‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......
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✍वासुदेव मंगल की कलम से....... |
छायाकार - प्रवीण मंगल (फोटो जर्नलिस्ट)
मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर
Email - praveenmangal2012@gmail.com
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30 मार्च 2025 को चेत्र मास शुक्ला एकम हिन्दी का नया वर्ष विक्रम संवत्
2082 प्रारम्भ
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प्रस्तुतकर्त्ता :- वासुदेव मंगल
हम सब भारतवासी प्रति वर्ष हिन्दी के प्रथम महीने चेत्र की शुक्ल पक्ष की
पड़वा अर्थात् एकम को नया हिन्दी वर्ष मनाते है। परन्तु 142 करोड़ भारतवासियों
में कितने लोग इसके महत्व को जानते है आज यह अक्ष प्रश्न हमारे सामने हैं
हमारे जेहन में इस रोचक मिमांसा को जानने की जिज्ञासा स्वतः ही उत्पन्न हो
जाती है। तो आइये जानते है यह रोचक जिज्ञासा-
आज के ठीक 2081 साल पहले उज्जैन के राजा चन्द्रगुप्त मौर्य द्वितीय ने अपने
नाम को बदलकर विक्रमादित्य (विक्रम + आदित्य) के अपने नाम से जो समय आरम्भ
किया उसे विक्रम संवत् अर्थात् हिन्दी का नया साल कहते है।
हिन्दी के साल में बारह महीने चेत्र महीने से लेकर बारह महीने होते है जो
प्रतिवर्ष चेत्र प्रथम महीने से आरम्भ होकर ठीक एक साल में 365 दिन पश्चात्
अगले साल चेत्र महीने से फिर से शुरू होता है। इस प्रकार हिन्दी महीनों के
आधार पर एक साल पूरा होता है। इन महीनों के नाम इस प्रकार हैं- चैत्र,
वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन, भादौ (भाद्रपद), आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष,
पौष, माघ और फाल्गुन।
सामान्य ज्ञान का यह एक रोचक प्रश्न हैं जो सांख्यिकी शास्त्र का है यहां
पर जिज्ञासु की यह पिपासा भंली-भांति शान्त करनी होती है कि हिन्दी वर्ष और
अंग्रेजी वर्ष में भी सह-सम्बन्ध अर्थात् को-रिलेशन है।
इस अनुभूति का स्पष्टीकरण इस बात से होता है कि यह एक पक्ष प्रश्न है जो
इतिहास से जुड़ा हुआ है। वह यह है कि ईसा मसीह का ऐसा समय जिसे हम ईसवीं सन्
कहते है। से जुड़ा हुआ है
ईसा मसीह का ऐरा विक्रमादित्य से ठीक 57 (सत्तावन) साल बाद शुरू हुआ।
हिन्दी से अंग्रेजी समय मालूम करने के लिये हिन्दी समय (काल) हिन्दी विक्रम
संवत् में 57 (सत्तावन) घटाने पर अंग्रेजी ईसवी सन् ज्ञात हो जाता है।
उदाहरण के तौर पर आज विक्रम संवत् 2082 हैं यहां पर आज अंग्रेजी सन् मालूम
करने के लिये 2082 में ये 57 घटा देंगें वो ईसवी सन् 2082-57 : 2025 आ
जायेगें जो र्वतमान में ईसवी सन् हैं।
अतः राजा विक्रमादित्य ईसा मसीह से सतावन साल पहले हुए।
ठीक इसी प्रकार अंग्रेजी काल से हिन्दी काल मालुम करने के लिये वर्तमान
अंग्रेजी काल 2025 में सतावन जोडने पर हिन्दी संवत् मालूम हो जाता है जैसे
ईंसवी सन् 2025 में 57 जोड़ने पर विक्रम संवत् अर्थात् 2025+57=2082 विक्रम
संवत् आ जायेगा। हैं न रोचक प्रसंग। मतलब यह सामान्य ज्ञान का प्रश्न
इतिहास और सांख्यिकी शास्त्र दोनों से जुड़ा हुआ है।
इसके अलावा एक को-रीलेशन हिन्दी और अंग्रेजी के सालों में ओर है। वह है
हिन्दी मिति से अंग्रेजी तारीख और अंग्रेजी महीने की तारीख से हिन्दी मिति
मालूम की जा सकती है।
इसका को-रिलेशन फेक्टर हिन्दी की चेत्र शुक्ल पक्ष को गुडी पड़वा (एकम) और
अंग्रेजी के मार्च महीने का बाईस (30) तारीख वाला सूत्र है। इसके लिये आपको
हिन्दी चेत्र सुदी एकम और मार्च महीने की तीस तारीख को आधार मानकर तीन सौ
पेसेठ दिन के सह-सम्बन्ध दिनों का चार्ट तैयार करना पडेगा तब जाकर आप इनका
सह सम्बन्ध मालुम कर सकते है।
आपका प्रश्न 28 सितम्बर 1944 को अंग्रेजी तारीख की हिन्दी मिति, महीना और
संवत् कौनसा होगा संवत् तो सीधा है कि 1944 में 57 जोड़ने पर 2001 होगा।
परन्तु मिति और महीना आपको चार्ट से मालूम करना पडे़गा। गणना करने पर यह
दिन 28 सितम्बर का होगा।
हैं न रोचक अनुसन्धान जो सामान्य ज्ञान विषय का प्रश्न है। पर इसके उत्तर
के लिये इतिहास + सांख्यिकी विषय भी कवर हो जाते है।
चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को ही हिंदू नववर्ष होने के बहुत से कारण है।
ब्रह्म पुराण के अनुसार, चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को ही ब्रह्मा जी ने
सृष्टि की रचना की थी. अनुमान के मुताबिक करीब 1 अरब 14 करोड़ 58 लाख 85
हजार 125 साल पहले चैत्र माह की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को ही सृष्टि निर्माण
का कार्य प्रारम्भ किया था। इसीलिए इसे सृष्टि का प्रथम दिन माना जाता है।
चारों युगों में सबसे प्रथम सत्ययुग का प्रारम्भ इसी तिथि से हुआ था। इसलिए
राजा विक्रमादित्य ने इसी तिथि से विक्रम संवत की शुरूआत की। यह कारण भी है
कि इस दिन हिंदू नववर्ष मनाया जाता है।
धर्म ग्रंथों में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि से जुड़ी और भी कई खास बातें
बताई गई हैं, उसके अनुसार, त्रैतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम
का राज्याभिषेक भी इसी तिथि पर हुआ था। वहीं धर्मराज युधिष्ठिर भी इसी दिन
राजा बने थे और उन्होंने ही युगाब्द (युधिष्ठिर संवत) का आरंभ इसी तिथि से
किया था। महर्षि दयानंद द्वारा आर्य समाज की स्थापना भी इसी दिन की गई थी।
हिंदू धर्म में चैत्र नवरात्रि में ही नव वर्ष की शुरुआत होती है इसके पीछे
कारण है कि यह माह प्रकृति की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इस
समय पेड़ों लताएं और फूल बढ़ने के लिए लगे होते हैं. सुबह के समय में भी मौसम
बहुत ही अच्छा होता है। सुबह भौरों की मधुरता भी होती है।
हिंदू धर्म में चांद और सूर्य को भी बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है।
चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को चंद्रमा की कला का प्रथम दिन होता है। यह दिन
ऋषियों मुनियों ने नववर्ष के लिए एकदम उपयुक्त माना है।
चैत्र माह की शुक्ल पक्ष नवमी तिथि को प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ था। इस
दिन को रामभक्त रामनवमी के रूप में मनाते हैं. राम जी के जन्म से इस माह का
महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है।
30-03-2025
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ब्यावर के गौरवमयी अतीत के पुर्नस्थापन हेतु कृत-संकल्प
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
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