‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......
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✍वासुदेव मंगल की कलम से....... |
छायाकार - प्रवीण मंगल (फोटो जर्नलिस्ट)
मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर
Email - praveenmangal2012@gmail.com
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ब्यावर का संक्षिप्त इतिहास एवं लेखक का
परिचय
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सन् 1818 की 20 नवंबर को अंग्रेजों ने बापूजी दौलत राव सिंधिया से नीमच के
बदले अजमेर लिया जहां दक्षिण पूर्व में 17 मील दूर नसीराबाद नाम से फौजी
छावनी बनाई। 1821 में विस्तारवादी नीति के कारण दक्षिण में आक्रमण कर
1823ई. में मेवाड़ के 37 गांव को जीत कर बी-वेयर नाम से केंद्रीय फौजी छावनी
बनाई। इस फौजी छावनी को कर्नल चालर््स जॉर्ज डिक्सन ने 1 फरवरी 1836 को
सिविल कॉलोनी में तब्दील कर परकोटे के अंदर नया नगर नाम से वूल कॉटन
व्यापार का मर्केन्टाइल केंद्र बनाया। इसके अतिरिक्त मेवाड़ के 32 व मारवाड़
के 21 राजस्व गांव के साथ अपने 31 गांव को मिलाकर 84 गांव के समूह के साथ
मेरवाड़ा बफर स्टेट बनाकर ब्यावर बि-वेयर को इस स्टेट का हेड क्वार्टर बनाया,
जहां पर उस समय भारत में सात ट्रेड सेंटर के साथ आठवां ट्रेड सेंटर
राजपूताना का ब्यावर था।
सन् 1875-76 मे ब्यावर में रेल्वे-लाईन आ जाने से ब्यावर के इस उद्योग का
त्वरित विकास होने लगा ऊन और रूई के व्यापार के साथ-साथ।
पहला चरण तो व्यापार था ऊन और रुई का 1838 से 1875 तक जहाँ पर इन जिन्सो
में ऊन की सफाई कर और कॉटन का जिनिंग करने के लिये उसी समय कॉटन जिनिंग
फैक्ट्रीज लग चुकी थी जहां पर इनका प्रेसिंग होकर ऊन और रुई की गाँठे
मालगाड़ी के जरिये कराँची बन्दरगाह से इंगलैण्ड भेजी जाती थीं।
ब्यावर व्यापार उद्योग के लिये लेखक के पिता के नाना सेठ गजानन्द पौद्धार
रामगढ़ शेखावाटी से ब्यावर (नया नगर) में सन् 1890 में आकर चाँग गेट बाहर
सेन्द्डा रोड के चौराहे के दक्षिण-पश्चिम वाले कोने में यूनाईटेड कॉटन
प्रेस लगाया जो नाडी के पेच के नाम से मशहूर हुआ। साथ ही फतेहपुरिया बाजार
में मैसर्स रामबगस खेशीदास पौद्धार नाम से बुलियन मर्चेण्ट एण्ड कमीशन
एजेन्ट फर्म चालू की और पीछे वाले नोहरे में निवास किया। उस समय को आज 135
साल हो गये। समय को जाते देर नहीं लगती। लेखक उसी वंशज से है। लेखक का जन्म
भी इसी रामगढ़िया नोहरे में हुआ, लेखक की चौथी पिढ़ी है और उम्र अस्सी साल
है।
यूनाईटेड कॉटन प्रेस की जगह अब महावीर गंज के नाम से कॉलोनी है जिसका नाम
लेखक के पिताश्री बाबूलालजी ने ही महावीर गंज नाम रक्खा था सन् 1940 में
चूँकि यहाँ पर प्रेस का बालाजी का मन्दिर है जो आज भी यथास्थिति लिये मौजूद
है। तो आप देखिये इस बात को ही 85 (पिच्यासी) वर्ष हो गए।
तो आप देखिये कितना पुराना ब्यावर शहर है उस जमाने का विकसित सिटी जिसे
स्वतन्त्रता के बाद इसके व्यापार और क्रॉनिकल उद्योग को काल कवलित कर दिया
गया एक बेहूदे तरीके से। लेखक के इस बारे में यह राय है कि यह तो कोई
विवेकपूर्ण तरीका नहीं हुआ। सरकार का, कि मात्र एक अंग्रेज के बसाये जाने
से पूरे क्षेत्र क 121 साल के विकसित उन्नत क्रानिकल ट्रेड एण्ड कॉमर्स को
मटियामेट कर दिया जाय। यह तो संकुचित घिनौनी प्रवृत्ति हुई। इसे कोई समझदारी
नहीं कहते है।
यदि सरकार अपनी तरफ से भविष्य में कोई विकास नहीं भी करे तो अतीत में 121
साल के विकास को धराशायी भी क्यों किया? समझ में नहीं आता। ऐसा करने से
सरकार को क्या मिला सड़सठ साल हो गए। ब्यावर शहर व क्षेत्र तो अपने उन्नत
व्यापार और उद्योग से तो महरूम हो गया। विरानी और बेरोजगारी का आलम हो गया
सर्वत्र चारों ओर जहाँ पर सर्वत्र चहल पहल रहा करती थी। अजमेर तो पुष्करराज
तीर्थ की वजह से और दरगाह के उर्स मेले की वजह से धार्मिक नगरी थी। परन्तु
ब्यावर तो ट्रेड एण्ड कॉमर्स की वजह से स्थापना से ही राजपूताना भारत का ही
नहीं अपित् संसार का प्रसिद्ध शहर रहा। इसीलिए सन् 1955 में राज्य पुनगर्ठन
आयोग ने ब्यावर को राजस्थान प्रदेश में मिलाये जाने पर राजस्थान का जिला
बनाये जाने की सिफारिश की थीं।
प्रदेश की तत्कालिन राजस्थान सरकार आयोग की सिफारिश व समीक्षा समिति
अनुमोदन को नागवार कर दरकिनार कर ब्यावर के साथ जबरदस्त धोखा किया राजनैतिक
छल कर के।
लेखक तो स्वयं उस समय के एक व्यापारिक औद्योगिक घराने के वंशज है। लेखक ने
बींसवी सदी के पचास का दशक भी देखा है तो इक्कीसवी सदी का तीस का दशक भी
देख रहें है सन् 1945 के द्वितीय विश्व युद्ध की झंकार भी देखी है तो
वर्तमान मे विश्व का महायुद्ध भी देख रहे है। 1950 का सस्तीवाड़ा भी देखा है
तो 2025 की भयँकर महगाई और बेरोजगारी भी देख रहे है। उस जमाने की मुद्रा की
कीमत भी देखी है तो आज का भयंकर मुद्रा अवमूल्यन भी देख रहे है। उस जमाने
मे सोना अस्सी रुपये तोला था तो आज सत्तर-पिचेतर हजार रूप्ये तोला है। उस
समय एक डालर की कीमत एक रुपये थी। तो आज एक डालर की कीमत पिच्यासी रुपये
है। कितना दिन रात का अन्तर हो गया है उस जमाने के और आज के जमाने के जीवन
स्तर में। कभी सपने में भी सोचा नहीं था कि ऐसा भयंकर जमाना भी आयेगा जीवन
में। आज हर वस्तु की कीमत एक हजार गुणा बढ़ गई और उपयोग उतना गुना कम हो गया।
आज तो गरीब बेचारा गरीब होता जा रहा है और पैसे वाला मालदार होता जा रहा
है। देश के युवा नोजवान अवसाद में है रोजगार के अभाव में। आज तो सरकार ने
हर स्तर के काम को व्यापार बना लिया है। पहले का राजा तो अपनी प्रजा का
सेवक होता था परन्तु आज की सरकार तो राजा शाही है। गरीब के टेक्स से गुल
छर्रे उड़ा रही है। देश में चारों ओर निराशा का घोर वातावरण है। नोजवानों
में सरकार की उदासीन नीति की वजह से निराशा का वातावरण है देश मे चारों ओर।
लेखक के अपने विचार है। पोकरण से आकर 1890 में ही सेठ खींवराजजी राठी ने
ब्यावर आकर श्री कृष्णा मिल्स लिमिटेड की स्थापना की थी। ग्रेट पेट्रोयट
श्यामजी कृष्ण वर्मा ने राजपूताना कॉटन प्रेस लगाया और सेठ चम्पालालजी ने
अजमेरी गेट बाहर नसियां का निर्माण कराया। उसी जमाने मे चार दीवारी के
अन्दर राठीजी की प्रेसिंग फैक्ट्री उनकी हवेली के पिछवाड़े मे, बेस्ट
पेटेण्ट कॉटन प्रेस चांग गेट के अन्दर दक्षिण में व हरीजन कालोनी मे
हाईड्रोलिक काटन प्रेस पहाड़ियाजी का था। चांग गेट बाहर किशनलालजी ठेकेदार
का प्रेस व स्टेशन के पास न्यू कॉटन प्रेस चोखानी का था। 1908 मे सेठ
चम्पालालजी ने स्टेशन के उस पार एडवर्ड मिल्स व कुन्दनमल लालचन्द कोठारी ने
1925 मे महालक्ष्मी क्लोथ्स मिल्स आरम्भ की। आप देखिय महालक्ष्मी मिल्स को
आज 2025 में सो साल हो गए। लेकिन ये सब उद्योग कारोबार इण्डस्ट्रिज् अतीत
का इतिहास हो गए। समय बड़ा बलवान है जमाना बदलता है उस समय के साथ-साथ आज हम
बदले हुए जमाने में ही रह रहे है उसी ब्यावर में जो कभी अतीत का गौरव हुआ
करता था। समय की बलिहारी है उस समय बावन सर्राफा व्यापारियों के बावन बही
बसनों का चलन था। आज भी लेखक की तीसरी पिढ़ी संयुक्त परिवार में इसी नोहरे
मे लेखक के साथ निवास कर रही है।
06-01-2025
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ब्यावर के गौरवमयी अतीत के पुर्नस्थापन हेतु कृत-संकल्प
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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