‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से....... 
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✍वासुदेव मंगल की कलम से.......  

छायाकार - प्रवीण मंगल (फोटो जर्नलिस्‍ट)
मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर
Email - praveenmangal2012@gmail.com


ब्यावर परकोटे के अन्दर नोहरो और बाहर बगीचियों का शहर
लेख: वासुदेव मंगलः फ्रीलान्सर, ब्यावर
आप देखिये आज से ठीक एक सो नब्बे साल पहले बसाये हुए ब्यावर शहर चार दीवारी के अन्दर नोहरों का शहर और चार दीवारी के बाहर चारों दरवाजों के बाहर चारों दिशाओं मे चारों ओर बगीचियों का शहर कहलाता है।
ऐसा क्यों? ऐसा इसलिए है कि ब्यावर को राजपूताना का वूल एण्ड कॉटन का ट्रेड सेन्टर बनाया गया था। वूल एण्ड कॉटन को रखने के लिए व्यापार करने की सुरक्षा की दृष्टि से शहर मे रिहायशी मकानों, बिल्डिंगों, हवेलियों के साथ साथ नोहरो का रोड मेप भी बनाया गया। इन्हीं नोहरों मे मेवाड़ी गेट के अन्दर बाजार के दोनों ओर के मोहल्लों में ऊन के व्यापार के लिए नोहरे बनाये गए और इसी प्रकार कॉटन (रुई) के व्यापार के लिए अजमेरी गेट के अन्दर बाजार के दोनों ओर के मोहल्लों में भी नोहरे बनाये गए जहाँ पर इन जिन्सो के व्यापार के साथ साथ इनको रखने के लिये गोदाम के रूप में ये नोहरे काम मे लिये जाते।
चूँकि नया शहर के नाम से ब्यावर शहर प्रसिद्ध था। अतः इसकी तहसील का नाम भी नया शहर नाम रखा जिसके मकानों, दुकानों, जमीनों की रजिस्ट्री आज भी नया नगर के नाम से ही होती आ रही है जबकि सारा काम सरकारी और गैर सरकारी आज भी ब्यावर नाम से ही इसकी स्थापना से होता चला आ रहा है।
ऐसा अकेला मात्र यह ही एक शहर आज भी इसी व्यवस्था पर आधारित है। आप देखिये, यहाँ तक कि इसकी तहसील भी ब्यावर नाम से है परन्तु जमीनों रजिस्ट्री नया नगर के नाम से। है न हैरानी की बात। ताज्जुब करने वाली पर सरकारी सिस्टम आज भी दो सो साल पुराना जमीनो का वो ही पुराना है।
खैर, यह प्रश्न तो सरकार के सोचने का है राजस्व मन्त्रालय का।
हम फिर हमारे मूल प्रश्न ब्यावर की बसावट पर आते है। हाँ तो परकोटे के अन्दर ब्यावर बसावट की बात करें।
अब हम ब्यावर के बाहर बनाई गई बगीचियों के बारे मे चर्चा करते है। चूँकि ब्यावर व्यापारिक केन्द्र बनाया गया जहाँ पर आरम्भ से ही बाहर के व्यापारियों का आना जाना निरन्तर लगा रहता था तथा मुनीम, गुमास्तो के ठहरने, स्नानादि कार्यों के लिये उनकी सुविधा के लिये सभी मर्चेण्ट हेतु शहर के बाहर बगीचीयों की सुविधा भी इनको व्यापार करने के साथ साथ दी गई ताकि पूजा उपासना दैनिक नन्दिनी कार्यों से निवृत हो सके अतः इस शहर मे व्यापार की रौनक परवान पर थीं। यह व्यापार एक सौ साल तक चरम पर था अर्थात् 1838 से 1938 तक तो फला फूला यहाँ तक कि उसके बाद भी पच्चीस साल 1963 तक तो लेखक के ध्यान मे यह समा रहा।
परन्तु जब से ब्यावर जो मेरवाड़ा बफर स्टेट 1937 तक रहा। तत्पश्चात् भी अजमेर मेरवाड़ा 1956 के अक्टूबर तक रहा। यह चूंकि राजस्थान मे मिलाये जाने पर भी जिले के रूप मे मिलाया जाना था जिसका नीतिगत फैसला केन्द्र तथा राज्य सरकार के स्तर पर हो चुका था। परन्तु नीयती को मन्जूर नहीं था। एन वक्त पर ब्यावर के साथ नाईन्साफी हुई और इसको अजमेर जिले का मात्र उपखण्ड बना दिया गया। राज्य पुनगर्ठन आयोग और तत्कालिन केन्द्रिय सरकार की समीक्षा समिति की सिफारिश के बावजूद ब्यावर के जिले का हक 1 नवम्बर 1956 का राज्य सरकार ने छीनकर अवनत कर दिया जिसे सडसठ साल तक नेशनाबूद कर जिले के रुप मे घोषित किया अगस्त 2023 में।
सरकार को ऐसा करने से क्या मिला? यह तो राज्य सरकार ही जाने। ब्यावर तो अपने अतीत के गौरव से महरूम हो गया।
अब तो सरकार इसके कलेवर पर गौर कर सभी तरह की सरकारी सुविधाएँ इसके वर्तमान के स्थानीय जिले के व्यापार और उद्योग को प्रदानकर प्रोत्साहित करे तब ही पुनः ब्यावर एक सो नब्बे साल पहले की तरह का बन सकेगा। ब्यावर मे जन शक्ति, मैधा शक्ति, ऊर्जाशक्ति, प्राकृतिक, व्यापारिक, आर्थिक, औद्योगिक सन-साधन की कमी नहीं है। कमी है तो मात्र राज्य और केन्द्रीय सरकार द्वारा इनके सनसाधन और नीति को लागू करने की इच्छा शक्ति की है।
फिर देखियेगा आप ब्यावर का विकास किस तेज रफ्तार से दौड़ता है?
लेकिन सन् 1913 मे शहर की तहसील का दफ्तर, जो फतेहपुरिया चौराहे के दक्षिण पूर्व वाले कोने पर था अजमेरी दरवाजे बाहर सेण्ट्रल जेल की बिल्डिंग में शिफ्ट कर दिया तब तहसील का नाम तो ब्यावर तहसील कर दिया गया था। परन्तु इस परिसर में जमीनों की रजिस्ट्री का काम बदस्तूर नया नगर के नाम से ही जारी रखा जो आज भी उसी प्रकार जारी है। अब तो रजिस्ट्रार आफीस उदयपुर जोधपुर बायपास रोड पर है।
नये साल 2025 की शुभकामनाओं के साथ लेखक का यह ही सन्देश है।
01.01.2025

 
 

ब्यावर के गौरवमयी अतीत के पुर्नस्थापन हेतु कृत-संकल्प

इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker

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