ब्यावर का विकास सरकार की
विवेकपूर्ण नीति पर निर्भर
करेन्ट अफेयर: वासुदेव मंगल, ब्यावर
ब्यावर नगर चार दीवारी के बाहर फैलने लगा। यह ब्यावर के विकास का ही कारक
है। परन्तु सन् 1975 मे राजस्थान में गैर रजवाड़े का एक मात्र शहर था जिसको
शिल्प कला के आधार पर नगर विकास न्यास के एक सो चालिस साल पहले अंग्रेज
द्वारा बसा दिया गया था। अब इस शहर के एक्सटेन्शन किया जाना वैज्ञानिक आधार
विस्तार होना था। इसीलिए सन् 1975 ईसवीं मे राजस्थान में सबसे पहले ब्यावर
मे यह दफ्तर खोला गया था। परन्तु विस्मय के साथ लिखना पड़ रहा है कि हमारे
सन् 1977 मे ब्यावर के न्यासी प्रतिनिधि कर्णधार श्री उगमराज जी मेहता को
यह नगर सुधार न्यास का दफ्तर नागवार लगा जिसे इन्होंने सन् 1978 में हटवा
दिया बड़ा अफसोस होता ऐसी संकीर्ण घिनौनी ओछी राजनीति पर। वास्तव में हमारे
नगमा निगारों ने ही ब्यावर का विकास स्वतन्त्रता के बाद से अब तक साढ़े
छियेत्तर साल से होने नहीं दे रहे है। लेखक को इसका स्पष्ट कारण यह नजर आ
रहा है कि राजपुताना फिर राजस्थान जैसे सामन्त शाही प्रदेश में ब्यावर ही
एक मात्र अंग्रेज द्वारा बसायी गई अंग्रेजी रियासत थीं, जो स्थापना से बफर
स्टेट होने के कारण स्वतन्त्रता प्राप्ति तक स्वतन्त्र रहा मेरवाड़ा बफर
स्टेट बाद में अजमेर मेरवाडा राजस्थान मे मिलाये जाने तक स्थापना से एक सो
इक्कीस बरस तक ब्यावर की जल, जंगल और जमीन स्वतन्त्र रही सन् 1947 में
अंग्रेजों के अपने देश ब्रिटेन जाने तक।
अतः ऐसी सूरत मे हमारे स्थानीय कर्णधारों के हाथों में बामुश्किल से सत्ता
उनके हाथों में आई थीं जिसे किसी भी तरह अपने पास से जाने नहीं देना चाह रहे
थे क्यों कि येन केन प्रकारेन माफियाओं का घेरा बनाकर तब से लेकर सब प्रकार
के माफियाओं का समस्त जल जंगल जमीन पर एक सत्र अपना कब्जा बनाये रखना ही
इनका उद्देश्य रहा जिसमें वे पिछले अड़सठ सालो से सफल चले आ रहे है।
आपको बता दें कि संस्थापक डिक्सन ने जो बफर ट्रेड एण्ड कॉमर्स ब्यावर में
वूल एण्ड कॉटन जिन्स का शुरू किया वह पूरा ट्रस्ट बेसिस पर आधारित था जिसमें
सामाजिक सरोकार अर्थात व्यापार के जरिये शहर के सामाजिक उत्थान का कारक
निहीत रहा बावन सर्राफों के बही बसनों में कुछ प्रतिशत धर्मादे व्यापार पर
अंश रखा गया था जो पैसा समाज के उत्थान जैसे शिक्षा, चिकित्सा, धर्मशालाएं,
गौशालाएँ, नारीशाला, अनाथालयों, पाठशालाएँ, औषधालय आदि आदि कार्यों में ही
खर्च किया जाता रहा शुरू से ही। अतः ये सब संस्थाएं इसी आधार पर चला रही
थी। परन्तु यह शुभ दस्तूर एक शताब्दी पहीली तक ही रहा। ज्योंही बफर स्टेट
की पालिसी खतम हुई। प्रजातन्त्र की राजनीति दो गुट के सियासी वर्चस्व के
खेमों में बंट गई बी और सी के जिसने मिल मालिकों और मजदूरों के सौहार्द को
भाईचारे को बिखेर दिया। यहाँ से सन् 1934 से गन्दी सियासी खेल चालू हुआ जो
महात्मा गांधी के ब्यावर आने पर खेला गया था। एक गुट ने गाँधीजी का नागरिक
अभिनन्दन किया था मिशन ग्राउण्ड मंे ओसवाल समुदाय ने क्योंकि गाँधीजी का
गोत्र इससे था और दूसरा समुदाय जो ब्राह्मण समुदाय था। उसने गांधीजी का
ब्यावर आमगन पर बहिष्कार किया था। हालांकि दोनो गुट कांग्रेस पार्टी से ही
सम्बन्ध थे बी और सी परन्तु बी ब्राह्मण समुदाय से थे पंडित चन्द्र शेखरजी
शास्त्रीजी आदि और सी ओसवाल समाज से ताल्लुक रखते थे यह सत्ता का परिदृश्य
भारत देश की केन्द्रिय सत्ता में भी दिखलाई दे रहा है। साथ ही संघिय राज्यों
की सत्ता में भी स्पष्ट झलक रहा है।
जयपुर मंे तो सामन्ती राज रहा है। अतः वहां का परकोटा तो धरोहर के रूप में
सुरक्षित रखा गया सरकार द्वारा।
ब्यावर का दुर्भाग्य रहा है, कि सियासी फिरक्का परस्ती का खेल स्थानीय
स्वायत्त संस्था में भी तब से लेकर अब अभी तक केन्द्र, राज्य, जिला तक ही
नहीं अपित् स्थानीय शासन में भी गुटबन्दी का स्पष्ट दिखलाई देता चला आ रहा
ह। ब्यावर म्युनिसिपल राजपूताना की एक मात्र संस्था है जो सन् 1864 से
कार्यरत है। परन्तु यहाँ पर भी सियासी की गन्दी राजनीति का खेल स्वतन्त्रता
से स्पष्ट चला आ रहा है। इसी का ही परिणाम है कि ब्यावर म्युनिसिपल में तब
से लेकर अब तक स्थानीय शासन प्रशासन होने की वजह से जो ऐतिहासिक परकोटा
संस्थापक ने सन् अठारह सो चालिस मे भयानक जंगल एवं पहाड़ियां होने की वजह से
सुरक्षा दृष्टि से ब्यावर निवासियों के जान माल की रक्षा के लिये बनाया था
उसको भी स्थानीय स्वायत शासन प्रशासन की साठ-गाँठ से समूल नष्ट कर दिया गया।
क्या विकास करेंगे इस प्रकार की नीयत से? उनके नैतिक आचरण पर एक प्रश्न
चिन्ह लग गया। अंग्रेजो के जाने के बाद साथ ही यदि अरबन इम्पू्रमेण्ट
ट्रस्ट सन् 1947 में ही बन जाता तो ब्यावर का विकास आज तो, सम्पूर्ण भारत
देश मे आदर्श विकास होता जो शहर सन् अठारह सो पैंतिस से उन्नी सो सैंतालिस
तक उस समय मे अंग्रेजी काल में एक आदर्श बफर स्टेट एक शताब्दी से भी ज्यादा
समय तक रहा जब दिल्ली, कलकत्ता, बम्बई और मद्रास मेट्रोपोलिटन शहर तक का
नामो निशान नहीं था उस समय भारत देश में राजपूताना का ब्यावर शहर सन् 1836
में व्यापार और वाणिज्य में भारत के तत्कालिन अन्य सिन्ध प्रान्त के मीरपुर
खास शहर, उत्तर भारत के कानपुर शहर, मध्य भारत के इन्दौर शहर और बम्बई
प्रान्त के बम्बई अहमदाबाद भावनगर और राजकोट शहर के उन्नत वूल एण्ड कॉटन
जीन्स के ट्रेड एण्ड कॉमर्स के समकक्ष था आज के एक सो सित्यांसी बरस पहले
ब्यावर राजपूताना प्रान्त का मेनचेस्टर कहलाता रहा है। यह प्रश्न आज भी
आई.ए.एस., आई.पी.एस. और पी.एच.डी. की परीक्षा मे पूछा जाता है। ह न फक्र की
बात ब्यावर के अतीत के गौरव की आज की सातवीं पिढ़ी के बच्चों को शायद ही
विश्वास होता होगा कि ब्यावर में अतीत में ऐसी खुशहाली रही है व्यापार और
वाणिज्य उद्योग मे उस समय में यह तो लेखक की खुश किस्मत है कि इत्तफाक से
ऐसे परिवार से सम्बद्ध रहे हैं जिससे ब्यावर की सम्पूर्ण खोज से यह सब
इतिहास मालूम हो सका निरन्तर अध्ययन से माँ सरस्वती की कृपा से।
आप देखिये आज के अस्सी बरस पहले के जीवन स्तर को और आज के जीवन स्तर में एक
हजार गुना मुद्रा प्रसार हो गया। मुद्रा की क्रयशक्ति एक हजार गुना कम हो
गई स्पष्ट झलक दस ग्राम सोने की उस समय सन् 1950 के दशक में अस्सी रुपये थी
वह आज आठ हजार एक सो रूपया दस ग्राम है। दूसरा उदाहरण देशी घी उस समय पांच
रुपये का एक सेर और आज छ सौ रुपये का एक किलो। तीसरा उदाहरण पगार पांच रुपये
महीना जिसका मूल्य आज पाँच हजार रुपया अर्थात् करेन्सी का इतना अवमूल्यन
हुआ है कि जो वस्तु उस समय पाँच रुपये मे आती थीं वहीं आज पांच हजार मे आती
है। उस समय एक डालर एक रुपये के था, वहीं डालर सित्यांसी अठयासी रुपये मे
आता है। और सरकार विकास की डींगें हाँक रही है। आज देश मे रोटी रोजी नहीं
है। भारतवासी भयंकर अवसाद है में है। देश के पढ़े लिखे नौजवान रोजगार के
अभाव मे आये दिन अवसाद में आत्म हत्याएँ कर रहे है और सरकार के सिर पर जूं
तक नहीं रेंग रही है।
आज चाहे केन्द्र सरकार हो चाहे राज्य सरकार सब की सब घाटे के बजट के साथ
देश को कर्जदार बनाये जा रही है।
एक समय था सन् 1991 का जब सेन्टर की कांग्रेस सरकार अजीब आर्थिक संकट में
फंस गई थी। राजीव गांधी की हत्या हो गई थी। पिछली भारतीय जनता पार्टी की
सरकार ने खजाना खाली कर दिया था। देश को चलाने के लिए कांग्रेस सरकार के
सामने धरम संकट पैदा हो गया। कोई प्रधान मन्त्री बनने के लिये तैयार नही
था। ऐसी स्थिति में भला हो सरदार मन मोहन सिंहजी का। उन्होंने नरसिम्हारावजी
को उनकी शर्तों पर राजी कर प्रधानमंत्री बनाया और स्वयं वित्तमन्त्री बने
सन् 1991 में। अब व्यवस्था यह है कि देश की चलाने के लिए मनमोहन सिंह जी ने
कि इंग्लेण्ड की सरकार के पास भारत के रिजर्व बैंक का सारा रिर्जव सोना उनकी
शर्ताे पर गीरवी रखकर लोन (ऋण) लिया और देश को चलाया विश्वव्यापी आर्थिक
बाजार की उदार नीति पन्द्रह साल की अवधि के पश्चात् सन् 2008 मे भारत के
बाजार मे अपनाये जाने की शर्त के साथ लोन की राशि पर ब्याज भी उनकी शर्त पर
मन्जूर कर तो ऐसे दूरदर्शी वित्त मन्त्री थे डाक्टर सरदार मनमोहन सिंह जी।
आज फिर सन् 2025 में फिर चौतिस साल बाद फिर देश के सामने वो ही आर्थिक संकट
खड़ा हो गया है वर्तमान सरकार हथियार और शेयर व्यापार करके देश को दौ सो लाख
करोड़ से ज्यादा कर्जे से कर्जदार बना दिया है आज सारी पब्लिक सेक्टर की देश
की सारी सम्पत्ति को प्राईवेट सेक्टर के हाथों में ओने पोने किमत में या तो
बेच रही या फिर 1991 की तरह फाइनेंसर को उनकी शर्तों पर गिरवी रख कर लोन
लेकर देश चला रही है। सरकार यह खेल कब तक खेलती रहेगी फ्रि की रेवड़ियांे को
बाँटकर। सरकार तो चली जायेगी परन्तु एक बार फिर देश की आर्थिक माली हालत
शोचनीय हो रही है। कहीं बड़ी कुर्बानी के बाद देश आजाद हुआ कहीं फिर से देश
मे ऐसी नौबत न आ जाये दासता की। सरकार को बड़े धैर्य से विवेकपूर्ण भावी
आर्थिक परिदृश्य अपनाना चाहिये यह ही आज का तकाजा है।
22.01.2025
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