‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......
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✍वासुदेव मंगल की कलम से.......

छायाकार - प्रवीण मंगल (फोटो जर्नलिस्‍ट)
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जातीय आरक्षण सन् 1977 का जनता दल का परिणाम
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आलेख: वासुदेव मंगल - फ्रीलान्सर, ब्यावर सिटी
स्वतन्त्रता के बाद तीस साल तक एक ही पार्टी कांग्रेस भारत देश पर राज करती रही तो लेखक के विचार से यह कमजोरी तो देश की जनता की रही कि उसने कांग्रेस पार्टी का विकल्प में प्रतिपक्ष मजबूत बनाना चाहिए था।
सैकड़ों वर्षों की गुलामी के बाद वामुलाहिजा देश आजाद हुआ था। उस लोकतन्त्र की अक्षुणता बनाये रखने के लिए बहुत जरूरी था। जब 1977 में पहली बार देश में गैर कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी तो उन्होंने भी इसके स्थायीत्व पर ध्यान न देकर प्रधान मन्त्री की कुर्सी के लिए परस्पर आपस मे विरोध करना शुरू कर दिया। नतीजा यह हुआ जनतादल नाम से बना विभिन्न विचारों वाला दल आधिक समय तक नहीं टिक सका। तीसरे साल ही इनके नेता मोरारजी देसाई ने इस्तीफा देकर मध्यावधि चुनाव की घोषणा की।
जनता दल के गठबन्धन में समान विचार वाला गठबन्धन नहीं होने के करण ऐसा हुआ। जब एक पार्टी का राज अधिक समय तक रहता है तो तानाशाही का स्वरूप ले लेता है। भारत में भी यह ही हुआ। इन्द्रा गांधी की तानाशाही ने ही 1977 मे विपक्ष को सुनहरी मौका दिया था। परन्तु वर्तमान मे जो देश में अस्थिरता दिखलाई दे रही है इसका परिणाम उस समय भिन्न भिन्न विचारधारा वाले व्यक्तियों से बने गठबन्धन समूह जनता दल का ही परिणाम है। हुआ यह कि 1980 के चुनाव में एक इन्दिरा गांधी पुन सत्ता पर काबिज हुई। इस गठबन्धन जनता दल मे दो विचारधारा के लोग थे जिनके परस्पर टकराव से ही जनता दल बिखरा था 1979 में। परन्तु सन् 1989 के चुनाव आते आते इसके परिमार्जनस्वरूप इनकी दो विचारधारा स्पष्ट दिखलाई देने लगी थीं कि एक पक्ष था जातिवाद का और दूसरा पक्ष था धर्मवाद का। परन्तु हिन्दुत्व वाला पक्ष जातिवाद वाले पक्ष से 1980 में ही अलग होकर अपना अलग ही भारतीय जनता पार्टी के नाम से राजनैतिक दल बना लिया था। इसकी स्पष्ट झलक सन् 1989 के चुनाव में दिखी। जब विश्वनाथ प्रतापसिंह प्रधानमन्त्री थे तो उन्होंने मण्डल कमीशन की रिपोर्ट लागू कर दी जिससे शासन में जातिवाद हावी हो गया। परिणामस्वरूप परस्पर जातियों में आरक्षणवाद ने अलग अलग वर्ग में आरक्षण ने जन्म ले लिया अर्थात् शिट्यूल कास्ट, शिड्यूल ट्राईबर्स, अदर वेकबर्ड क्लास आदि आदि। परिणाम यह हुआ कि विश्वनाथ प्रताप सिंहजी ने जातिवाद का मुद्दा मण्डल कमण्डल उछाला तो भारतीय जनता पार्टी ने मन्दिर-मस्जिद का मुद्दा उछाल दिया। अतः 1989 के चुनाव में इन्हें जो दोबारा सफलता मिली वह पुनः इनकी आपसी विचारधारा की लड़ाई के कारण पुनः एक बार फिर से सन् 1991 मे दो साल मेे ही मध्यावधि चुनाव के कारण फिर से स्पष्ट हुई। परिणाम यह हुआ कि लालकृष्ण अडवाणीजी को देश मे रथ यात्रा निकालनी पड़ी। इनकी आपसी लड़ाई में फिर एक बार दोबारा 1991 के मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस पार्टी पुनः केन्द्र में सत्ता में आई। परन्तु राजीव गांधी की हत्या के कारण मजबूरी में नरसिम्हारावजी को प्रधानमन्त्री की कुर्सी सम्भालनी पड़ी और डाक्टर मनमोहनसिंहजी बने वित्त मन्त्री। इनका टकराव चरम पर तो तब ही आ गया है जब अडवाणीजी के रथ को बिहार में लालूजी ने रोक लिया था। तो यह लड़ाई भारतीय जनता पार्टी की आरक्षण की न होकर उस समय हिन्दुत्व के मुद्दे की थी।
अब यहाँ पर इस वक्त वह ही भारतीय जनता पार्टी चूंकी वर्तमान में केन्द्र में शासन सत्ता में है। अब यह जातिवाद के आरक्षण का मुद्दा स्वयं पैदा कर रही है और आक्षेप कॉंग्रेस पर लगा रही है। ह न दो मुहीं बात अरे जाति आरक्षण का मुद्दा तो इनकी सहयोगी पार्टी वाले लोगों का है। इसमें कांग्रेस पार्टी वर्तमान मे बीच में आरक्षण के मुद्दे में कहां से आ गई?
यह मुद्दा तो भारतीय जनता पार्टी की उस समय की उनकी सहयोगी पार्टी का पैदा किया हुआ मुद्दा है। इसमें बाबा साहब अम्बेडकर कहाँ से आ गए? यह मुद्दा तो आपका ही सन् 1980 में पैदा किया हुआ मुद्दा है। आप कांग्रेस पर खामा खा का दोष क्यों दोषारोपण कर रहे हो। यह बीज तो आप लोगों का ही बोया हुआ है। अब भी लालकृष्ण अडवाणीजी व लालू प्रशादजी यादव दोनों ही साक्षी के रूप में मौजूद है।
अम्बेडकरनी का निधन तो 1956 में ही हो गया था। उनको क्यों घसीट रहे हो आपसी सियासी लड़ाई में। यह तो आप का स्वयं का पैदा किया हुआ मुद्दा हैं। कांग्रेस पर लाग्छन क्यों लगा रहे हो इस बात का ?
लेखक तो इन सारी उस समय की घटनाओं से वाकिफ है इस असलियत को क्यों झूठला रहे हो। यह तो आपकी करनी है। इसका दोष कांग्रेस पर क्यों थोप रहे हो।
यह तो आपकी आपसी विचारधारा की लड़ाई है तबकी।
27.12.2024
 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker

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