‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......
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✍वासुदेव मंगल की कलम से....... |
छायाकार - प्रवीण मंगल (फोटो जर्नलिस्ट)
मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर
Email - praveenmangal2012@gmail.com |
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15 नवम्बर 2024 को सन्त नानकदेव का
555वीं जयन्ती पर प्रकाश उत्सव
धार्मिक आलेखः वासुदेव मंगल, ब्यावर
गुरु नानक सिक्खों के प्रथम गुरु हैं। वे आलौकिक श्रेणी के सन्त महापुरूष
थे। गुरु नानक ने बचपन से ही रूढ़ीवादिता के विरुद्ध संघर्ष करना शुरू कर
दिया था। गुरु नानक देवजी का जन्म कार्तिक पूर्णिमा विक्रम संवत् 1526 के
दिन तदनुसार 15 अप्रैल ईसवी सन् 1469 को रावी नदी के किनारे तलवन्डी गांव
में खत्री कुल में हुआ था। तलवंडी का नाम आगे चलकर नानक देव जी के नाम पर
ननकाना साहिब पड़ गया। गुरु नानक देव के पिता और माता का नाम मेहता कालू और
तृप्ता देवी था।
नानक देव महान् समाज सुधारक थे। उन्होंने सिख धर्म की स्थापना की थी गुरु
नानकजी का विवाह सन् 1487 में माता सुखलानी से हुआ। उनके दो पुत्र थे जिनका
नाम श्रीचन्द और लक्ष्मीचन्द था। नानक देव जी ने समाज में फैली कुरीतियों
को खत्म करने के लिये अनेक यात्राएं की थी।
एक बार नानक देव जी को उनके पिता ने व्यापार करने के लिए बीस रुपये दिये और
कहा की इन 20 रुपयों से सच्चा सौदा करके आओ। नानक देव जी सौदा करने निकले
रास्ते में उन्हें साधु सन्तों की मण्डली मिली। नानकदेवजी साधु सन्तों को
20 रुपये का भोजन करवा कर वापिस आ गए। पिताजी ने पूछा क्या सौदा करके आए?
उन्होंने कहा साधुओं को भोजन करवाया। यही तो सच्चा सौदा है। गुरु नानकदेवजी
का कहना था कि ईश्वर मनुष्य के दिल में बसता है, अगर हृदय मैं निर्दयता,
नफरत, निदा, क्रोध आदि विकार है तो ऐसे मैले हृदय में परमात्मा बैठने के
लिए भी तैय्यार नहीं हो सकते है। गुरु नानकजी ने कहा था ईश्वर एक है और उसको
पाने का तरीका भी एक है। यही सत्य है जो रचनात्मक है, वो अविनाशी है।
प्रभुजी को वो ही प्राप्त कर सकते है जिनमें कोई डर नहीं और द्वेष भाव से
मुक्त है। प्रभु को केवल उसकी ऐसी कृपा द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है।
सभी मनुष्य एक है। न कोई हिन्दू और न कोई मुसलमान। सभी मनुष्य एक समान है।
मनुष्य को केवल वह ही वाणी बोलनी चाहिए जो आपको सम्मान दिलाए। याद रखे
सिर्फ वो आदमी जिसे खुद पर विश्वास नहीं है वो कभी भी ईश्वर पर पूर्ण रूप्
से विश्वास नहीं कर सकता। गुरु उपकारी है। पूर्ण शान्ति उनमें ही निहित है।
गुरू ही तीनो लोकों में उजाला करने वाला होता है। वह प्रकाशपुन्ज है। गुरु
का सच्चा शिष्य ही ज्ञान और शान्ति प्राप्त करता है। अहंकार से ही मानवता
का अन्त होता है। इसलिए अहंकार कभी नहीं करना चाहिए। बल्कि अपने हृदय में
सेवाभाव रख जीवन बिताना चाहिए। मनुष्य को अच्छी फितरत करने के साथ-साथ
ईश्वर के नाम का सिमरन करना चाहिए। हमें आपस मे मिलजुलकर रहना चाहिए और सभी
लोगों से आपस में बाँट कर खाना चाहिए। नानक साहिब भी मूर्ति पूजा के खिलाफ
थे उनके मुताबिक अनन्त स्वरूप और निराकार, आदिल सच्चा ईश्वर को मूर्ति का
रूप देना और उनकी पूजा करना भगवान का अपमान है। नानक साहब ने समाज में औरत
का आदर करने का उपदेश दिया। राजा सम्राट महाराजा को जन्म देने वाली स्त्री
है। जो लोग गुरू की वाणी का सिमरन नहीं कर सकते वो केवल सत्नाम श्री वाहे
गुरुजी दो अक्षर का सुमिरन करके ईश्वर की आराधना कर सकते है। परमात्मा ने
पिलाया अमृत सांसारिक प्रेम की अपनी लौ जलाओ और उसकी राख की स्याही बनाओ,
अपने हृदय को कलम बनाओ, अपनी बुद्धि को लेखन बनाओ और वह लिखो जिसकी कोई
अन्त नहीं हद नहीं है।
ईश्वर की सीमाएँ और कार्य क्षेत्र सम्पूर्ण मानव जाति की सोच से परे हैं।
सत्य को जानना हर चीज से बड़ा है और उससे भी बड़ा है सच्चाई के साथ जीना। जब
आप किसी की मदद करते है तो ईश्वर आपकी मदद करता है। इसलिए हमें हमेशा दूसरों
की मदद के लिए तैय्यार रहना चाहिए। कर्मभूमि पर फल पाने के लिए सबको कर्म
करना पड़ता है। ईश्वर तो सिर्फ लकीर देते हैं, पर रंग उनमें हमको ही भरना
पड़ता है। ईश्वर की हजारों आँखें है और फिर भी एक भी आँख नहीं। ईष्वर के
हजारों रूप है और फिर भी प्रभुजी निराकार है। आप जो भी बीज आज बोयेगें उसका
फल आपका देर सवेर जरूर मिलेगा जब हमारा शरीर मेला हो जाता है तो हम पानी से
उसे साफ कर लेते है। उसी तरह जब हमारा मन मैला हो जाये तो उसे ईश्वर के जाप
से और प्रेम द्वारा ही स्वच्छ किया जा सकता है। याद रखें कि भगवान् के
दरबार मे सभी कर्मों का लेखा जोखा रहता है। बिना गुरु के कुछ भी काम अधूरा
होता है। धन को जेब तक ही रखें, उसे हदृय में जगह न दे। जब धन को हृदय में
जगह दी जाती है, तो सुख-शान्ति के स्थान पर लालच, भेदभाव और बुराईयों का
जन्म होता है। धन के भण्डार से परिपूर्ण वाले प्रभुत्व वाले सम्राटों की
तुलना में वो चींटी महान है जिसके मन में ईश्वर का निवास है। यदि लोग अपने
धन का प्रयोग सिर्फ अपने लिए और खजाना भरने के लिए करते हैं तो वह शव के
समान हैं, लेकिन यदि वे इसे दूसरों के साथ इसे बाँटने निर्णय लेते हैं तो
वह प्रभुजी का पवित्र प्रसाद बन जाता है। जो व्यक्ति किसी का हक छीनता है
उसे कहीं भी सम्मान नहीं मिलता। इसलिए कभी किसी का हक नहीं छीनना चाहिए।
जिन्होंने प्रेम किया है वो ही लोग परमात्मा को पा सकते हैं। नानक जी के
अनुसार एक औंकार यानी ईश्वर एक है। गुरु नानक देव जी ने अपने अनुयायियों को
दस उपदेश दिये जो कि सदैव प्रासंगिक बने रहेंगें। गुरु नानकजी की शिक्षा का
निचोड़ यही है कि परमात्मा एक, अनन्त, सर्वशक्तिमान और सत्य है। वह सर्वत्र
व्याप्त है। मूर्तिपूजा आदि निरर्थक है। नाम-स्मरण सर्वाेपरितत्व है और नाम
गुरु के द्वारा ही प्राप्त होता है। गुरू नानक की वाणी भक्ति, ज्ञान और
वैराग्य से ओत प्रोत है।
गुरु नानक अनेक जगहों पर भ्रमण कर करतारपुर में बस गए और 1521वीं ईस्वी से
1539 ईस्वी तक वहीं रहे। नानकदेवजी ने 25 सितम्बर 1539 को अपना शरीर त्याग
दिया था। मृत्यु से पहले उन्होंने अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी
घोषित किया जो बाद में गुरू अंगद देव के नाम से जाने गए। गुरु नानकदेवजी ने
कहा मौन धारण करके नाम जपो, क्योंकि इसी से मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति
मिलती है और आत्मिक तेज बढ़ता है।
इन्सान को ईमानदारी और मेहनत करनी होगी, क्योंकि इससे मिली आमदनी ही सही है
जो मिले उसे साझा करो। नानकजी की इसी सीख के मुताबिक सिख हमेशा अपनी आमदनी
का दसवाँ हिस्सा दान करते हैं।
गुरु नानक देव की बताई गई शिक्षाएं और बातें हम सबका मार्गदर्शन करती है,
और भविष्य में भी मानव मात्र का मार्गदर्शन करती रहेगी।
उनकी जयन्ती पर उनके श्री चरणों मे हम सभी का कोटि-कोटि नमन ।
15.11.2024
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इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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