‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से....... 
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✍वासुदेव मंगल की कलम से.......  

छायाकार - प्रवीण मंगल (फोटो जर्नलिस्‍ट)
मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर
Email - praveenmangal2012@gmail.com


डिक्सन रूपी छत्री आस्था का खुला झरोखा जिसकी चारों दिशाएँ ही अम्बर है
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आर्टिकल - वासुदेव मंगल फ्रीलान्सर, ब्यावर
आपको पहले वाले ब्यावर के आर्टिकलों में लेखक ने ब्यावर छावनी, ब्यावर शहर, मेरवाड़ा बफर स्टेट, ब्यावर के मर्केण्टाईल ऊन काटन का व्यापार (तिजारत), कामर्शियल एक्टीविटीज, ब्यावर भारत की जंगी आजादी का गौरिल्ला युद्ध स्थल, धार्मिक सहिष्णुता का केन्द्र, सामाजिक उत्थान के रण कौशल वाला स्थान, आदि वृतान्त के साथ रेल्वे के उन्नत स्टेशन के साथ, ब्यावर शहर का तत्कालिन इण्डस्ट्रिल स्वरूप की संरचना के बारे में विस्तार से बताया।
चूंकि ब्यावर शहर की संरचना सनातन धार्मिक स्वरूप पर चारों बाजार के, ग्यारह चौराहों के साथ प्रत्येक मोहल्ले के मार्ग को इनके चोराहों से जोड़कर एक सुन्दर शिल्पकला के आधार पर चारों दिशाओं में चार खूबसूरत दरवाजों को रक्षात्मक चार दीवारी से जोड़कर बसाया गया शहर है जो ईसाई धर्म के पवित्र सलीब की आकृति पर हूबहू बनाया गया है।
आकृति में क्रोस की चारों पट्टिकाओं के मध्य बिन्दु पर मुख्य चौपाटी बनाई गई। यह ही शहर का आधार बना। इसी चौपाटी को महत्वपूर्ण मानते हुए कालान्तर में सन् 1885 ईस्वी में यहां पर संस्थापक के नाम सभी धर्मो का आस्था रूपी सफेद संगमरमर का छतरीनुमा चबूतरा सभी मर्चेन्ट एसोशियेशन के तत्वाधान में खुला झरोखा बना दिया जहां पर सभी लोग धोक लगाने लगे।
चूंकि यह काल ब्यावर में व्यापार के साथ साथ रेल्वे का आवामगन होने से इण्डस्ट्रिज् का समय था जहां नित नये उद्योग लगाने शुरू हुए जिससे ब्यावर का त्वरित गति से विकास होने लगा। ब्यावर के लिये यह स्वर्णिम काल का उदय था। जिससे आस्था के झरोखे पर यहां की प्रजा का श्रद्धारूपी विश्वास अटूट होता गया। निरन्तर आस-पास के गावों के लोग भी इसे देवरे को धोकने लगे। अतः यह चौपाटी डिक्सन छत्री के नाम से पुकारी जाने लगी। यह समा यों ही सदा निरन्तर चल रहा था। इसी दरम्यान देश आजाद हो गया। वैसे तो इस शहर में सदा ही श्रद्धा का वातावरण रहा। हाँ राजनैतिक दृष्टि से विचारधारा में थोड़ा यहां के स्थानीय राजनीतिज्ञों में परिवर्तन आजादी के बाद जरूर परस्पर देखने में आया। 1945 में घीसूलालजी जाजोदिया व स्वामी कुमारानन्दजी कम्युनिस्ट विचाराधारा के हो गए। दूसरी तरफ 1948 में बृजमोहनलालजी शर्मा ने मिल मजदूरों का एक अलग गुट आल इण्डिया टेªड़ युनियन कांग्रेस से अलग बना लिया जिसका नाम उन्होंने इण्डियन नेशनल टेªड़ यूनियन कांग्रेसी रक्खा। इसके विपरीत ब्यावर के एक अन्य स्थानीय नेता चिम्मनसिंहजी लोढ़ा मिल मालिाक की तरफदारी करने लगे परिणाम यह हुआ कि यहां कि इण्डस्ट्रिज का राजनीतिकरण हो गया जिसका असर स्थानीय व्यापार पर भी हुआ। एक मजदूरों के पेरोकार बने यह तो दूसरे मिल मालिकों के पेरोकार बने। सन् 1957-58 में एक अनहोनी घटा ब्यावर में हुई कि लोढ़ाजी ने बाजार में बनी डिक्सन छत्री के ऊपर चार आर सी सी के पिलर खडे कर विटठ्ल टावर बना दिया। इस निर्माण का शहर में जबरदस्त विरोध होने लगा। यहां तक कि ब्यावर के एक जागरूक नागरिक कन्हैय्यालालजी पौद्धार की जनहित याचिका के अन्तर्गत राजस्थान उच्च न्यायालय के निर्णय से विटठ्ल टावर हटाने के आदेश की पालना में तत्कालिन ब्यावर नगर पालिका अध्यक्ष श्री गंगाविशनजी जोशी ने सन् 1972 ईस्वी में विटठ्ल टावर गिराने के साथ साथ डिक्सन छत्री भी गिरा दी और उसके स्थान पर पाँचबत्ती लगा दी। अतः पूजा स्थल पर गन्दगी रहने लगी। जानवरों का जमघट रहने से ब्यावर शहर के भाग्य ने पल्टा खाया। चूंकि जो ब्यावर एक मेरवाड़ा बफर स्टेट था उसको राजस्थान प्रदेश में मिलाने पर अजमेर जिले का एक अदना सा सब डिवीजन बना दिया था 1 नवम्बर 1956 में जिस समय बृजमोहनजी राजस्थान में मिनिस्टर थे। चिम्मन सिंह जी ब्यावर नगर पालिका के चेयरमेन थे। अतः इनकी आपसी सियासी लड़ाई में ब्यावर का कितना बड़ा नुकसान इन्होंने कर दिया कि 121 साल के अतीत के व्यापार और उद्योग को दाव पर लगा दिया। परिणाम यह हुआ कि सन् 1975 में बाहर का प्रवासी डिडवाना से आकर बाँगड़ सेठ ने पिछले पचास वर्षों में सन् 1975 से लेकर 2023 की अगस्त छ तक ब्यावर को नेशनाबूद कर दिया। अब अगस्त 7 या 8 तारीख 2023 में राजस्थान के तत्कालिन मुख्यमन्त्री ने पुनः ब्यावर को राजस्थान का जिला बनाया है। अब इसके विकास की आस जगी है।
हाँ तों इस प्रकरण में प्रसंग चल रहा है डिक्सन छत्री आस्था का खुला झरोखा जो 1885 में बनाया गया जहाँ पर सभी धर्मो के लोग अपने अपने मजहब के अनुसार आस्था रूपी सजदा करते रहे जब तक 1972 ईसवीं में इसको गिरा नहीं दिया गया तब तक। तो डिक्सन छत्री 1885 में बनी। इसके ऊपर विटठ्ल टावर दूसरा स्वरूप सन् 1958ई. में हुआ और तीसरा स्वरूप सन् 1972ई. में इसकी जगह पाँच बत्ती लगा दी गई। जब ब्यावर की जनता (पब्लिक) बहुत अधिक परेशान हो गई देवदोष से तो इसे दूर करने के लिए ब्यावर की पब्लिक का इसे दोबार बनाने का मानस बना।
इस श्रृंखला के अन्तर्गत अप्रेल सन् 2005 में इसे हूबहू बनाकर फिर से मूर्तरूप दे दिया गया। ऐसा करने से दोष दूर होकर ब्यावर एक बार फिर अमन के रास्ते पर विकास करने लगा। फिर से सन् 2005-2006 में ब्यावर में जमाना हुआ। क्या व्यापारी, क्या किसान, क्या मजदूर क्या सेठ साहूकार सभी खुशहाली महसूस करने लगे।
कहते है न कि यह खुशहाली अधिक नहीं रह सकी। यह छत्री का चौथा स्वरूप 13 जनवरी सन् 2007 की रात्री को 12 बजे बाद एक बार फिर इसी छत्री के चबूतरे पर बिना प्राण प्रतिष्ठा के मूर्ति बैठा दी गई। अतः दुबारा एकता सर्किल के नाम से जो दोष दूर किया गया था सन् 2005 में वह फिर से पैदा कर दिया गया उस वक्त ब्यावर में रणवीरसिंह जी जोधा तहसीलदार कार्यरत थे जो 13 जनवरी 2007 को उपखण्ड अधिकारी का कार्य भी देख रहे थे। तब से लेकर अभी तक यह दोष फिर से कायम है। इन्हीं जोधाजी को बाद में जोधपुर में दो साल बाद में चन्दानी आयल मिल के केस में नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। आप देखिये इस दोष को फिर से 18 साल हो गए।
तो डिक्सन छत्री का यह पांचवा रूप है। वर्तमान में जो 13 जनवरी सन् 2007 में बदला गया।
समझ में नहीं आता लोग ऐसा क्यों करते हैं? ऐसा करने से इनको क्या मिलता है? अपने शहर के ईलाके को ही बर्बाद कर रहे है ऐसा करके, मुट्टीभर, दकियानूसी विचारो के, लोगों के द्वारा। ऐसा इन्द्रेशजी ने किया जो चन्द लोगों द्वारा कराया गया।
आप देखिये इसको भारत माता सर्किल के नाम से पुकारते है ये लोग परन्तु इसी भारत माता सर्किल पर न तो ध्वजा है, न ही पूजा, और न ही नियमित आरती। यह तो सरासर मूर्ति का अपमान हो रहा है और ऐसा करने वाले लोग अपने आप में दम्भ भर रहे है कि हमेन जो किया है अच्छा किया। यह तो ब्यावर की जाहिराना बर्बादी हो रही है तब से जब से चोरी चुपके मूर्ति को उस रात लगाया गया है तब से। इसमें कौनसी शाबाशी है? समझ में नहीं आता। यह तो पूरे शहर का नुकसान हो रहा है तब से। ब्यावर तो हमेशा स्थापना से ही अमन का ईलाका रहा है। आप देखिये डिक्सन छत्री के 1885 के पांच रूप हो गए।
पहला 1885 में डिक्सन रूपी आस्था का ख्ुाला झरोखा
*दूसरा 1958 में डिक्सन छत्री के ऊपर विटठ्ल टावर *
तीसरा 1972 में पांचबत्ती
चौथा 2005 की जुलाई में फिर से एकता सर्किल के नाम से छत्री
पाँचवाँ 2007 की 13 जनवरी की रात को 12 बजे बिना प्राण प्रतिष्ठा के रक्खी गई मूर्ति के नाम से भारत माता सर्किल।

भगवान इनको सद्बुद्धि दे। ये लेखक के अपने विचार है। अब जाकर के यह जिला बना हैं अब ब्यावर की कायाकल्प होगी। एक बार पुनः जल्दी यह भारत का सर्वोत्तम जिला बनेगा लेखक का ऐसा विचार हैं। सबको नये साल की शुभकामना।
 

 

ब्यावर के गौरवमयी अतीत के पुर्नस्थापन हेतु कृत-संकल्प

इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker

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