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✍वासुदेव मंगल की कलम से....... |
छायाकार - प्रवीण मंगल (फोटो जर्नलिस्ट)
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2 अक्टूबर 2024 को 121 वे जन्म दिन पर विशेष
सरलता और सादगी की मूर्ति - लाल बहादुर शास्त्रीजी
लेखक - वासुदेव मंगल, ब्यावर
गुदडी के लाल का जन्म बिहार के मुगलसराय में 2 अक्टूबर 1904 को मुन्शी शारदा
प्रसाद श्रीवास्तव एवं रामदुलारी के यहां हुआ। शास्त्रीजी का जीवन संघर्षमय
रहा। अठारह माह की उम्र मे पिता का साथ छूट गया। शास्त्रीजी की परवरिश नाना
ने की। उन्होंने स्थानीय विद्याध्ययन के बाद काशी विद्यापीठ में शास्त्री
की उपाधि प्राप्त की। इस उपाधि की वजह से लाल बहादुर श्री वास्तव की जगह
शास्त्री लगाना आरम्भ किया यह उनकी समावेशी सोच का उदाहरण है।
कद में नाटे थे शास्त्रीजी परन्तु उनकी सोच गजब की थी। चूंकि भारत लम्बी
अवधि के बाद बरतानिया उपनिवेशवाद से स्वतन्त्र हुआ था। अतः शास्त्रीजी ने
भारत के जवान और किसान की शुचिता को पहचाना और जय जवान और जय किसान का नारा
प्रतिपादित किया। शान्ति से लेकर युद्ध जैसी परिस्थितियों में कोई इन्सान
कैसे स्थितप्रज्ञ की तरह देश का प्रतिनिधित्व कर सकता है, यह कोई उनसे सीखे।
राजनीति शुचिता का अगर किसी ने कीर्तिमान स्थापित किया है तो वह लाल बहादुर
शास्त्री ही है। यह मन्तव्य उनकी महानता का परिचायक है। जब वे रेल मन्त्री
थे तो उन्होंने अपनी माँ को सिर्फ यह बता रक्खा था कि वे रेल्वे में काम
करते है। ताकि उनकी मां कभी किसी की सिफारिश लेकर न आए।
अपनी साफ और ईमानदार छवि के कारण ही पण्डित जवाहरलाल नेहरू के बाद के भारत
के प्रधानमन्त्री बने। मात्र अठारह महीने के प्रधान मन्त्री के अल्प काल
में उन्होंने वह करिश्मा कर दिखाया जो अनेक राजनेता कई वर्षों में भी नहीं
कर पाते है। 1956 में जब महबूबनगर में रेल दुर्घटना हुई तो लाल बहादुर
शास्त्री ने रेल मन्त्री के नाते नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से
इस्तीफा दे दिया। क्या आज का रेल मन्त्री कोई ऐसी सफाईगोई दिखा सकता है जैसी
नैतिकता शास्त्री जी ने दिखाई? सार्वजनिक जीवन मे अब इस तरह के सिद्धान्त
दुर्लभ हो गए है।
शास्त्रीजी ने तीन वर्ष पहले ही चीन से हार चुके युद्ध में सेना का मनोबल,
बढ़ाकर अपनी सूझ-बूझ से 1965 का भारत - पाकिस्तान का युद्ध जीत लेना उनके
कुशल नेतृत्व का ही कमाल था। युद्ध के समय जब अमेरिका ने अनाज आपूर्ति के
समय भारत को आँख दिखाई तो शास्त्रीजी ने भारत की जनता को सप्ताह मे दिन का
उपवास रखने की सलाह दी जिसको आमजन ने सहर्ष स्वीकार किया। उन्होंने स्वयं
भी अनेक सुविधाओं का परित्याग किया।
वे भारत - पाकिस्तान युद्ध के दौरान समझौते के लिए ताशकन्द गए पर फिर कभी
हमारे बीच नहीं लौटे। उनके विचार, उनके सिद्धान्त, उनकी सादगी, उनकी सहजता
- सरलता का आलोक आज भी हमारे देश की राजनीति को प्रकाशित कर शुचिता का
प्रादुर्भाव किया जिसको युगो-युगों तक याद की जाती रहेगी।
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इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
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