‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से....... 
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✍वासुदेव मंगल की कलम से.......  

छायाकार - प्रवीण मंगल (फोटो जर्नलिस्‍ट)
मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर
Email - praveenmangal2012@gmail.com


ब्यावर की उन्नीसवीं-बीसवीं शताब्दी की चौथी किश्त
आलेखः वासुदेव मंगल, ब्यावर
आप देखिये डिवसन ने शहर के पूरब में बिचड़ली तल्लैया को गहरा, चौड़ा करवा कर एक सुन्दर तालाब की संरचना की। तालाब के उत्तर में सुन्दर, खूबसूरत मजबूत पाल बनवाई। बीच में भजन कुण्ड बनवाया और पानी की आवक के लिये नाले के जरिये दक्षिण में सेदरिया के तालाब से जोड़ा। तालाब के साथ ही पास के उत्तरी दिशा में एक सुन्दर कम्पनी बाग बनवाया जिसमें तरह तरह के लगभग दस हजार पेड़ लगाए। आप देखिये, तालाब में तरह तरह के पक्षी अठखेलियां करते थे। इसी प्रकार बाग में पेड़ो पर तरह तरह के रंग-बिरंगे फूल खिले रहते। पेड़ों पर तरह तरह के रंग बिरंगे पक्षी कलरव गान करते रहते थे। बड़ा ही सुन्दर नयनाभिराम नजारा मन को प्रसन्न करने वाला दृश्य था। परन्तु खेद के साथ लिखना पड़ रहा है कि अब बगीचे की वह अतीत की प्राकृतिक छठा दृष्टिगोचर नहीं। लगभग बाग मे पेड़ो को काटकर एक लम्बा चौडा मैदान बना दिया। इसी प्रकार शहर के अन्य सारे पार्कों को बेहाल कर दिया। बिचडली तालाब का अस्सी प्रतिशत हिस्सा पाटकर कालोनियों बना दी गई। सैर-सपाटे के लिए शहर में एक बाग था जिसका सफाया कर दिया।
आपको बताया कि ब्यावर की जल जंगल जमीन स्वतन्त्र होने से सभी प्रकार के माफियाओं के गठबन्धन ने पूरे शहर को मटियामेट कर दिया। रही-सही कसर सिमेण्ट फैक्ट्री ने पूरी कर दी पचास साल में। अब ब्यावर मे क्या बची है? परकोटे का सफाया कर दिया। क्रॉनिकल व्यापार उद्योग का सफाया कर दिया। बाकी की कसर जमीनों पर सड़कों पर अतिक्रमण करके पूरी कर ली। सारे शहर का सफाया कर दिया। बेडा गर्ग कर दिया।
आप देखिये ब्यावर पश्चिम-दक्षिण की ऊँची पहाड़ी से पूर्व-उत्तर के पठारी ढलान पर बसाया गया शहर होने के कारण बरसात का सारा पानी शहर के डिग्गी चौक में तालाब की शक्ल में बदल जाता है जिसका निकास नाले के जरिये छावनी नदी में कर रखा है। परन्तु दो कारण से बरसाती पानी रोक दिया गया है। पहला तो डिग्गी चौक से भगत चौराहे के नाले की सफाई नहीं होने से कचरे से भरा हुआ है। दूसरा कारण नदी में जगह जगह निर्माणकर अतिक्रमण के जरिये नदी को ही रोक दी है जगह जगह से। अतः जब तक इस समस्या का स्थाई समाधान नहीं होगा यह ऐसे ही रहेगी।
आप देखिये हाईवे पर अजमेर रोड पर जगह जगह मैरिज होम बनाकर कही कही पचास पचास दुकानों का मार्केट बनाकर, कहीं होटल बनाकर तो कहीं पेट्रोल पम्प बनाकर पूरे शहर के आवागमन को चारों तरफ अवरूद्ध कर दिया गया हैं। अगर ब्यावर विकास प्राधिकरण होता या फिर नगर सुधार न्यास होती तो शहर में यह नौबत नहीं आती। शहर का विस्तार वैज्ञानिक आधार हो।
अब जिला बनने से उम्मीद बनी है कि शहर का विस्तार शिल्प आधार पर होगा। सन् 1965 में चम्पानगर में लक्ष्मीनारायण-मीरा मन्दिर बना। इसके लिये जमीन रामकुमारजी खेतावत ने दी थी तो मन्दिर की भव्य ईमारत श्री रामेश्वरलालजी बजाज मालिक फर्म ओंकारजी गुलाबचन्द वालों ने बनवाई। यह मन्दिर तत्कालिन मजिस्ट्रेट श्री नरेन्द्र कुमार जी भार्गव की प्रेरणा से बना। इसी प्रकार सन् 1965 में ही इन्हीं भार्गव साहिब की प्ररेणा से एक ओर काम हुआ। वह था ब्यावर-नसीराबाद-केकडी अर्थात् बी. एन. के. होलसेल उभोक्ता भण्डार का खोला जाना। आप देखिये इसे साठ बरस हो गये है।
सन् 1975 में सुभाष उद्यान की पाल पर बालाजी का मन्दिर बनवाया गया। इसे भी 50 पचास साल हो गए।
वर्तमान में अब शहर की परिधि लगभग नो किलोमीटर के दायरे में हो गई है। अतः अब आवागमन हेतु सिटी बस सेवा जरूरी हो गई। दूसरा बात जिला मुख्यालय, होने से जिले में आने वाली तहसीलों, पंचायतों, उपखण्डों के लोगों की आवाजाही भी ब्यावर में हो गई है। अतः नियमित सुचारु परिवहन सेवा सुनिश्चित की जानी ज्यादा चाहिए। क्योंकि ब्यावर चारों तरफ के मार्गों का संगम स्थान भी है। अतः इसका महत्व और भी ज्यादा है। जयपुर, जोधपुर, उदयपुर का मिड-वे भी ब्यावर ही है। जो काम सन् 1975 में हो जाना चाहिए वह काम, आज पचास साल बाद में हो रहा है। बडी ताजूब्ब की बात है। आज भी सृजनात्मक कार्य होते हैं वो ब्यावर पुनः एक बार, विकसित जिला बन सकेगा। यहाँ के निवासियों में मेघा और ऊर्जा शक्ति भरी पड़ी है। सरकार को तो मात्र बूस्ट करने की जरूरत है। फिर आप देखिये ब्यावर कितनी रेपिड ग्रोंथ करता है।
अब तो ब्यावर मेे जिला परिषद भी होगी। हो सकता है ब्यावर निगम बन जाय हो सकता है ब्यावर प्राधिकरण बन जाये। आगे जाकर ब्यावर एक संसदीय क्षेत्र भी बन जाये। सम्भावनाओं पर तो दुनिया कायम है।
ब्यावर तो पथरीला जंगल था। एक विदेशी के जेहन में विचार आया और उस मसीह ने उसे फरटाईल बफर मेरवाड़ा स्टेट का मुर्त रूप दे दिया। इसलिये असम्भव कोई काम नहीं है। मात्र काम करने की भावना जागृत होनी चाहिए। इसी धरती को उन्होंने सबसे ज्यादा ऊपजाऊ बनाया। इसकी सीमा उत्तर मे नरवर दक्षिण में दिवेर पूरब में वघेरा और पश्चिम में बबाईचा बनाया। यह वही परिधि है जो वर्तमान में ब्यावर जिला बना है एकसो 90 साल मंे वह भी राजस्थान जैसे सामन्त शाही भारत के सबसे बडे प्रदेश का। आप देखिये सब्र का फल मीठा होता है यह एक इतफाक ही था लेखक को सन् 1990 में तत्कालीन आई.ए.एस. ब्यावर के ट्रेनी आफीसर एस.डी.एम. डाक्टर बी. शेखर साहिब ने मात्र चार पेज का ब्यावर का इतिहास ‘सेतु पत्रिका’ हेतु लेखक से लिखवाया था। यहीं से लेखक में ब्यावर को जानने की जिज्ञासा जाग्रत हुई। फिर लेखक ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा अनुसन्धान करते करते आज लेखक फ्रीलान्सर बन गया है इस फील्ड में पिछले पैतिस सालों के अथक प्रयास से। लेखक एक साधारण व्यक्ति है परन्तु सच्ची लगन से यह मुकाम हासिल हुआ है। आप देखिये ब्यावर के संस्थापक कर्नल चार्ल्स जॉर्ज डिक्सन (सी.जी.डिक्सन) जिन्होंने स्क्रैच ऑफ मेरवाड़ा लिखी। ब्यावर वास्तव में नैसर्गिक स्थान है जो हुबहू उनके स्काटलैण्ड जैसा है। बस इसी प्रेरणा ने उन्होंने इस जगह को यह मुर्त रूप दिया। वो साथ लेकर क्या गए? वो तो इसी मिट्टी में दफन हुए। लेकिन उनके प्यार और दर्द के उस इन्सानी जज्बे ने हमारे पूर्वज को यहाँ बुलाकर आबाद कर दिया कितनी बड़ी फक्र की बात है। ज्योंही आप कोई सवाल करते हैं या पूछते है तो इससे सम्बन्धित चिन्तनरूपी तरंगें दिमाग में उठने लगती है। ये तरंगें मन्थन के साथ उत्तर खोज लेती है और आपके प्रश्न का उत्तर सामने होता है। परन्तु यह विद्या बहुत कठिन एकाग्रचित्तता से निरन्तर नियमित विचार श्रृंखला विशेष से प्राप्त होती है। कठिन साधना से ही माँ सरस्वती की कृपा होती है।
इसिलिए आपको कह रहा हूँ कि कोई भी काम कठिन नहीं है। हाँ शुद्ध मन से सच्ची लगन उस काम को करने के लिए होनी चाहिए। ब्यावर में एज्युकेशन का कल्चर है, शिक्षा की ग्रोथ है। इसी प्रकार हैल्थ का कल्चर है हैल्थ की ग्रोथ है। इसी प्रकार सामाजिक सरोकार का एटमोस्पीयर है। सामाजिक सरोकार का जज्बा है।
आइये आप ब्यावर जिले के विकास में सक्रिय योगदान दीजिए। आपका बहुत बहुत धन्यवाद। ब्यावर की कई महान विभूतियां है जिनके करेक्टर लेखक के पास नहीं होने के कारण उनका चित्रण नहीं किया जा रहा है। जैसे स्थानीय सनातन कॉलेज के वाईस प्रिन्सीपल श्री रामकिशोरजी भार्गव जिन्होंने एलजेबरा (बीजगणित) की खोज की और लिखी आदि ड्राईंग के टीचर श्री जगदीश नारायणजी जोशी जो सनातन धर्म प्रकाशनी स्कूल में थे।
ब्यावर व्यायामशाला की धरती रही है। यहां पर अतीत में अनेक व्यायाम शालाएं थी। ब्यावर अनेक विधाओं की स्थली रही है। यहां पर कई महापुरुष अवतरित हुए हैं और पल्लवित हुए है। जैसेः- ब्रहम्मानन्द जी महाराज, रामप्रतापजी शास्त्री आदि। सन् 1958 में जनजाति बच्चों के परिगणित जाति के बच्चों के लिए पूर्व प्राथमिकी विद्यालय पुरानी सिनेमा गली, रॉयल टाकीज गली में, कुन्दन भवन गली में व नया बास गली में खोली थी वो सब पुर्व प्राथमिकी विद्यालय लगभग पचास साल चलाये जाने के बाद सबकी सब बिना किसी कारण के बन्द कर दी गई। आप देखिये उन विद्यालयों का आस्तित्व ही सन् 2000 आते आते करीब करीब समाप्त कर दिया गया। अब उन सब जगह आलेशान भवन बन गये है। रायल टाकीज के पास तो आलीशान कॉम्लेक्सनुमा मार्केट बन गया है। इस प्रकार सब पूर्व प्राथमिक विद्यालयों को पचास साल लगातार चलाये जाने के बाद पूरा अस्तित्व समाप्त करना समझ में नहीं आता है।
10.02.2025

 
 

ब्यावर के गौरवमयी अतीत के पुर्नस्थापन हेतु कृत-संकल्प

इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker

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