‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से....... 
www.beawarhistory.com
✍वासुदेव मंगल की कलम से.......  

छायाकार - प्रवीण मंगल (फोटो जर्नलिस्‍ट)
मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर
Email - praveenmangal2012@gmail.com


-----------------------------------
ब्यावर की सन् 1900 तक की बसावट का वर्णन
-----------------------------------
आलेख: वासुदेव मंगल, ब्यावर
ब्यावर छावनी वि-अवेयर के नाम से सन् 1823 ईसवी में मेरवाड़ा पर नजर रखने के लिये हाईवे के उत्तर दिशा मे अजमेर जाने वाले मार्ग पर बनाई गई अंग्रेजी छावनी के रूप में कर्नल हैनरी हॉल की सदारत में। ठीक हाईवे के दक्षिणी मार्ग पर छावनी के सामने वाले मार्ग पर कर्नल चार्ल्स जॉर्ज डिक्सन ने एक फरवरी सन् 1836 मे चार दीवारी बनाकर सिविल कॉलोनी अर्थात् नया नगर के नाम से वि-अवेयर शहर बसाया जिसे सन् 1838 ईसवी मंे वूल-कॉटन की नेशनल मर्केण्टाईल ट्रेड सेण्टर बनाया जाने के साथ चौरासी राजस्व गांवों के समूह के नाम से मेरवाड़ा बफर स्टेट बनाकर ब्यावर को इस स्टेट का हेड क्वाटर बनाया। अतः प्रशासक - बंगले परकोटे के बाहर ही बनाये गए। आरम्भ प्रशासन के कार्यालय चार दीवारी में ही बनाये गए सुरक्षा के लिये जिसमे स्कूल अस्पताल म्युनिसिपल कमेटी आदि शुरू मे छावनी का कार्यालय 1823 सन् का अभी हाल ही में बाद तक एस.डी. एम. के दफ्तर के साथ चार अमले चार राजदूतावास क्रमशः इंग्लिश - रेजीडेन्सी, मेवाड़, मारवाड़ और मेरवाड़ा रेजीडेन्सी के नाम से सन् 1937 तक कायम रही।
इसीलिए ब्यावर शहर का विस्तार सन् 1937 के बाद से ही चार दीवारी बाहर होने लगा। इससे पहले यह चार दीवारी में ही सीमित था। परन्तु ईसाई मशीनरी के सन् 1859 में आने के बाद परकोटे के बाहर मशीनरी के पादरियों के मकानों के साथ ईसाई लोगों के मकान ही बाहर थे। जिससे मिशन बायज स्कूल 1872 में बाहर ही बनाया गया जहाँ पर पढ़कर सेठ दामोदर जी राठी ने मैट्रिक की डिग्री ली। बाद में 1876 ई0 में रेल्वे स्टेशन भी बाहर ही बनाया गया। इसी कारण प्रेसिंग फैक्ट्रिज भी बाहर लगने लगी और सूती कपड़े की मिल्स भी चार दीवारी बाहर ही लगी। ये सब 1890 में लगनी शुरू हुई थीं जिसमे कृष्णा मिल्स, श्यामजी कृष्ण वर्मा का राजपूताना कॉटन प्रेस। लेखक के पूर्वज सेठ गजानन्दजी का युनाईटेड कॉटन प्रेस चॉग गेट बाहर बना, इधर सेठ चम्पालालजी ने खुरजा से आकर अजमेरी गेट बाहर सेन्ट्रल जेल के पिछवाड़े मे रोड के उस पार नदी के किनारे नसिया भी 1892 में बनाई।
रामरतनजी चतुर्वेदी ने जो डिक्शन के मुन्शिनदार थे, ने परकोटे के बाहर चांगगेट से लेकर म्युनिसिपल दफ्तर तक के पास तक की जमीन मात्र पचास रुपये में ईसाई मशीनरी को बेच दी थी जो बीच मंे मिशन बायज स्कूल के साथ दोनों तरफ मिशन ग्राउण्ड है। सन् 1896 में सेठ खींवराजजी राठी ने चाँग गेट बाहर टाटगढ़ रोड पर जानवरों का वेटरनरी अस्पताल बनाया। मिशन बॉयज् स्कूल के सामने हाईवे के दक्षिण ईमारत में ईसाई बच्चों का हास्टल था और प्रेस था जहाँ पर प्रिन्टिंग का काम लीथो स्याई से होता था। बाद में यहीं ईमारत सन् 1900 ईस्वी मे मिशन गर्ल्स स्कूल बनी।

स्टेशन के पास सेठ धूलचन्द कालूरामजी कांकरिया ने कांकरिया घरमशाला और सेठ सेवाराम हँसराजजी ने धरमशाला बनाई।
छोटे साहब के कोर्ट के पास ही उसी समय मुन्शिफ कोर्ट भी बनाई गई। इसके अलावा कोई-कोई बगीची चारों दरवाजे बाहर ही बनाई गई थी सन् 1900 ईसवी तक दरवाजे बाहर कोई आबादी नहीं थी मात्र ईसाईयों के मकान थे या फिर सरकारी अमले थे कोई कोई। मात्र छावनी की बस्ती थीं। हाँ पोस्ट आफीस की ईमारत थीं। गोडाश्राम था अजमेर रोड़ पर। इधर सुरजपोल बाहर कम्पनी बाग बिचडली तालाब उसके पहले सेदरिया तालाब, जैन दिगम्बर की नसियां। बलाड़ को तालाब, गढ़ी थोरियान तालाब से आने वाली नदी मसानी नदी के किनारे तेलियान कुआ, नारायणदास लोहिया की बगीची, फिर गढ़ी का रास्ता फिर हिरालाल जगन्नाथ की बगीची फिर बालाजी की बगीची। इधर बिजयनगर रोड़ पर तालाब के सामने दादा वाड़ी जैन श्वेताम्बर की फिर बालूराम बोदूराम की बगीची, फिर माहेश्वरी बगीची।
हाँ चारों दरवाजों बाहर डिक्सन साहिब की ब्यावर शहर के नागरिकों व मवेशीयों के लिये बनवाई गई अन्य खूबसूरत पानी की लिये बाबड़ी स्थित रही थी। परन्तु खेद के साथ लिखना पड़ रहा है कि इन चारों बावड़ियों को खुर्द बुर्द कर दिया गया। अजमेरी दरवाजे बाहर की बावड़ी पर रामद्वारा बनाकर पूरी जमीन चार दीवारी बनाकर घेर ली गई। चांग दरवाजे बाहर मंगल टॉवर बन गया। मेवाड़ी दरवाजे बाहर की बावड़ी समूल खुर्द बुर्द कर दी गई और सुरज पोल बावडी पर बज्जर बट्टू का मन्दिर बन गया। इस प्रकार चारो बाबड़ी समाप्त कर दी गई। काली माई का मन्दिर भी पुराना है जो गणेशजी की गणपति के मन्दिर के पश्चिम में रास्ते के पार बना हुआ है। अजमेरी गेट बाहर पोस्ट आफिस के सामने हाईवे पर रामरतन जी चौबे को डिक्सन साहिब ने लक्ष्मी मन्दिर के लिये जमीन दी वह मन्दिर आज भी मौजूद है। नदी के किनारे आगे अजमेर रोड़, पर जोधराजजी की बगीची पर अब रोडवेज का बस स्टेण्ड है, आफिस है। उसके बाद नदी ने मोड़ लेकर पश्चिम दिशा मे फतेहपुरिया बगीची के सहारे अजमेर रोड पार कर मोहम्मद अली स्कूल के उत्तरी किनारे के साथ एस डी एम कोर्ट के पिछवाड़े उत्तर दिशा मे छावनी की ओर मुड़कर रेल पटरी पार कर डूँगरी रोड भोमिया के मन्दिर के पास रोड पार कर नून्द्री नदी में मिल गई जो आगे जाकर मकरेड़ा के तालाब मे जाकर मिल गई। चांग गेट बाहर स्टेशन के पास नवल गढ़ के मोतीलालजी चौखाणी जी का न्यू कॉटन प्रेस। इधर हाईव के दक्षिणी मोड़ पर आगे जाकर सड़क के पश्चिम में किशनगंज फिर सड़क के किनारे चिरंजी लालजी भगत की बगीची। फिर चांग चिताड़ रोड़ पार कर लेखक के पूर्वज के प्रेस की जमीन पर महावीर गंज, चांग चित्ताड़ रोड पर ही आगे जाकर उत्तरी किनारे राठीजी की बगीची, पश्चिमी किनारे संचेती होजियरी फैक्ट्री पर अब सुन्दर नगर विद्यमान है। फिर रेल लाईन आ गई। इसी प्रकार मेवाड़ी दरवाजे बाहर कुन्दन मल लालचन्द की बगीची, इधर टाटगढ़ रोड पर मुकुट बिहारी लालजी भार्गव की बगीची। फिर आगे जाकर टाटगढ़ रोड पर जैन गुरुकुल स्कूल। उधर अजमेर रोड पर मोती का बाड़िया, फिर रघुनाथ जी जालान की बगीची, फिर सेवाराम हंसराज की बगीची, फिर जवाहरमल चांदमल की बगीची, फिर लक्ष्मी नारायण मुनीमजी की बगीची, फिर गोड आश्रम। अजमेर रोड़ के पूर्वी दिशा में धापी बाई कुन्ज की बगीची, कल्याण मल तेजराज की बगीची, जसराज खेतावत की बगीची है। तो यह स्थिति लेखक ने सन् 1900 ईसवी तक की बताई है। अजमेरी गेट बाहर रामनारायणजी लक्ष्मी नारायणजी माथुर की बगीची जिसमे बंगाली बाबा रम-रम रहते थे। सेठजी के नसियां के सहारे दक्षिणी मंें नदी वाले रास्ते में नासिय के पीछे सहारे पंचायती बगीची। रास्ते के उत्तरी किनारे पर रामलालजी की बगीची स्थित है। अजमेर रोड पर नदी के पुलिया के आगे जाकर पूरब मे देलवाड़ा रोड़ शुरू होता है जहां पर फतेहपुरिया बगीची के पीछे नदी पार गौशाला आ गई जिसके छियासी बीघा जमीन पर चैम्बर सर्राफान गौशाला के देलवाड़ा रोड़ से दक्षिण में मसूदा रोड के दोनों तरफ के गोशाला के खेतों की जमीन को सन् 2000 दो हजार के बाद तत्कालिन ट्रस्टियों ने धनराजजी बिन्दायकिया अध्यक्ष, मदन मोहन मोदी आदि ने सारी जमीन को खुर्द बुर्द कर दिया यहां तक की तिजारती चैम्बर सरकार के डिग्गी मोहल्ले के चौराहे के आगे पिनारान मार्ग पर डेढ़ सौ साल पुराने औषधालय को भी बन्द कर दिया गया।
उधर सेन्दड़ा रोड़ पर महावीर गंज के बाद नन्दनगर बस गया जो जंगल था। भगत चौराहे पर जो कोई जमाने मे छावनी रोड चौराहा कहलाता था के पश्चिमी उत्तरी कोने पर रामप्रतापजी शास्त्री जी की बगीची थी जहां पर अब गणपति प्लाजा ब छावनी रोड पर शास्त्री मार्केट है वर्तमान में। माताजी की डूंगरी का ज्वाला माता का मन्दिर पुराना है, बलाड़ गाँव पुराना है जहाँ कभी कोई उन्नत एक लाख की आबादी वाला नगर था जहा पर दिगम्बर जैन का मन्दिर है। यह मूर्ति जमीन से प्राप्त हुई मूर्ति है। वर्तमान मे बहुत सारी बगीचियां तो खुर्द बुर्द कर दी गई। कई, वाणिज्यिक काम मे लाई जा रही है। यह हाल ही शहर के अन्दर नोहरों का है। शहर बिल्कुल वीरान हो गया है। जो बाजार पहले गुलजार रहा करते थे सारे सुनसान हो गए। सभी जगह बाजारों मे गलियों मे अतिक्रमण कर लिया गया है रोड के दोनो तरफ गाड़ियों व हाथ थैलों का पार्किंग हो गया है सब तरफ। बिल्कुल भी व्यवस्थित तरीके से कोई काम नहीं हो रहा है। घराें में खुल्लम खुला कारखाने चलाये जा रहे है। भवनों के ऊपर मोबाईल टावर का जाल बिछ गया है शहर में। ध्वनि प्रसारण से ध्वनि प्रदुषण फैलाया जा रहा है स्थानीय सरकार की तरफ से कोई रोक टोक नहीं है।
तो यह तो सूरते हॉल ब्यावर का लेखक ने आपको सन् उन्नीसों तक का विस्तार से विवरण आपको बताया है। अब आगे के आलेख (आर्टीकल) में आपको सन् 1900 (उन्नीसो) के बाद के वर्णन बीसवीं सदी का आपको बताया जायेगा। तो पढ़ते रहिये ब्यावर की दास्तान देखते रहिये सूरत-ए-हाल ब्यावर का। अब सन् उन्नीसों के बाद का। इन्तजार करें। लेखक का नमस्कार।
31-01-20025
-----------------------------------
 
 

ब्यावर के गौरवमयी अतीत के पुर्नस्थापन हेतु कृत-संकल्प

इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker

Website http://www.beawarhistory.com
Follow me on Twitter - https://twitter.com/@vasudeomangal
Facebook Page- https://www.facebook.com/vasudeo.mangal
Blog- https://vasudeomangal.blogspot.com

Email id : http://www.vasudeomangal@gmail.com 
 

Copyright 2002 beawarhistory.com All Rights Reserved