की जमीन पर शहर का विस्तार वैज्ञानिक आधार पर कर सकती थीं। परन्तु सरकार की ऐसा करने की ईच्छा शक्ति नहीं थीं इसलिए शहर के बाहर का विस्तार आज आपके सामने है। ब्यावर मे हजार बारह सो कालोनियां है परन्तु आधी से ज्यादा अभी भी अनडेवलप है। यदि आज भी ब्यावर विकास प्राधिकरण ब्यावर में हो तो अब जो विस्तार हो रहा है वह भली प्रकार से हो सकता है क्योंकि अब तो ब्यावर जिला मुख्यालय है जिसका सघन विकास होना सम्भव है। कई मायने में ब्यावर की प्रतिकृति अलग है। भौगोलिक, सामाजिक, व्यापारिक, औद्योगिक, आर्थिक, शैक्षणिक व चिकित्सा सम्बन्धी सभी प्रकार के भवनों का निर्माण सुचारु रूप से योजनाबद्ध हो सकता है। जमीन के उपलब्धता की कमी नहीं है। आवश्यकता है शासन को दिलचस्पी लेकर विकास कर समयबद्ध समय मे काम पूर्ण की। तब ही विकास हो सकता है। अन्यथा कदापि नहीं। आवश्यकता है जनप्रतिनिधियों द्वारा नैतिक जिम्मेदारी से निर्धारित काम जन भावना से पूरा करने की आकांक्षा की टीम स्प्रिट से।
देखिये ब्यावर का विकास सन् 1962 से अवरुद्ध है। उस बात को बासठ वर्ष हो गये है। इस काल तक तो विकसित ब्यावर को सर्वाेत्तम पायदान पर होना चाहिए था। परन्तु खेद के साथ लिखना पड़ रहा है कि सन् 1962 तक के ब्यावर के सब क्षेत्रों में किए गए एक सो 25 साल के शानदार विकास को भी धूली धूसरित कर दिया स्वार्थ की भावना के कारण से, जो नहीं होना चाहिए था।
अतीत में फक्र होता था जब ब्यावर के व्यापार और उद्योग की साख अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर लगातार सवा सो साल तक जारी रही। फक्र होता है जब ब्यावर के व्यापार उद्योग के अतीत के विकास का प्रश्न वर्तमान में आई. ए. एस., आई. पी. एस. या फिर पी एच डी की परीक्षा मे ब्यावर राजपूताना का मेनचेस्टर क्यों कहलाता है? पूछा जाता है या फिर पानी की व्यवस्था से सम्बन्धि प्रश्न होता है। आज की पांचवी पिढी के बच्चों को इसका समुचित ज्ञान होना चाहिये यदि उनको उनके एरिया से सम्बन्धित प्रश्न का ज्ञान साक्षात्कार में न हो तो बड़ा अटपटा लगता है। इसके ठीक विपरीत आज ऊल्टा प्रश्न होता है कि ब्यावर के अतीत के व्यापार और उद्योग का गौरव नष्ट क्यों हुआ? बड़ी लज्जा आती है।
उम्मीद है ब्यावर अब जिला बन गया। ब्यावर एक बार फिर से द्रुत गति से सभी सेक्टर मे विकास कर पुनः अपनी खोई हुई साख अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अर्जित अति शीघ्र करेगा ऐसा लेखक को विश्वास है। आप सभी ब्यावर जिले के निवासियों को बहुत बहुत धन्यवाद। आईये ब्यावर जिले के विकास में कन्धे से कन्धा मिलाकर योगदान करे।
ब्यावर जिला राजस्थान प्रदेश के मध्य में बसे होने के कारण यहाँ के निवासियों मे ऊर्जा शक्ति भरपूर है। इसी प्रकार ऊँचाई पर बसे होने के कारण मैधा शक्ति भी भरपूर मात्रा में है जो न दोहन की गई भू-सम्पदा और वन-सम्पदा जो यहां पर प्रचुर मात्रा में दबी भरी पड़ी है उसका इस क्षेत्र के विकास में उपयोग में लें।
18.02.2025
 
 

ब्यावर के गौरवमयी अतीत के पुर्नस्थापन हेतु कृत-संकल्प

इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker

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