‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से....... 
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✍वासुदेव मंगल की कलम से.......  

छायाकार - प्रवीण मंगल (फोटो जर्नलिस्‍ट)
मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर
Email - praveenmangal2012@gmail.com


ब्यावर की 20 वीं सदी का वृतान्त
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आलेखः वासुदेव मंगल, ब्यावर
पिछले लेख मे आपको ब्यावर क्षेत्र के 19वीं शताब्दी के बारे मे विस्तार से बताया था। अब आपको बीसवीं सदी के बारे में बता रहे हैं लेखक विस्तार से। चूँकि 19वीं सदी के पूर्वाध में ब्यावर अस्तित्व में आया था। केन्टोनमेण्ट के रूप में। फिर सिविल कालोनी बनाया गया। तत्पश्चात् मेरवाड़ा बफर स्टेट के रूप मंे लगभग एक शताब्दी तक मेर मेवाड़ और मारवाड़ का मिला जुला स्वरूप रहा। इसमें बीसवी शताब्दी के भी लगभग प्रथम चार दशक सम्मिलित है।
हाँ तो बरतानिया सरकार की सल्तनत थीं। सन् 1924 में ब्रिटेन की सरकार भारत के शासन में भारतीयों को भी कुछ हद तक प्रतिनिधित्व देने लगी।
सन् 1904 मे, स्वामी प्रकाशानन्दजी ब्यावर पधारे। उन्होंने ब्यावर मे सनातन धरम प्रकाशनी पाठशाला खोलकर प्रचार प्रसार शुरू किया। सन् 1905 में लार्ड कर्जन ने बंगाल प्रान्त को दो भागों मे बाँट दिया। पूर्वी बंगाल और पश्चिमी बंगाल जिसके उग्र आंदोलन का उग्र प्रभाव ब्यावर की राजनीति पर भी पड़ा। ब्यावर में आरम्भ से ही नित नये क्रान्तिकारी आन्दोलन होने शुरू हो गए। ठाकुर नरेश खरवा रियासत क्रान्तिकारी हो गए। साथ ही ब्यावर से सेठ दामोदर दासजी राठी ब्यावर मे सक्रिय हो गए। ब्यावर में यों ही अंग्रेजी कमिश्नरी हुकुमत जारी थीं।
सन् 1908 में सेठ चम्पालालजी ने स्टेशन के उस पार एडवर्ड क्लोथ मिल्स के नाम से ओर मिल ब्यावर मंे लगाई। उसी समय अरविन्द घोष सन् 1909 में भारत भ्रमण करते हुए अपने शिष्य द्विजेन्द्र नाग के साथ ब्यावर पधारे ब्यावर की क्रान्तिकारी भूमि से वे काफी प्रभावित हुए। ग्रेट पेट्रायट श्यामजी कृष्ण वर्मा, गोपाल सिंहजी, दामोदरजी राठी पहले से यहां पर क्रान्तिकारी गतिविधियों में सक्रिय थे।
सन 1910 में चारदीवारी बाहर हाईवे के उत्तर में होलेण्ड म्युनिसिपल वर्णाक्यूलर प्राईमरी स्कूल के नये भवन में एवं टाउन हॉल के नये भवन मे हाईवे के दक्षिण दिशा में शहर से स्थानतरित नये भवन मे कार्यालय शिफ्ट हुए 14 फरवरी सन् 1910 में।
सन् 1911 के दिल्ली दरबार मंे मथुरा के हिन्दू कमिश्नर बृजजीवनलाल जी चतुर्वेदीजी को पहिला अंग्रेज कमिश्नर के स्थान पर ब्यावर के लिये नियुक्त किया गया जिन्होंने अपने साथी जैसलमेर के पोलूरामजी गार्गिया को ओक्ट्रोय सुपरिटेन्डेण्ट नियुक्त करवाकर अपने साथ ब्यावर लेकर आये। इधर गोपाल सिंहजी ने श्यामगढ़ मे हिन्दुस्तान सोशालिस्ट रिवोल्यूशनरी आर्मी की शाखा दामोदरजी राठी के साथ आरम्भ की जहां पर रास बिहारी बोस भारत के क्रान्ति वीरों को प्रशिक्षण देना आरम्भ किया।
सन् 1914 में प्रथम विश्व युद्ध आरम्भ हो गया। जिसका की सीधा प्रभाव ब्यावर पर हुआ। बरतानिया की हुकुमत ब्यावर से भी युद्ध के लिए सैनिक लड़ाई में भेजना आरम्भ किया। सन् 1914 में ही मोहनदास गांधी नेटाल (दक्षिण अफ्रीका) से आकर भारत के राजनैतिक आंदोलन के नरम दल की बागडोर सम्भाल ली थी गोपाल कृष्णजी गोखले के आदेश से। जिसका प्रभाव भी ब्यावर के गरम दल पर पड़ना स्वाभाविक था। सन् 1916 मे नारी आन्दोलन का नेतृत्व ब्यावर में स्वयं लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, यू. एन. ढेबर व शौकत उस्मानी ने किया सन् 1913 में ब्यावर तहसील कार्यालय फतेहपुरिया चौराहे के भवन से अजमेरी गेट बाहर सेण्ट्रल जेल के भवन में शिफ्ट हुआ। सन् 1915 मे अंग्रेजी हुकुमत ने ब्यावर के क्रान्तिकारी आन्दोलन को कुचल दिया। सन् 1916 मे ब्यावर कोतवाली डिक्सन छत्री चौराहे के भवन से हाईवे स्थित पोस्ट आफिस के पश्चिम मे शिफ्ट हुआ।
इसी दरम्यान घीसूलालजी जाजोदिया और द्विजेन्द्रनाथ नाग उर्फ स्वामी कुमारानन्द ने ब्यावर मे आकर सन् 1918-19 में आल इण्डिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की शाखा खोलने के साथ ही फत्तेहपुरिया बाजार से कांग्रेस का दफ्तर भी जाजोदिया ने खोला जिसमें नित नये नई कांग्रेस के गतिविधियां शुरू हुई। सन् 1919 में प्रथम विश्व युद्ध समाप्त हुआ। सन् 1918 मे ही मोतीलालजी नेहरु ब्यावर आये। सन् 1912 में दामोदर जी राठी ने आर्य समाज भवन को आर्य समाज गली मंे नयाँ भवन बनाकर लाल प्याऊ के पिछवाडे़ से शिफ्ट कर दिया था। 1912 मे गोदावरी आर्य कन्या पाठशाला, हेडा गली आर्य समाज मार्ग में खोली। श्यामजी कृष्ण वर्मा 1905 में इंगलैण्ड चले गए। 1911 में बाबू चौथमलजी अग्रवाल फतेहपुरिया बाजार में श्यामजी कृष्णवर्मा पुस्तकालय एवं वाचनालय चलाने लगे जो 1920 तक बराबर चलाते रहे। सन् 1918 की 2 जनवरी को सेठ दामोदर दासजी राठी का निधन हो गया। सन् 1919 मे लेखक के पिता श्री ब्यावर मे अपने नानाजी के पास आ गए। 1920 मे पिपलिया बाजार से श्रीनाथ जैन श्वेताम्बर मन्दिर मे शान्ति जैन स्कूल जैन श्वेताम्बर समाज ने खोली। बृजजीवन लाल चतुर्वेदी 1920 तक ब्यावर नगर म्युनिसिपल मे कमिश्नर रहे। कहने का तात्पर्य यह है कि बीसवीं सदी का दूसरा दशक ब्यावर में सामाजिक उत्थान और राजनैतिक गतिविधियों की उथल पुथल का रहा। चूंकि राजपूताना प्रान्त सामन्त शाही रहा जहां पर उनके आन्तरिक शासन में अंग्रेज़ी हुकुमत की सीधी दखलान्दाजी नहीं थी। परन्तु अजमेर अंग्रेजी रियासत होने के साथ मेरवाड़ा बफर स्टेट भी 1937 तक स्वतन्त्र रियासत रही थी। बीसवी सदी के प्रथम चतुर्थास में ब्यावर का व्यापार और उद्योग अपने चरम यौवन पर था। सन् 1923 में तीसरी सूती कपड़े की श्री महालक्ष्मी मिल तैय्यार होकर मिल्स 1925 मे उत्पादन में आ गई थी जिसके मैनेजिंग डायरेक्टर श्री कन्हैय्यालालजी गार्गिया थे। यह मिल सेठ कुन्दनमल लालचन्द कोठारी ने खोली।
अतः यह काल व्यापारिक औद्योगिक सामाजिक आर्थिक ब्यावर का सुनहरी काल था। सन् 1928 में जैन गुरुकुल स्कूल टाटगढ़ रोड पर जैन समाज ने खोली। सन् 1927 मे लक्ष्मी नारायणजी माथुर नगर पालिका चेयरमेन थे। ब्यावर में नित नये राजनैतिक सत्याग्रह होने लगे। सन् 1930 की 26 जनवरी को नाथूलालजी घीया चेयरमेन ने नगर पालिका भवन पर तिरंगा झण्डा फहरा दिया अंग्रेजी काल में जिससे उनको जेल हो गई थी। 1930 मे श्यामजी कृष्ण वर्मा का स्विजरलैण्ड के जिनेवा में 30 मार्च को निधन हो गया। सन् 1928 में ही टाटगढ़ रोड सनातन धरम कालेज की बिल्डिंग बनाई गई जहां पर सन् 1932 मे मैट्रिक और इन्टर की क्लासेज चालू की गई। इधर 1931 मे मोहम्मदली स्कूल का नया भवन भी बनकर अजमेर रोड पर पुलिया के पास बनकर यह स्कूल भी शुरू करदी गई। इसी प्रकार चिकित्सा के क्षेत्र में तीनो मिलों के अलग अलग शफाखाना औषधालय कार्यरत थे। राठीजी का श्रीमती सेठानी गंगाबाई मेटरनिटी होम सनातन स्कूल चौराहे के उत्तरी-पूर्वी कोने में कुन्दनमल लालचन्द का मेवाड़ी बाजार मे उनकी हवेली में। चम्पालालजी का डिग्गी महादेव मन्दिर चौराहे के दक्षिणी-पश्चिमी कोने मंे। जो ये मिल बन्द नहीं हुए तब तक चालू रहे। ब्यावर मे इस दरम्यान ब्यावर सेण्ट्रल कोपरेटिव बैंक भी खोला गया था जो करीब कुछ छ साल चला फिर बन्द हो गया। अब चूंकि बीसवी सदी का चौथा दशक चल रहा था इस दशक में ब्यावर स्थापना को एक शतक पूरा हो गया था सन् 1934 में। अतः इस काल में मेरवाड़ा बफर स्टेट की जगह अजमेर मेरवाड़ा स्टेट हो गया ब्यावर के इतिहास मंे यह एक बड़ी उथल पुथल थी। राजनीति का केन्द्र ब्यावर की जगह अजमेर हो गया। सन् 1934 मे पन्डितजी ने फत्तेहपुरिया बाजार मे महादेव छत्री के पास रॉयल टाकीज नाम से सिनेमा खोला इसीलिये लेखक के निवास की गली पुरानी सिनेमा गली के नाम से विख्यात है आज भी। दूसरी बड़ी घटना 1934 में मोहन दास करमचन्द गाँधी अर्थात् महात्मा गाँधी सन् 1934 में ब्यावर अछूत उद्दार आन्दोलन के सिलसिले मे स्वामी कुमारानन्द जी के निमन्त्रण पर ब्यावर आये जहां पर उनका ओसवाल समाज ने मिशन ग्राउण्ड पर नागरिक अभिनन्दन किया इसी प्रकार सन् 1936 मे मील- मजदूरों की पांच हजार की साढ़े तीन महीने तक लम्बी हड़ताल चली थी। मोहनलालजी सुखाड़िया का इन्दुवाला बाला के साथ विवाह भी इसी समय ब्यावर में सम्पन्न हुआ। सन् 1939 में शाह साहिब ने छावनी मंे पावर हाऊस चालू किया। 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध आरम्भ हुआ। 1935 में किशनलाल जी ठेकेदार के प्रेस की जगह किसनगंज कॉलोनी बस्ती चांगगेट बाहर चालू हुई। 1940 में महावीर गंज कालोनी बसना चालू हुई। सन् 1945 ई0 में प्रताप नगर कालोनी बसना चालु हुई। सन् 1948 मे जटिया कालोनी। सन् 1950 मे चम्पानगर, सन् 1955 में रैदासपुरा नन्द नगर। सन् 1960 मे नवरंग नगर, सन् 1965 मे नेहरू नगर, ओम नगर, राम नगर, अजमेर रोड पर आदर्शनगर, 1970 मे भजन नगर, दया नगर, सन् 1980 मे अग्रसेन नगर, गांधीनगर, मंगल कालोनी, साकेत नगर (हाऊसिंग बोर्ड), शास्त्रीनगर, पी एण्ड टी कालोनी, सन् 1985 में ज्ञानचन्द सिहले नगर, गायत्री नगर। सन् 1990 में कुन्दन नगर, विनोद नगर, एल आई सी कालोनी आदि।
सर 1945 में पाण्डितजी अपना रायल सिनेमा अजमेरी गेट बाहर नई बिल्डिंग बनाकर छावनी रोड मार्ग पर ले गए। सन् 1944 में शाह साहिब ने स्टेशन, मिल चौराहे के दक्षिणी-पश्चिमी कोने पर रूपबानी सिनेमा बनाया। अब तो अजमेर रोड पर, टाटगढ़ रोड पर सेन्दड़ा रोड़ पर दूर दूर तक हाईवे सड़क के दोनों ओर बड़े बड़े अनेक काम्पलैक्स बहुमंजली इमारते बन गई है जिधर देखो गगन चुम्बी इमारते नजर आ रही है ब्यावर के चारों ओर के मार्गों पर दूर दूर तक चाहे बिजयनगर रोड़ हो या देलवाड़ा रोड़ हो या फिर मसूरदा रोड़ हो या फिर रास बाबरा ब्यावर खास रोड़ हो। अजमेर रोड पर हंस नगर बस गया है। यहां तक दूर दूर तक बायपास पर भी बस्ती भोजपुरा, गणेशपुरा, गोविन्दपुरा, केसरपुरा रधुनाथपुरा यहां तक कि बायपास पर भी हजार बारह सो कोलोनिया बस गई है। ब्यावर अब महानगर हो गया है।
02.02.2025
 

ब्यावर के गौरवमयी अतीत के पुर्नस्थापन हेतु कृत-संकल्प

इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker

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