‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से....... 
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✍वासुदेव मंगल की कलम से.......  

छायाकार - प्रवीण मंगल (फोटो जर्नलिस्‍ट)
मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर
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30 जनवरी 2025 को महात्मा गांधी की 77वीं पुण्य तिथी
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सामयिक लेखः वासुदेव मंगल, ब्यावर
सन् 1818 में अंग्रेजों को भारत में एक छत्र राज कायम हो गया था। 1857 से भारत मे अंग्रेजी राज के विरोध स्वरूप उग्र आन्दोलन भड़क गया जिसका हश्र 1947 मेे हुआ। इस दरम्यान 28 दिसम्बर 1885 में भारत मंे ए. ओ. हयूम एवं मैडम एनी बेसेन्ट के नेतृत्व मे इण्डियन नेशनल कांग्रेस राजनैतिक पार्टी की स्थापना की गई। इसी पार्टी के रचनात्मक आन्दोलन के द्वारा आजादी सम्भव हुई। आरम्भ से बाल-पाल-लाल अर्थात् विपिन चन्द्र पाल - बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय के नेतृत्व मे कांग्रेस पार्टी पार्टी गरम दल ही कार्यरत रहा। परन्तु बाद से गोपाल कृष्ण गोखले नरम दल के नेता बने। इस प्रकार बीसवीं सदी के प्रथम दशक में कांग्रेस पार्टी के दो प्रमुख दल नरम दल और गरम दल आस्तित्व मे आये। ब्यावर मे शुरू से ही गरम दल का प्रभुत्व रहा। नरम दल अहिंसक तरीके से आन्दोलन मे विश्वास करता था अतः सन् 1914इस्वी में गोपाल कृष्ण गौखले दक्षिणी अफ्रिका के नेटाल प्रान्त से मोहनदास करमचन्द गांधी को भारत लाकर अपनी जगह नरम दल का नेता बनाया।
यहां से राजनैतिक सफर होता है गांधीजी का भारत में। गाँधीजी ने अहिंसा के जरिये आजादी मिलने तक समय समय पर अनेक प्रकार के भिन्न भिन्न सत्याग्रह, अहिंसक आन्दोलन के जरिये राजनैतिक गतिविधियों को अन्जाम देते रहे आजादी मिलने तक। इस दरम्यान उनको ‘महात्मा’ और ‘राष्ट्रपिता’ के नाम से विभूषित किया गया जो आज भी उनके गाँधी नाम के पहले अलंकृत है। जैसे राष्ट्रपिता या फिर महात्मा गाँधी के नाम से विश्वविख्यात है।
चँूकी भारत की संस्कृति हजारों वर्षों से अनेकता में एकता के दर्पण की बहुआयामी चली आ रही है सामाजिक परिपेक्ष में आजतक जिसके जरिये उनके सत्याग्रह देशव्यापी होते रहे। ऐसी स्थिति मे कई बार उनको अपने सत्याग्रह के विरोधाभाषों का भी सामना करना पड़ता।
अन्त मे अंग्रेजों ने फूट डालो-राज करो की राजनीति के जरिये भारत को आजाद इस शर्त पर किया कि हिन्दू-मुसलमानों की आपसी लड़ाई के कारण गाँधीजी को देश का बंटवारा कर आजाद करने के लिए विवश किया। दो व्यक्ति द्वारा प्रधानमन्त्री बनने की ख्वाहिश ने देश का बंटवारा करवा दिया। गाँधीजी न चाहते हुए भी इस मामले मे मौन रहे और देश के दो टुकड़े हो गए। यहाँ पर गाँधीजी का प्रतिशोध बढ़ता गया। देश की आजादी का परिणाम बडा भयानक हुआ। गाँधी नोआखली बंगाल चले गए। उनसे देश का हिन्दू-मुस्लिम दंगों का बीभत्स नजारा देखा नहीं गया। अतः देश के अवाम उनकी पालिसी का विरोधी हो गया।
नतिजा आपके सामने है 30 जनवरी 1948 को एक अतिवादी चरमपंथी नाथूराम गोदसे ने दिल्ली बिरला मन्दिर मंे सांयकाल प्रार्थना सभा मंे जाते हुए अपनी रिवाल्वर (पिस्तोल) का निशाना बनाकर गाँंधी जी की हत्या कर हमेशा के लिए से चिरनिद्रा में सुला दिया।
आज इस बात को 77 वर्ष हो गए। देश उनकी पुण्य तिथी को शहीद दिवस केरूप में मनाता है। लेखक एवं परिजन का उनको शतशत नमन्। इस दिन प्रातः 11 बजे पूरे देश में दो मिनट का मौन रखकर उनके प्रति श्रद्धा अर्पित की जाती है। भारत देश आज भी उनको राष्ट्र-पिता के रूप में मानता है। भारत देश के समस्त सरकारी कार्यकलापो में यहां तक की करेन्सी नोट पर भी उनका चित्र अंकित होता है। उनके नाम से सारे काम होते हैं। वे ही राष्ट्र के सर्वाेपरि सम्मानीय पिता है। आज उनके नाम को बड़े आदर के साथ देश विदेश के सारे कार्य कलापों मे उपयोग होता है सरकारी स्तर पर।
30.01.2025
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इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
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