‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......
www.beawarhistory.com
✍वासुदेव मंगल की कलम से....... |
छायाकार - प्रवीण मंगल (फोटो जर्नलिस्ट)
मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर
Email - praveenmangal2012@gmail.com |
 |
ब्यावर अवनति की
तीसरी किश्त
सामयिक लेख: वासुदेव मंगल, ब्यावर
सन् 1835 के बाद ठीक एक सदी के बाद ब्यावर की अवनति सन् 1934 से आरम्भ हो
गई थी। सन् 1835 मे राजपूताना में अधिसूचित गजेटियर में कर्नल चार्ल्स
जार्ज डिक्सन द्वारा ब्यावर छावनी की जगह शहर बसाने की सूचना से और
तत्पश्चात् मेरवाड़ा बफर स्टेट की संरचना के साथ ब्यावर एक सदी तक विश्व
क्षितिज पर ब्यावर खूब फला फूला ।
ठीक सौ बरस बाद कहते हैं कि जगह विशेष के भी दिन फिरते है ब्यावर के मेरवाड़ा
बफर स्टेट केे भाग्य ने भी पलटा खाया। मोहनदास करमचन्द गाँधी राष्ट्रपिता
और महात्मा कहलाने गाँधी कहलाने वाला शख्स का ब्यावर में 1934 में ब्यावर
आगमन पर दोनों ही सम्मान एवं अपमान के साथ ब्यावर का पराभव शुरू हो गया था।
विधाता को यह ही मन्जूर था। खैर जो भाग्य में लिखा होता है वह होकर रहता
है। अतः सन् 1938 में दूसरी सदी आरम्भ होते ही ब्यावर के वैभव पराभव होना
शुरू हुआ। सुभाषचन्द्र ब्यावर से बहुत ब्यावर से लगाव था। उनके गुरु बाबा
नरसिंह दास ब्यावर में थे 1941 में भारत से बाहर जाने मे उनकी सलाह ही काम
आई।
चूँकि सुभाष चन्द्र बोस आजाद हिन्द फौज के जरिये आजादी की लड़ाई लड़ते हुए
सिंगापुर से मणीपुर में गारो की पहाड़ी तक आकर तिरंगा फहरा दिया था इस
दरम्यान भारत स्थित बरतानिया की सरकार ने आजाद हिन्द फौज के दस हजार
सिपाहियों को सन् 1945 में बन्दी बनाकर लाल किले मे कैद कर दिया।
सुभाष बाबू ने नेहरूजी को इन फौजियों को मानवता के आधार पर छोड़ने के हेतु
मलेशिया में नेवी चीफ माउण्टबेटन से बात करने के लिए भेजा यहाँ पर पासा पलटा।
बेटन ने नेहरूजी को भारत को आजाद करने की खबर बताई। अब आजाद भारत का प्रधान
मन्त्री बनने का द्वन्द शुरु हुआ। मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिना और नेहरू
दोनों ही प्रधान मन्त्री बनने की जिद पर अड़ गए इस बात पर देश के दो हिस्से
कर माउण्टबेटन ने दोनों को प्रधान मन्त्री बनाकर खुश किया। अगर थोड़ी सी भी
सब्र रखते तो सम्मान पूर्वक भारत आजाद होकर सुभाष प्रधानमंत्री होते। मात्र
दो साल के लिए धैर्य बनाये रखना था। क्योंकि यह बात 1945 की है और देश आजाद
हुआ 1947 में।
इसी दरम्यान इघर घटना कम तेजी से बदला 6 और 9 अगस्त 1945 को अमेरिका ने
जापान के दो शहरों पर परमाणु बम गिराकर विनाश लीला मचा दी थी क्योंकि जापान
ने उत्तरी जापान सागर मे अमेरिका के जँगी जलयान को डुबो दिया था। अतः जापान
ने 15 अगस्त 1945 को समर्पण कर दिया। इस कारण सुभाषचन्द्र बोस भी वर्मा के
रंगून से टोकियो चलेे गए और टोकियो से प्रशान्त महासागर के पूर्वी उत्तरी
तट रसिया (सोवियत रूस) के मन्चूरिया प्रान्त के डिरेना शहर जाकर भूमिगत हो
गये। सुभाष ने यह कदम अपनी आत्म रक्षा में अपनी स्वयं की सूझ बुझ से जापान
की सरकार के उनको पूछने पर उठाया। बाद मे उनका कुछ पता नहीं चला कि वे
डिरेना में कहा रहे। ऐसा उन्होंने इसलिये किया कि अगर वो भारत आते तो
ब्रिटिश सरकार उनको कैद कर लेती क्योंकि भारत की सरकार समझौते के मुताबिक
ब्रिटेन को सुपुर्द कर देती।
यह तो हुई प्रस्तावना। अब मूल प्रश्न पर आते है। इस दरम्यान का घटना क्रम
लेखक ने पहले बता दिया। 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ। भारत में भी आजादी
का जश्न खुशी और गम दोनो ही थे। कारण सिन्ध और पश्चिमी पंजाब के हिन्दू व
सिख भी ब्यावर आये इसी प्रकार ब्यावर से मुसलमान भी पाकिस्तान गए यह कारवा
अर्थात हादसा हृदय विदारक था। पहले ब्यावर में यह समुदाय नहीं था। ब्यावर
में इनको अनेक जगहों पर बसाया गया। सिख समाज ने अपना प्रार्थना स्थल
गुरुद्वारा स्टेशन के पास बनाया। सिन्धी समाज ने भी अलग अलग जगहों पर
मन्दिर बनाया। इस प्रकार ये लोग ।यावर की संस्कृति में रच बस गए। इनके
झुलेलाल मन्दिर सनातन स्कूल मार्ग नन्द नगर व चांगगेट के अन्दर उत्तरी
पूर्वी रोड पर बने है।
आजाद हिन्द के सिपाहियों पर ब्रिटिश भारत सरकार ने लाल किले में फौजदारी
मुकदमा चलाया जिसकी पैरवी प्रसिद्ध वकील भूला भाई देसाई ने करके सारे फौजियों
को बाइज्जत बरी कराया।
जंगें आजादी के महानायक धीरे धीरे एक के बाद एक करके कम होने लगे। सबसे पहले
1883 में क्रान्तिकारी सन्यासी स्वामी दयानन्द जी सरस्वती 1900 में सेठ
खींवराज जी राठी, 1902 मे स्वामी विवेकानन्दजी, फिर 1918 में सेठ
दामोदरदासजी राठी, 1920 मे लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, 1930 मे श्यामजी
कृष्ण वर्मा, 1931 में चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, गणेश शंकर विद्यार्थी,
1939 मंे गोपालसिंहजी, 1942 में पोस सुदी तेरस विक्रम संवत् 1999 मे लेखक
के पिताजी के नानाश्री सेठ गजानन्दजी पौद्दार रामगढ़ वाले, 1950 में सेठ
घीसूलालजी जाजोदिया, 1946 मे चौथमलजी बाबू, 1951 में सेठ विठ्ठलदासजी राठी,
1952 में राम प्रतापजी शास्त्री, 1954 में विजयसिंह पथिक, 1957 में बाबा
नरसिंगदास आदि। इसी क्रम में 30 जनवरी सन् 1948 महात्मा गांधी की दिल्ली के
बिड़ला मंदिर में 31 अक्टूबर 1984 को श्रीमती इन्दिरा गाँधी की उनके निवास
के दफ्तर के रास्ते मे उनके अंग रक्षक द्वारा 21 मई 1991 को राजीव गाँधी की
श्री पेरम्बटूर में धनु नाम की फियादीन ने मंच पर आत्मघाती हमले में हत्या
कर दी गई जो अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए देश के लिए शहीद हो गए
स्वतन्त्रता के बाद स्वतन्त्र भारत के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को अक्षुण रखते
हुए। महात्मा गांधी की हत्या एक अतीवादी नाथूराम गोडसे ने की।
इसी प्रकार लाल बहादुर शास्त्रीजी भी 11 जनवरी 1966 को ताशकन्द प्रान्त मे
दिवंगत हुए। उनका भी शहीद होने का कारण मालूम नहीं पड़ा।
अगली किश्त में अब आपको ब्यावर जिले के विकास की कहानी के बारे में बताया
जायेगा। यह बात थी सन् 1945 की जो बात सुभाषचन्द्र बोस को ने नेहरूजी को कही
थी। वहां पर नेहरूजी अपने प्रधानमन्त्री बनने की जमीन पहले से तैय्यार कर
आए थे मलेशिया में माउण्ट वार्ता में गुप्त समझौते के द्वारा इसीलिए
माउण्टबेटन को दो देशों की थ्योरी अख्तियार करनी पड़ी। यह बात नेहरूजी को
प्रधानपंत्री बनाने के लिए। यह बात नेहरूजी ने बोस को नहीं बताई, गुप्त कखी।
इसलिए दो साल बाद जब भारत स्वतन्त्र हुआ तो यह घटना घटी। जहां तक आजाद
हिन्द फौज (ए एच एफ) के बन्दी सिपाहियों की बात तो इसके लिए माउण्टवेटन ने
मना कर दिया। जो मुकदमे के बाद बाइज्जत बरी हुए जीतने पर। क्योंकि सुभाष
चन्द्र बोस तो निर्विवाद नेता थे स्वतन्त्र भारत के प्रधानमंत्री के लिए।
असंख्य बलिदानों के बाद भारत स्वतन्त्र हुआ वह भी खण्डित। यह सरदार वल्लभ
भाई पटेल की कूटनीति काम आई नहीं तो आजाद भारत के तो कोई मायने नहीं थे
क्योंकि वह आजादी तो उपनिवेश से भी ज्यादा खतरनाक हो गई थी पाँच सो बासठ
देशी स्वतन्त्र रियासतों के साथ हिन्दुस्तान पाकिस्तान को दी हुई
स्वतन्त्रता। यह तो आयरन मेन की बौद्धिक, दूरदर्शी, तत्परता ही थी जिसने
भारत को एक संघ (यूनियन) के धागे में बांधा।
आप देख रहे है मात्र एक जम्मू कश्मीर अलग राज्य आज सित्तर साल बाद भी भारत
का सरदर्द बना हुआ है।
जिस प्रकार गाँधीजी ने कांग्रेस पार्टी डिजोल्व करएक साझा सरकार की बात कही
थी कि कांग्रेस पार्टी का काम स्वतन्त्रता दिलाने का मकसद पूरा हो गया। अब
कांग्रेस पार्टी को भंग कर एक साझा पार्टी का शासन कायम किया जाये। इसी
प्रकार पटेल ने भी जे० के० से कबाईलियों को सेना भेजकर आजाद कश्मीर से, का
प्रस्ताव नेहरू से किया था। इन दोनों प्रस्तावों को खारिज कर दिया जिससे,
ऐसी भंयकर स्थिति उत्पन्न हो गई।
अब 2024 समाप्त होने को है। ठीक दस साल बाद कालावधि की तीसरी सदी आरम्भ होगी
जिसमें विकसित ब्यावर जिला विश्व क्षितिज पर होगा दस साल बाद देखते जाइये
आगे होता है क्या। क्या विकास ब्यावर जिले का इन्तज़ार भी करिये और विकास के
सोपान में अपना सक्रिय सहयोग, भी दीजिये ब्यावर के जिले के जागरुक नागरिक
होने के नाते विकास की इस गंगा में। एक बार लेखक का सभी को अभिवादन के साथ।
|
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
Website
http://www.beawarhistory.com
Follow me on Twitter -
https://twitter.com/@vasudeomangal
Facebook Page-
https://www.facebook.com/vasudeo.mangal Blog-
https://vasudeomangal.blogspot.com
Email id :
http://www.vasudeomangal@gmail.com
|
|
|