‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से....... 
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✍वासुदेव मंगल की कलम से.......  

छायाकार - प्रवीण मंगल (फोटो जर्नलिस्‍ट)
मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर
Email - praveenmangal2012@gmail.com


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उन्नीसवीं व बींसवी सदी के ब्यावर की दूसरी किश्
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आलेख: वासुदेव मंगल, ब्यावर
ब्यावर के पास के जमीरदारों ने कोठिये भी ब्यावर में अपने रहने के लिए बनाई। जैसे बाघसुरी, मसुदा, रास के ठाकुर। इसी प्रकार अन्सारिया का मेडीकल हॉल और मजहर का ड्रीमलैण्ड बनी। इसी प्रकार तीनों मिलों के मिल मालिकों की हवेली, शाहपुरा मोहल्ले के प्रथम चौराहे के दक्षिणी-पश्चिमी कोने में सेठ ठाकुरदास खींवराज राठी की हवेली, डिग्गी मोहल्ले मे सेठ चम्पालाल रामस्वरूप की हवेली व कुन्दनमल लालचन्द कोठारी की हवेली मेवाड़ी बाजार में। इसी प्रकार बुलियन व्यापारियों की हवेली, जैसे लेखक के पूर्वज सेठ रामबगस खेशीदास का रामगढ़िया नोहरा, पिपलिया बाजार के चौराहे के दक्षिणी पश्चिमी कोने मे शंकरलाल मुणोत की हवेली, आगे जाकर सेठ धूलचन्द कालूराम कांकरिया की हवेली, बालूराम बोदूराम की हवेली, पाली बजार मे रामरिख जसराज खैतावत की हवेली, डिग्गी मोहल्ले के दूसरे चौराहे के उत्तरी-पश्चिमी कोने मे सेवाराम हंसराज की हवेली, सरावगी मौहल्लें में छोगालाल मोतीलाल की हवेली आदि। कहने का तात्पर्य यह है कि वूल-कॉटन के हाजिर व्यापार के साथ साथ उस समय ब्यावर नगर मे तेल-रुई और चाँदी के वायदे का व्यापार भी परवान पर था जो सीधा बम्बई, अमेरिका से जुड़ा हुआ था। हाजिर व्यापार के कारण कई विलायती दफ्तर ब्यावर में थे राजपूताना में उस समय मात्र ब्यावर तिजारत मे अग्रहणी शहर था। उस समय मात्र सिन्ध प्रान्त का मीरपुर खास व पंजाब प्रान्त का फाजिल्का ऊन और रुई के हाजिर व्यापार मंे भारत में ब्यावर के समकक्ष थे। अतः करीब करीब भारत देश के अन्य सभी प्रान्तों के व्यापारियों की शहरों से ब्यावर मंे आवाजाही थी। जैसेः-उत्तर भारत का कानपुर शहर, मध्य भारत का इन्दौर शहर और बम्बई प्रान्त के अहमदाबाद, राजकोट और भावनगर शहर।
तत्कालिन ब्यावर के उन्नत व्यापार और उद्योग का सीधा सीधा कारण यह था कि इन जिन्सों (वस्तुओं) का व्यापार सीधा विलायत के इंग्लेण्ड से होता था समुद्री के जरिये कराची बन्दरगाह से। ब्यावर में गुड्स ट्रेन के जरिये वाया मारवाड़-जंक्शन-जोधपुर- बाड़मेर से सीधा कराची से जुड़ा हुआ था जो इंगलैण्ड के लंकाशायर यार्कशायर और मेनचेस्टर के औद्योगिक शहरों से आदान प्रदान होता समुद्री मार्ग से जहाजों के जरिये। अतः ब्यावर का बाजार गुलजार था व्यापार और उद्योग में। अजमेर तो मात्र धार्मिक नगर था। ब्यावर मे हुण्डी-बिल्टी से सहुलियत थी जिसके जरिये साख कायम थी।
यह तो कभी सोचा भी नहीं था कि स्वतन्त्रता के बाद हमारी सरकार ब्यावर के उन्नत व्यापार को ठप्प कर देगी। ऐसी सरकार से उन्नति की क्या उम्मीद करें? बाजार में, चारों ओर बड़ी चहल-पहल थी। सालभर कई-कपास और ऊन की अलग अलग आठ-दस हजार ऊँट-बैल गाडियाँ ब्यावर के मार्केट में आती। चारों ओर मेला लगा रहता दिनभर। बड़ा रुतबा था व्यापार का। इसीलिये सामाजिक उन्नयन भी गजब का था क्योंकि व्यापार के साथ जुड़ा हुआ था। इसीलिये ब्यावर मे जीवन स्तर भी उच्च था। जगह जगह गौशाला और पाठशालाएँ, औषधालय, धर्मशालाएँ, अनाथालय। सभी धर्मों की आस्था अर्थात अनेकता में एकता संस्कृति की जीवन्त झलक। आर्थिक चक्र तेजी से घुमता। सभी लोग खुशहाल थे। इस प्रकार का मेरा ब्यावर शहर था जिसका क्या बेहाल हुआ है? सबों को रोजगार सुलभ था। सादा जीवन था। शुद्ध खाना शुद्ध विचार। सबों में सहृदयता मानवीयता थीं सब एक दूसरे के दुख मे सहभागी। सस्ता जमाना था। पैसें की बरकत थी। मुद्रा की क्रय शक्ति स्थिर थी। सभी प्रकार की उपभोक्ता वस्तु प्रचुर मात्रा में प्राप्त थी। सभी लोग मेहनती थे। सुख दुख के भागीदार थे। अपनत्व की भावना थी। आवश्यकता सीमित थी। पूरा शहर शिल्प की बेजोड़ कला पर आधारित था। आप देखिये चारों मुख्य बाजारों मैं चालीस फीट चौड़ी सड़के फिर एक-एक फीट सड़क की नाली, फिर पांच-पांच फीट पगडण्डी उसके बाद दस-दस फीट की चबूतरी के ऊपर टिनशेड़। इस प्रकार बहत्तर फीट चौड़ी सड़क। इसी प्रकार मोहल्लों की सड़क तीस फीट चौड़ी फिर गन्दे पानी की नाली फिर पांच-पांच फीट चबूतरी। तो यह थी ब्यावर शहर की बसावट। उनमने मन से लिखना पड़ रहा है कि स्थानीय निकाय शासन की बेरूखी के कारण अब यह शहर भी बदइन्तजामी का शिकार हो गया है। पूरे बाजार व मोहल्लों की आवागमन के रास्ते अतिक्रमण से अटे पड़े रहे। कहीं वाहनो की पार्किंग तो फिर कहीं पर हाथ थेलों की पार्किंग की रेलमपेल। पूरा का पूरा शहर विकृत हो गया है। बाजारों में दुकानों के इसी प्रकार गलियों में घरो के आगे के नजरूल के चबूतरों को नगर की स्थानीय निकाय द्वारा बेच दिये जाने से सारा शहर सिकुड़ कर बदरंग हो गया है। जयपुर की तरह ब्यावर में भी दुकानों के चबूतरों की जगह पक्के बरामदे बना दिये जाते तो ब्यावर के बसावट की बदरंग जैसी यह दुर्दशा आज नहीं होती। बाजार और गलियों के रास्तो की सड़के सिकुड़कर कहीं कही तो पांच फीट तक रह गई। क्या हश्र हुआ है एक सुन्दर शहर का। तरस आता है स्थानीय निकाय प्रशाासन पर। शहर का सुन्दर परकोटा धरोहर थी जिसको नष्ट कर दिया गया। कितनी तरक्की की है शहर ने।
03.02.2025
 
 
 

ब्यावर के गौरवमयी अतीत के पुर्नस्थापन हेतु कृत-संकल्प

इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker

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