‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......
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✍वासुदेव मंगल की कलम से....... |
छायाकार - प्रवीण मंगल (फोटो जर्नलिस्ट)
मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर
Email - praveenmangal2012@gmail.com |
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14 नवम्बर 2024 को चाचा नेहरू की
135वीं जयन्ती पर विशेष
लेखक - वासुदेव मंगल, ब्यावर
पंडित नेहरू तो 1945 में ही आजाद कर गए थे ब्यावर को। ब्यावरवासियो को
मालूम होना चाहिए कि ब्यावर जंगे आजादी की कर्मभूमि थी। सन् 1916 में
पण्डित मोतीलाल नेहरू और फिर 1945 में पंडित जवाहरलाल नेहरू की ब्यावर की
विजिट भी इसी सिले सिले में हुई। ब्यावर स्वतन्त्रता सेनानियों की
क्रान्तिकारी भूमि थी जहाँ नित नए सत्याग्रह होते थे और उनमें जन जागृति के
लिए भारत के कोने कोने से आजादी के दीवाने शरीक होते थे चाहे बंगाल हो, या
पंजाब व उत्तर भारत हो तो कहीं मध्य भारत के क्रान्तिवीर या चाहे बंगाल हो,
बम्बई प्रान्त या फिर हो मद्रास। सभी दीवानों की अलमस्त ट्रौलियों का एक ही
संगीत राग होता था भारत की आजादी।
इसीलिये यहां पर कौन नहीं आया। सभी आजादी के मतवाले ब्यावर धरा पर आये और
आज़ादी की मशाल जलाना सीखा। चाहे गरम दल के कार्यर्कता हो चाहे नरम दल के।
आज भारत के प्रथम प्रधान मन्त्री पाडित जवाहर लाल नेहरू की 135वीं जन्म
जयन्ती पर उसके व्यक्तित्व और कृतित्व पर उनकी खुबियों पर लिखना प्रासंगिक
है।
नेहरूजी का जन्म दिन 14 नवम्बर को बाल दिवस के रूप में मनाये जाने का कारण
उनको बच्चों से गहरा लगाव रहा। इसलिए यह दिन बच्चों के लिये समर्पित कर दिया।
पंडित नेहरू को बच्चे प्यार से चाचा नेहरू कहकर पुकारते थे। उनका कहना था
आज के बच्चे कल के भारत का निर्माण करेंगें। हम उनका किस तरह पालन पोषण करते
हैं यह देश के भविष्य के बारे में बताता है।
नेहरूजी का प्रजातन्त्र और लोकतन्त्र में अटूट विश्वास था। अपने कार्यकाल
में अनेको बार अनेको विरोधी नेताओं को लोक सभा में लाने का प्रयास किया और
अपनी आलोचनाओं को सहज भाव से सुनते थे अपने विरोधियों का सम्मान करते थे।
संविधान का पूरी तरह से पालन करते थे और नियमित रूप से मुख्यमंत्री को पत्र
लिखते थे। उनकी समस्याओं को सुनकर उनका निवारण भी करते थे।
आजादी के बाद जब उन्होंने अपना मन्त्री मण्डल बनाया तो गैर काँग्रेसी बाबा
साहिब अम्बेडकर को अपने विरोधी श्यामा प्रसाद मुखर्जी को मन्त्री बनाकर
सच्चे प्रजातान्त्रिक की मिसाल पेश करी। नेहरू जी ही वह इन्सान थे जिन्होंने
एक युवा कवि की कविता सुनी और जिसने अपनी कविता मे नेहरू जी की खिल्ली उडाई
थी और उनका उपहास भी किया, आज के सत्ताधारी ऐसा करने पर उसको जेल में डालकर
देशद्रोह का मुकदमा कर देता।
पिछले सालों से उनकी छवि को धूमिल करके उन्हें बदनाम करने का प्रयास किया
जा रहा है और देशवासियों को भ्रमित करने का कुत्सित प्रचार योजनाबद्ध तरीकों
सेे किया जा रहा है किन्तु सच्चाई तो यही है कि इतिहास और दुनियां नेहरूजी
को आधुनिक भारत का शिल्पकार और लोकतन्त्र प्रेमी के रूप में याद करेगी।
जहां सरदार पटेल ने भौगालिक दृष्टि से भारत को एक राष्ट्र बनाया वहीं नेहरू
ने ऐसा राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक आधार निर्मित किया जिससे भारत की एकता
अखण्डता व प्रजातन्त्र इतना सशक्त हुआ कि कोई ताकत खतम नहीं कर सकती। नेहरू
ने पूरी ताकत लगाकर भारत को एक धर्म निरपेक्ष देश बनाया।
नेहरूजी के निधन 27 मई 1964 को अटल बिहारी बाजपेयी ने कहा था एक सपना खतम
हो गया है, एक गीत खामोश हो गया है, एक लौ हमेशा के लिए बुझ गई है। यह एक
ऐसा सपना था, जिसमें भुखमरी, भय, डर नहीं था, यह ऐसा गीत था जिसमें गीत की
गूंज थी तो गुलाब की महक थी। यह चिराग की ऐसी लौ थी, जो पूरी रात जलती थी
हर अन्धेरे का सामना किया। उसने हमको रास्ता दिखाया और एक सुबह निर्वाण की
प्राप्ति कर ली।
आज नेहरू जी की 135वीं जन्म जयन्ति पर लेखक और परिजनों का शत्-शत् नमन्।
नेहरू शाँन्ति के साधक थे तो क्रान्ति के अग्रदूत भी। वह व्यक्तिगत
स्वतन्त्रता के समर्थक थे तो आर्थिक समानता के पक्षधर भी। वे किसी से भी
समझौता करने से नहीं डरते थे लेकिन उन्होंने किसी के भय से समझौता नहीं किया।
जबरदस्त व्यक्तित्व, सभी को साथ लेकर चलने की जबरदस्त क्षमता उनकी बेखूबी
थी।
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इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
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