‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......
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✍वासुदेव मंगल की कलम से.......

छायाकार - प्रवीण मंगल (फोटो जर्नलिस्‍ट)
मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर
Email - praveenmangal2012@gmail.com

स्वतन्त्रता के बाद ब्यावर की राजनीति
लेख: वासुदेव मंगल
1975 ई० में ब्यावर नगर पालिका बोर्ड का कार्यकाल समाप्त हो जाने पर सरकार ने कोई चुनाव नही कराया। बोर्ड को भंग कर प्रशासक नियुक्त कर दिया। आप देखिये यहाँ पर भी लोकतन्त्र का हनन हो रहा था लगातार। चूंकि प्रशासक सन् 1975 से चार बार तीन साल की अवधि की समाप्ति के साथ 14 साल तक 1988 तक बराबर चल रहे थे। तब ब्यावर के एक जागरूक नागरिक श्री द्वारका प्रशादजी मित्तल ने राजस्थान उच्च न्यायालय में बोर्ड के इलेक्शन की जनहित याचिका (पीटीशन) लगाई जिसके निर्णयानुसार सन् 1988 मे चवदह साल में जाकर ब्यावर नगर परिषद का राज्य सरकार ने इलेक्शन करवाया। इस अवधि में म्युनिसिपल को अपग्रेड कर पालिका से परिषद् में क्रमोन्नत करने के साथ साथ परिषद् की कार्य अवधि भी बढ़ाकर तीन साल की जगह पांच साल कर दी।
इस चुनाव में कांग्रेस व भारतीय जनता पार्टी के पार्षद बराबर बराबर संख्या में जीतकर आने पर बोर्ड के चेयरमेन का चुनाव ढ़ाई ढ़ाई साल की अवधि पारी के लिये दोनों पार्टियों के चेयरमेन का कार्यकाल तय किया गया। इस व्यवस्था के तहते पहले डाई साल तक कांग्रेस पार्टी से श्री मोहनलालजी जैन चेयर मेन रहे और अगले डाई साल श्री पारसमल जी कास्टिया भारतीय जनता पार्टी से चेयरमेन रहे। इस समयावधि मे पार्षद संख्या भी बढ़ाकर पैंतिस करदी गई। अगले चुनाव पांच साल की समयावधि समाप्त होने पर सन् 1993 में समय पर हुए जिसमें श्री डूंगरसिंहजी सांखला चेयरमेन चुने गए। यह अकेले एक चेयरमेन थे जिन्होंने पांच साल की अवधि पूरी की अपने चेयरमेन शिप की। इनके बाद आज तक, छब्बीस साल हुए कोई भी चेयरमेन पाँच साल की अवधि पूरी नहीं कर सके। आप देखिये इस कालावधि में लगभग सत्रह-अठारह चेयरमेन खिचड़ी की तरह रहे क्योंकि ब्यावर राजनैतिक सियासत इतनी उलझी हुई है कि यहाँ पर कुर्सी के लिये द्वन्द की खेमेबन्दी सदा से ही एक्टीवेट रही है। राजनीति के ऊटा-पटक की मेच्योरिटी का कोई भरोसा नहीं रहता कि अगले क्षण क्या हो जाय। यह संशय बराबर बना रहता है कि कब ऊपर से आर्डर आ जाये हटाने का। लेखक को इसका कारण यह महसूस होता है कि चूँकि यह स्थानीय संस्था सदा से अंग्रेजी रियासत काल की स्वतंत्र जल-जंगल-जमीन के शासन की संस्था रही है भारत की स्वतन्त्रता के साथ ही, ब्यावर की स्वतन्त्रता मुक्त रही है, अंग्रेजों के जाने के बाद से जल-जंगल और जमीन।
ब्यावर की स्वतन्त्रता साथ ही यहाँ के स्थानीय शासक गण तब से लेकर अब तक राज धरम का पालन करते हुए अपनी प्रजा के सच्चे सेवक के रूप मे स्वार्थ से परे रहकर सेवा करते रहते तो यह नौबत नहीं आती आज, इस क्षेत्र की ऐसी दुर्दशा की।
स्वतन्त्रता के साथ ही यहाँ पर बी और सी की लड़ाई ने सत्तर साल से ब्यावर का बेड़ा गर्ग कर दिया। अतः शतरंज के मोहरों की तरह राजनीति के पैंतरेबाजी की असली क्षह और मात की कला सीखनी हो तो उसके लिये ब्यावर की धरती माकूल है और उपयुक्त है। यह राजनीति के बड़े बड़े धुरन्धर सूरमाओं का गढ़ रहीं है। ब्यावर राजपूताना का ट्रेड यूनियन का जनक रहा है। तिजारत का बड़ा भारी केन्द्र रहा है। उद्योग मे राजपूताना का मेनचेस्टर रहा है। परदेशी डिक्सन का नमो मन्त्र दिया हुआ बफर स्टेट रहा हुआ है। आध्यात्मिक जगत की तपोभूमि रही है। सेठ साहूकार का सेठाणा शहर रहा है। प्राकृतिक, नैसर्गिक सौंदर्य की स्थली है। अथाह वन, थल, भूगर्भ सम्पदा वाली राजस्थान की हृदय स्थली है। शिक्षा, चिकित्सा, राजनिति का स्थापना से केन्द्र रहा है। अतीत में यह स्टेट डिस्ट्रिट सब डिवीजन फिर एक परगने का सब डिवीजन तक रहा है साथ ही फौजी छावनी भी। अतः ब्यावर सब रंगों वाली इन्द्रधनुषी संस्कृति वाला शहर है जहाँ की शिल्प कला, चित्रकला, हस्तकला बेजोड़ रही है।
आप भी आईये इन शष्य-स्यामला धरती पर और आजमाईये आपके भाग्य इस पावन भूमि पर। ब्यावर की सरजमी पर जन्मा आपका एक खैर ख्वाब, सच्चा हितैषी, फ्रीलान्सर, लेखक। आने वाले समय में आप भी ब्यावर जिले का सर-सब्ज बनाईये आपकी प्रतिभा के सौंदर्य की आहुति देकर। बहुत बहुत धन्यवाद के साथ। आईये आप भी आजमाईये अपने मुक्कदर को ब्यावर की धरती पर। देखिये एक बांगड़ सेठ आये डिडवाना मारवाड़ से इस जमीं पर और जो मालामाल हो गए ब्यावर की मिट्टी से ब्यावर को बरबाद करके। आप भी आये ब्यावर की मिट्टी से आबाद होने के लिए। सुनहरा मौका है, अजमाईया अपने भाग्य को, ब्यावर आकर। अग्रिम धन्यवाद के साथ।
09.12.2024
 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker

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