‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......
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✍वासुदेव मंगल की कलम से.......

छायाकार - प्रवीण मंगल (फोटो जर्नलिस्‍ट)
मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर
Email - praveenmangal2012@gmail.com

ब्यावर जिले का विकास अतीत के गौरव के विकास की तरह
ब्यावर जिले का सघन व सर्वागीण विकास होना चाहिए।

सामयिक लेख - वासुदेव मंगल ब्यावर
ब्यावर को शिल्पकला के आधार पर बसाया गया अतः इस जिले का विकास भी उसी परिधि में होना। स्थापना से ब्यावर शिक्षा, चिकित्सा, व्यापार उद्योग, सांस्कृतिक व सामाजिक गतिविधियों का केन्द्र रहा है। स्थापना से 1838 से वूल, कॉटन के तिजारत मे राष्ट्रीय स्तर की मण्डी बूलियन एण्ड ग्रेन ट्रेड का मार्केट रहा है संस्थापक डिक्सन के सन् 1850 में ही वर्नाक्यूलर हॉलेण्ड स्कूल खोल दिया था। फिर बरतानिया सरकार ने 1863 मे म्युनिसिपल बोर्ड, फिर 1867 में शफारखाना, 1869 में जो जो बर्तानिया सरकार द्वारा प्रायोजित थी औषधालय, कोतवाली चालू कर दी गई थी। 1 दिसम्बर 1858 को बरतानिया सरकार ने भारत के साथ मेरवाड़ा बफर स्टेट की बागडोर ईस्ट इण्डिया से अपने हाथ मे लेकर गवर्नर व कमिश्नर की नियुक्ति कर दी थी तब से ब्रिटेन हुकुमत राज करने लगी। यह सिस्टम 1947 में जब तक भारत स्वतन्त्र नही हुआ तब तक बदस्तूर चालू रहा। चूंकि ब्यावर कुछ मारवाड़ मेवाड के अधिगृहित ईलाके के साथ मेरवाड़ा बफर स्टेट के नाम से स्वतंत्र जोन था यह इसलिए सम्भव हुआ कि 1818 मे सम्पूर्ण भारत पर अंग्रेजों ने अपने अधीन हुकूमत करनी आरम्भ कर दी थी। ईस्ट इन्डिया कम्पनी के मार्फत 30 नवम्बर 1857 तक। तत्पश्चात् 1 दिसम्बर 1858 से अपने प्रतिनिधि लार्ड की हैसियत से स्वतन्त्र वाह्य रूप से लगान के आधार पर। बरतानिया सरकार ने भारत पर शासन करना आरम्भ कर दिया।
इसलिए ब्यावर में 1857 के स्वतन्त्रता आन्दोलन का प्रभाव आरम्भ से ही रहा है। जंगें आजादी का ब्यावर साक्षी रहा है। चूंकि डिक्सन मेरवाड़ा के साथ अजमेर राज्य नसीराबाद छावनी के सदरे मुकाम भी थे जिनकी हुकुमत मे ही डूंगजी जवाहरजी ने नसीराबाद छावनी लूट ली थी। जिसका सद्मा डिक्सन को लगा। जिससे उनका निधन ब्यावर में ही 25 जून 1857 को हुआ। डिक्सन के निधन के बाद ब्यावर का यह हाल था कि सन् 1872 तक इस अंग्रेजी रियासत में अराजकता रही। 1872 में अंग्रेज कमिश्नर की ब्रिटिश सरकार की स्थायी नियुक्ति की जब से ब्यावर पुनः शासन के ट्रैक पर आ सका। उस काल में ब्यावर के निवासी प्रवासी हो गए जिसका असर आज तक कायम है। अतः अंग्रेजी हुकूमत के कारण ही ब्यावर सभी क्षेत्रों में उस समय से विकास करता रहा।
साथ ही स्वतंत्रा के सभी प्रमुख आन्दोलन ब्यावर के आस पास ही सक्रिय रहे। अतः स्वतन्त्रता जागृति का भी ब्यावर प्रमुख केन्द्र रहा। जन जागृति की भूमिका भी ब्यावर के निवासियों ने निभाई।
1823 मे ब्यावर फौजी छावनी के साथ अस्थित्व में आया जो 1835 तक कायम रही। 1836 की 1 फरवरी को ब्यावर सिविल कॉलोनी बना यहां पर 1838 से ऊन और रुई के व्यापार का नेशनल ट्रेड सेन्टर बना साथ मे बुलियन ट्रेड भी आरम्भ हुआ। 1842 सें ब्यावर का व्यापार परवान पर चढ़ा। ब्यावर को डिक्सन ने सिटी के साथ ही मेरवाड़ा बफर स्टेट बना दिया। 1850 मे डिक्सन ने वर्तमान पण्डित मार्केट के नोहरे में हालैण्ड वर्नाक्यूलर स्कूल चालू की जिसमे महाजनी, आंगल भाषा तथा उर्दू भाषा में तालीम दी जाने लगी। 1852 मे ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने अजमेर राज्य का चार्ज व नसीराबाद छावनी का चार्ज डिक्सन को दिया। आबू की तहसील तो 1836 में मेरवाड़ा बफर स्टेट में थी। 1857 में भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध आजादी का आन्दोलन शुरू हुआ। इसी दरम्यस नसीराबाद छावनी लूट जाने के कारण डिक्सन साहिब का 25 जून 1857 को ब्यावर अजमेरी गेट के अन्दर उनके रेजीडेन्स पर निधन हो गया। तत्पश्चात ब्रिटेन की सरकार ने 1 दिसम्बर 1858 को भारत के साथ ब्यावर की बागडोर अपने हाथ मे ले ली। 1859 में स्काटलैण्ड से ईसाई पादरी का दल ब्यावर आया। अतः क्रिश्चियन रिलियन का प्रादुर्भाव राजपूताना मे चालू हुआ ब्यावर से लेकिन शासन मे वैक्यूम रहा 1871 तक। 1872 में स्थाई अंग्रेज कमिश्नर की शासन में नियुक्ति हुई और ब्यावर का चर्च भी बनकर तैय्यार हो गया था। अतः 1872 से पुनः ब्यावर में तिजारत का विकास शुरू हुआ। 1875 मे डिक्सन साहिब की बेगम चाँद बीबी का निधन हुआ। 1875 में ही ग्रेट पेट्रोयट फ्रीडम फाइटर श्यामजी कृष्ण वर्मा ने अपनी कर्मभूमि ब्यावर बनाई। 1881 मे स्वामी दयानन्द का ब्यावर मे प्रवास रहा जो एक क्रान्तिकारी सन्यासी थे। श्यामजी कृष्ण वर्मा स्वामी दयानन्द के अनन्य भक्त थे। उनकी आज्ञा से ही श्यामजी कृष्ण वर्मा ने इंगलैण्ड जाकर अंग्रेजों को ललकारा। 1892 मे स्वामी विवेकानन्द ब्यावर पधारे जिनको अमेरिका मे शिकागो शहर की धरम सभा मे जाने की प्रेरणा मिली 1892 में ही कृष्णा मिल देशी पद्धति पर आधारित प्रोडक्शन (उत्पादन) में आई। 1892 में ही चम्पालालजी सेठ ने अजमेरी दरवाजे बाहर नसिया बनाई। इससे पहिले 1876 से 1880 में ब्यावर का रेल्वे स्टेशन बनकर चालू हुआ जहां पैसेन्जर व गुड्स ट्रेनों की आवा जाही शुरू हो गई। 1885 में ही श्यामजी कृष्ण वर्मा ने ट्रेड मर्चेण्ट एसोशियेशन आरम्भ किया। श्यामजी कृष्ण वर्मा के प्रयत्न से ही स्वामी दयानन्दजी की प्रेरणा से ब्यावर शहर की मुख्य चौपाटी पर आस्थ को केन्द्र खुला झरोखा मार्बल की डिक्सन छत्री का निर्माण हुआ जहाँ सभी धर्माे के आस्थावान अपने-अपने मजहब के मुताबिक प्रार्थना करने लगे। चूँकि आस्था के झरोखे की चारों दिशा पूरब-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण खुली दिशाएँ थीं। अतएव प्रत्येक आस्थावान अपने मजहब के मुताबिक दिशा में मुँह कर ईबादत करता था।
उपसंहार स्वरूप तात्पर्य यह है कि उन्नीसवी शताब्दी का अन्तिम व बीसवी शताब्दी का प्रथम चतुर्थासं व्यापार और उद्योग में ब्यावर का स्वर्णिम काल रहा। 1908 में एडवर्ड मिल्स व 1925 मे श्री महालक्ष्मी क्लोथ टेक्सटाईल्स मिल्स भी आरम्भ हो गई। ब्यावर की ट्रेड एण्ड इण्ड इण्डस्ट्रिज परवान पर थे।
वर्तमान में ब्यावर हाल ही में राजस्थान प्रदेश का जिला बनाया गया है जो ब्यावर के प्राचीन काल के मेरवाड़ा बफर स्टेट के समकक्ष (ओहदा) मायने रखता है।
अन्त में लेखक की ब्यावर जिले के तीव्र विकास की प्रभु से प्रार्थना है। ब्यावर औद्योगिक व्यापारिक गतिविधियों के साथ साथ, राजपूताना में ट्रेड यूनियन का प्रादुर्भाव भी सन् 1919 मे ब्यावर से ही हुआ। 1916 में नारी उत्थान आन्दोलन का नेतृत्व लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने ब्यावर में किया। उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में ठाकुर गोपालसिंहजी, व सेठ दामोदरदासजी राठी की जोड़ी ब्यावर के स्वतन्त्रता आन्दोलन में सक्रिय रही जिसने भारत की आजादी के दीवानों में शक्ति का संचार किया। 1919 मे घीसूलालजी जाजोदिया जावरा से ब्यावर आ गए थे। उधर द्विजेन्द्रनाग भागर्व उर्फ स्वामी कुमारानन्द पाण्डीचेरी से ब्यावर आ गए थे। इस जोड़ी ने ट्रेड यूनियन के साथ साथ ब्यावर मे कांग्रेस का दफ्तर भी फतेहपुरिया बाजार मे खोला अतः व्यापार उद्योग के साथ साथ राजनीति की चहल पहल भी ब्यावर में रहने लगी। नित नये राजनैतिक आन्दोलन ब्यावर में होने लगे साथ ही ब्यावर में कांग्रेस के गरम दल का प्रभाव था। इसलिए भूपसिंह उर्फ विजयसिंह पथिक व बाबा नरसिंगदास की कांग्रेस के ब्यावर में गरम दल की तीसरी जोड़ी भी इसी दरम्यान सक्रिय हो गई।
इस प्रकार भारत की क्रान्ति के युग में श्यामजी कृष्ण वर्मा 1875 से 1913 तक इसके साथ साथ ब्यावर के सात सितारें सप्त ऋषि पूरी भारत की क्रान्ति का ब्यावर में संचालन करते रहे। प्रथम जोड़ी सेठ दामोदर राठी व ठाकुर गोपाल सिंहजी की 1920 तक। दूसरी जोड़ी घीसूलालजी जाजोदिया व स्वामी कुमारानन्द की जोड़ी 1945 तक व तीसरी जोड़ी बाबा नरसिंगदास व विजय सिंह पथिक की जोड़ी भी सन् 1947 तक सक्रिय रही। फिर भारत आजाद हो गया।
10.11.2024

 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker

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