‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......
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✍वासुदेव मंगल की कलम से.......

छायाकार - प्रवीण मंगल (फोटो जर्नलिस्‍ट)
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देश की बेरोजगारी और महंगाई दूर करने के उपाय
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सामयिक लेखः वासुदेव मंगल, ब्यावर
यह बात तो साफ है कि विश्व में भारत देश की सबसे ज्यादा जनसंख्या है। यह बात भी सच है कि प्रकृति ने भारत देश को प्राकृतिक सम्पदा जनशक्ति के अनुपात मे भरपूर प्रचुर मात्रा मे दे रखी है। तब जेहन मे यक्ष प्रश्न उठना स्वाभाविक है फिर भारत गरीब देश कैसे हुआ? इसका सीधा सीधा जबाब हुआ। पालिसी में या फिर सिस्टम (व्यवस्था) में कोई बडी गड़बड़ी है क्योंकि देशवासी सरकार को टेक्स भी भरपूर मात्रा में ज्यामितिय प्रणाली से उपभोग की जाने वाली वस्तु, और गुड्स और सेवा (सर्विस) बराबर पर सन् 2017 से बराबर दे रहे है। फिर क्या कारण है कि महंगाई और बेरोजगारी बढ़ती जा रही है।
लेखक को इस सिस्टम में मोटे तौर पर कोई कमी नजर आ रही है तो वह शेयर बाजार को प्रोत्साहन देने और हथियारों का उत्पादन और व्यापार नजर आ रहा है। जबकि सरकार का पूरा ध्यान, सरकार का देश की ज्वलन्त समस्या मूलभूत आवश्यकता बेरोजगारी दूर करने पर एवं महंगाई को कण्ट्रोल कर दूर करने पर होना चाहिए था।
अतः यह खामी ही देश के विकास मे मुख्य वजह है। इस विषय पर सरकार को गूढ़, चिन्तन, मनन कर कोई रास्ता निकलना चाहिए। इसके लिए तो एक ही उपाय लेखक को दिख रहा है और वह यह है कि सरकार सभी युवाओं को नौकरी तो दे नहीं सकती? ऐसी सूरत में एक ही सेक्टर एम एस एम ई सेक्टर है अर्थात सुक्ष्म, लघु, मध्यम उद्योग बेरोजगार युवाओं को सुलभ कराना ही एक मात्र उपाय है सरकारं ऐसा कर भी सकती है कि जो उद्यमी अपनी मन पसन्द का उद्यम लगाना चाहे उन्हें उसी किस्म का कच्चा माल यानी रा मटीरियल को मैन्यूफेक्चरिंग के लिये सस्ती बिजली (पावर) के साथ सभी उपक्रमों के साथ जैसे जमीन आदि मुहैय्या कराकर प्रोड्यूस गुड्स को बेचने के लिये सबसीड़ी आदि की व्यवस्था करावे तो देश की ग्रोथ त्वरित होकर बेरोजगारी कम हो सकेगी और जब उपभोक्ता वस्तुओं के मांग और पूर्ति में संतुलन होगा तो मँहगाई भी कम होगी। क्योंकि उत्पादन में लागत कम होगी तो वस्तु सस्ती बिकेंगी।
अतः केन्द्र और राज्यों की सभी सरकारों को यह प्रयोग कर देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना चाहिये। उत्पादित माल सीधा उपभोक्ताओ को बेचना भी कीमत में कमी होती है।
चूंकि देश मे सभी तरह की प्राकृतिक सम्पदा अलग अलग राज्य में अलग अलग तरह की अकूत मात्रा में भरी पड़ी है जिसका वैज्ञानिक दोहन किया जाकर इस समस्या का बेकारी, भूखमरी और महंगाई को दूर की जा सकती है। कहीं भू-गर्भिय सम्पदा, तो कहीं पर समुद्री सम्पदा, कहीं पर वन सम्पदा, तो कहीं पर मैदानी सम्पदा प्रचुर मात्रा में देश में सभी राज्यों मे अथाह रूप से बिखरी पड़ी है जिसका उपयोग कर देश की माली हालत ठीक की जा सकती है। जब तक मध्यम व गरीब समुदाय को सरकार राहत प्रदान नहीं करेगी तब तक देश का विकास समुचित नहीं हो सकता।
इस प्रयोग पर गौर फरमा कर इस प्रयोग को रचनात्मक तरीके से लागू कर देश को विकास की सीढ़ी पर आगे बढ़ाया जा सकता है।
ये लेखक के अपने विचार है। समझे तो सृजनात्मक नजरिया अख्तियार करें। फिर देखे आप विकास की गंगा कितनी तेज दौड़ती है निर्वाध गति से। एक बार लेखक का सभी को धन्यवाद। क्योंकि महंगाई कम करने के लिये बाजार में हाजिर माल के मांग और पूर्ति मे सन्तुलन बनाये रखना जरूरी है न कि वायदे का व्यापार। वायदे का व्यापार तो असन्तुलन पैदा कर भारी नुकसान दायक होता है जो शेयर बाजार में होता है। अतः व्यापार की इस प्रणाली से तो देश का बहुत आर्थिक नुकसान होता है और गरीबी ज्यादा बढ़ती है अब विवेकीकरण का व्यापारिक रास्ता ही भारत जैसे विकासशील देश के लिए उचित है।
30.11.2024

 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker

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