बुद्ध पूर्णिमा 12 मई 2025 पर विशेष
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सामयिक लेखः वासुदेव मंगल, ब्यावर
विश्व आध्यात्मिक चेतना का उत्सवः- दुनियां में जितने भी महापुरुष हुए है
उनके उपदेश विश्वव्यापी मानव कल्याण की ही विवेचना करते हैं। उनमें से एक
है भगवान गौतम बुद्ध। हालांकि बुद्ध अढ़ाय हजार वर्ष पहले हुए। परन्तु उनके
उपदेश आज भी प्रासंगिक है। संयुक्त राष्ट्र ने सन् 1999 में बैसाख दिवस
बुद्ध (पूर्णिमा) को अन्तर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मान्यता दी।
बुद्ध के प्रकाश की प्रासंगिकता आज अधिक है। इसका मुख्य कारण यह त्रिधात्री
पर्व है अर्थात् बुद्ध के जीवन की तीन मुख्य घटनाओं का स्मरण कराता है
बुद्ध पूर्णिमा का दिन एक साथ - जन्म, ज्ञान और निर्वाण। ये तीन प्रतिबिम्ब
ही इस पर्व को अद्वितीय बनाते है।
यद्यपि भगवान बुद्ध के जन्म कर्म और ज्ञान की स्थली भारत है। परन्तु उनके
उपदेश दुनिया भर में प्रासंगिक है। आज के दिन इनके अनुयायी मन्दिरों में
जाकर दान, ध्यान और उपदेश का पालन करते हैं। मोमबत्तियां जलाते हैं और करुणा,
अहिंसा तथा शान्ति के मूल्यों को आत्मसात करते हैं। श्रीलंका, म्यांमार,
थाईलैण्ड, कम्बोडिया, लाओस, नेपाल, भारत, जापान, और इण्डोनेशिया सहित कई
देशों मे यह उत्सव, बड़े उल्लास से मनाया जाता है।
भारत में यह पर्व विशेष रूप से सारनाथ, बौद्धगया, कुशीनगर और लुम्बिनी जैसे
बौद्ध स्थलों पर धूमधाम से मनाया जाता है।
बौद्ध के उपदेश मानसिक स्वास्थ्य प्रदान करते हैं। बुद्ध ने ध्यान का जो
मार्ग बताया है, वह आज की भागदौड़, चिंता और अवसाद से जूझती दुनियां में एक
मनौवैज्ञानिक औषधि के रूप मे सामने आया है। पश्चिमी चिकित्सा और
मनोवैज्ञानिक ने भी बौद्ध ध्यान तकनीकों को अपनाया है।
पहलाः- आज के युग में बुद्ध की प्रासंगिकताः- भगवान बुद्ध का दर्शन कोई
धार्मिक अनुशासन भर नहीं है बल्कि यह एक जीवंत सामाजिक ,सांस्कृतिक,
मार्गदर्शन है, जो आज के संकटों से जूझती दुनियां को दिशा देता है।
दूसराः- करुणा और सामाजिक समरसताः- बुद्ध का यह कथन है कि सभी जीव दुखी है,
उनके प्रति करुणा रखो, आज के खण्डित, युद्धग्रस्त और घृणा से भरे समाजों के
लिए सांत्वना और समाधान है शर्णार्थी संकट हो या नस्लीय हिंसा- बुद्ध की
करुणा नीति एक वैश्विक - सामाजिक नीति शास्त्र बन सकती है।
तीसवीः- अहिंसा और पर्यावरणः- बुद्ध की प्रकृति के प्रति संवेदनशील दृष्टि
आज के पर्यावरणीय संकट में गूंजती है। उनका सम्पूर्ण जीवन मिनिमज्लिम का
प्रतीक था भोग नहीं, संतुलन।
चौथाः- मध्यम मार्गः- बुद्ध न किसी कठोर व्रत के पक्षधर थे न भोग विलासी के
उन्होंने मध्यम मार्ग सुझाया, एक ऐसा संतुलन जिसपर आम व्यक्ति चल सके।
पांचवाः- सवाल और समाधानः- बुद्ध ने युवावय से प्रश्न पूछे जन्म, रोग और
मृत्यु, मोक्ष के। सवाल करने से ही हल मिलते है यह उन्होनें सिखाया।
बुद्ध
का सन्देश बदलती दुनियाँ
में:-
जब दुनियाँ तेजी से तकनीकी आर्थिक और राजनीतिक रूप से बदल रही है और अब तो
युद्ध के मुहाने पर खड़ी है। तब हमें ठहरकर खुद से यह पूछना चाहिए क्या भीतर
से भी विकसित हो रहे हैं? बुद्ध का यह सन्देश है-अप्प दीपो भव- अपने दीपक
स्वयं बनो। मगर यह सबसे आखिर का मन्त्र है, हमें धैर्य और पूरी गम्भिरता से
सब समझना चाहिए, फिर कोई मत प्रकृट करना चाहिए।
12.05.2025
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