‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......
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✍वासुदेव मंगल की कलम से.......

छायाकार - प्रवीण मंगल (फोटो जर्नलिस्‍ट)
मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर
Email - praveenmangal2012@gmail.com

राज्य सरकार द्वारा ब्यावर की धरोहर के संरक्षण की दरकार
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फ्रीलांसर: वासुदेव मंगल, ब्यावर
आप देखिये अंग्रेज द्वारा बनाया गया एक मात्र परकोटा ब्यावर शहर का था जिसे ब्यावर नगर के निवासियों की जान-माल की सुरक्षा के लिये बनाया गया था और यह परकोटा जब तक अंग्रेजी राज रहा कायम रहा। स्वतन्त्रता के बाद से धीर धीर स्थानीय नगर प्रशासन की घोर अवहेलना के कारण इस शनै शनै जगह जगह से खण्डित किया जाता रहा। आप देखिये यह तो ब्यावरवासियों की सुरक्षा की चार दीवारी थी। इसे खण्डित कर के तो नगरवासियो ने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारी। आज नगरवासी कहीं पर भी शहर मंे सुरक्षित नहीं है।
वास्तव मे जयपुर परकोटे की तरह यह एक सुन्दर धरोहर थी जिसे समूल नष्ट कर दिया गया। क्या मिला स्थानीय प्रशासन को ऐसा करने से यह तो वह ही जाने? अरे अगर बना नहीं सकते तो बनी हुई सुरक्षा प्राचीर को नष्ट भी क्यों किया गया, क्या स्थानीय प्रशासन लेखक के इस प्रश्न का जबाब देगी? यदि एक अगं्रेज ने बनाया तो उसने कौनसा गुनाह किया? क्या अग्रेंज अपने साथ तो नहीं ले गए? आप लोगों की सुरक्षा के लिये ही छोड़कर गए। इस पर नगरवासियों को गुस्सा करने से क्या मिला? हैरानी की बात तो तब से अब स्थानीय प्रशासन भी इस हादसे में शरीक हो गया। जयपुर मे तो इस धरोहर को सँजोंकर रखा हुआ है और ब्यावर मे इसे समूल जड़ से नष्ट कर दिया गया। बडी अशोभनीय घुटना है, इसकी जितनी भर्त्सना की जाए, कम है। मवाड़ी दरवाजे बाहर का मिर्ची चौड़ा मैदान ठेढ कृषि मण्डी चौराह तक नष्ट कर दिया गया सारा का सारा।
इसी प्रकार शहर का एक मात्र खूबसूरत बिचड़ली तालाब को पाटकर कालोनियां बना दी गई। एक मात्र गड्डा बनाकर रख छोड़ा। इस प्रकार वरवश अतिक्रमण कर
शहर की सुुन्दरता को बदरंग करने से क्या मिला, यह तो अतिक्रमी ही जाने।
चारों दरवाजों के बाहर की जमीन पर वरबश अतिक्रमण कर लिया गया दूर दूर तक यह सारी जमीन तो जंगलाती थी। यह तो फारेस्ट की होनी चाहिये। शायद उन्हें भी यह मालुम नहीं होगा। आज भी इस की परिधि में जगह जगह जंगल है।
अब तो इसका सघन और सर्वागीण विकास वैज्ञानिक शिल्पकलानुसार विस्तार होना चाहिए। वन सम्पदा और भूगर्भ सम्पदा भी अपरिमित मात्रा मे भरी पड़ी है यहाँ के जंगलों और पर्वतों में जिनका दोहन भी हाईजिनिंगकली होना चाहिए ऐसी तकनीक का उपयोग होना चाहिए इस काम में।
यह तो नदी-नालो, झरनों, झील, कुंओं, बावडियो, पर्वतों वाला ईलाका है जो दूर-दूर तक फैला हुआ है। इसका सम्पूर्ण विकास प्राकृतिक सुन्दरता के अनुसार होना चाहिए। ग्रीन हाउस बेल्ट होने के कारण तमाम फॉर्म हाऊस एक से एक उम्दा बेजोड़ होने चाहिए। ताकि आने वाले टाइम में यह बड़ा भारी दूर दूर तक पर्यटन जोन बन सके क्योंकि ब्यावर केन्द्रिय स्थल होने के कारण इसका बड़ा महत्व है।
आप देखिये नगर के चारों ओर के हाईवे मार्गों पर दूर दूर तक रोड़ के दोनों ओर बड़े बड़े कोम्प्लेक्स मल्टी कोमफ्लेक्स बन गए है। दुकाने फ्लैट्स बन गए है परन्तु जो रोड़ सो फीट चौड़ी थी अब मात्र साठ फीट की ही रह गई है। दोनों ओर बीस-बीस तीस-तीस फीट अतिक्रमण कर लिया गया है।
यह ही हाल तमाम बाहरी कालोनियों की रोड़ का है चालीस पालिस, तीस-तीस फीट की रोड़ को मात्र बीस-बीस पन्द्रह-पन्द्रह फीट से अतिक्रमण करके रख छोड़ा है।
यह ही हाल शहर के बाजारों और स्ट्रीट के रोड के अतिक्रमण के है। आधी से भी कम रोड कर दिये गए है। अतः शहर की सुन्दर बसावट को ग्रहण लग गया। सारी सुन्दरता प्राय नष्ट कर दी गई। यह तो वह बात हुई की शहर की रखवाली करने वाली म्युनिसिपल संस्था के मुलाजिम ही यदि ऐसा करने लगे तो फिर तो भगवान मालिक है इनका। बाड़ ही यदि खेत को खाने लग जाए तो फिर इसका क्या ईलाज?
आप देखिये आज ब्यावर शहर की परिधि में कम से कम लगभग पाँच हजार दूकानें होंगी और इसी प्रकार कम से कम पचास से सो तक कामपलेक्स होंगें और करीब पचास सो से अधिक इनडोर मार्केट होंगें। अब आप इसके ट्रेड के प्रतिदिन के टर्न ओवर का खुद ब खुद अन्दाज लगा लिजिए। ऐसे सिटी के डेवलपमंेट पर तो ध्यान देना चाहिये कम से कम राज्य सरकार को।
इसके साथ साथ राज्य सरकार को खुद व खुद सब प्रकार की शिक्षण संस्थाओं अर्थात् मेड़ीकल कालेज, इंजिनियरिंग कालेज, लॉ कालेज के साथ साथ चिकित्सा के और कानून की शिक्षा के क्षेत्र में त्वरित गति से कार्य को अन्जाम देना होगा तब ही ब्यावर जिले के साथ साथ ब्यावर शहर का सघन और सर्वागीण विकास सम्भव है नहीं तो कदापि नहीं।
14.12.2024

इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker

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