‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......
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✍वासुदेव मंगल की कलम से.......

छायाकार - प्रवीण मंगल (फोटो जर्नलिस्‍ट)
मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर
Email - praveenmangal2012@gmail.com

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स्थापना से ही ब्यावर का ट्रेड एण्ड कॉमर्स का उन्नयन

किस्त एक

किस्त दो
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आलेख: वासुदेव मंगल, ब्यावर
जैसा पहले लेख मे बताया गया, कि एक परदेशी स्कॉटलैण्ड के अंग्रेज सैन्य अधिकारी कर्नल चॉर्ल्स जॉर्ज डिक्सन ने ब्यावर की फौजी छावनी की पृष्ठभूमि अपने देश स्कॉटलैण्ड की तरह की देखकर ही इसे छावनी की जगह के पास नागरिक बस्ती अर्थात सिविल कॉलोनी बनाकर ऊन और कपास जिन्सो की उपज से यहाँ की पहाड़ी जाति को जोड़कर, ब्यावर की व्यापार मण्डी मंे लाकर बेचकर उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाया।
आप देखिये उस परदेशी हुक्मरान का मानवीय जज्बा कि यहाँ के वनवासी निवासियों से सीधा मधुर संबन्ध स्थापित करने के लिये समूल ईलाके को जोड़ने के लिये मेवाड़ और मारवाड़ के लोगों के फायदे के लिये देशी दोनों रियासतों के राजाओं से उनका ब्यावर के आसपास का ईलाका एक समझौते के अधीन हासिल करके पूरे ब्यावर ईलाके को स्वतन्त्र और सुरक्षित करके उसको ‘मेरवाड़ा बफर स्टेट’ का नाम देकर और ब्यावर को इसका हेडक्वॉर्टर बनाकर व्यापार के लिये राजपूताना गजट मे अधिसूची के अधीन एक हजार नो सो पचपन प्रवासी परिवारों को यहाँ लाकर उनके जानमाल की सुरक्षा के लिये परकोटा बनाकर हिफाजत की।
इस प्रकार मेरवाड़ा बफर स्टेट यानि मेरवाड़ा स्वतन्त्र राज्य मे नो परगनो का समूह ब्यावर, मसूदा, विजयनगर, बदनोर भीम, टाटगढ़ और आबू को जोड़ा और ब्यावर को ट्रेड सेन्टर बनाकर व्यापार आरम्भ किया।
ब्यावर स्थापना से संस्कृति मे विभिन्नता में एकता वाला ईलाका रहा है। यहां पर आकर बसने वाले परिवार विभिन्न धर्माे, जाति, क्षेत्रों से आकर बसे।
अतः डिक्सन ने भी सब परिवारों को अपने-अपने मजहब, संस्कृति, स्वतन्त्र व्यापार की अनुमति दी। इस प्रकार लोकतान्त्रिक, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष सिद्धान्त की संरचना कर सभी जाति के अलग अलग मोहल्ले बनाकर बसाया। क्रॉस की आकृति अनुसार शहर की संरचना कर हुबहू वैसा बाजार और उनके चारों पाकेट मे चारो दिशाओ मे परकोटे से जुड़े दरवाजो तक बाजार के ग्यारह चौराहों के समानान्तर कालोनी बनाकर इक्कीस जाति के परिवारों को ब्यौरेवार बसाया। तो यह थी उनकी शिल्पकला की कारीगरी डिक्सन की।
चूँकी ब्यावर तिजारत का देशी रियासतो के व्यापारिक मार्गाे का केन्द्रिय स्थान था। अतः चारों दरवाजों पर महसूल के लिए चुंगी चौकीयाँ स्थापित की। इस प्रकार वैज्ञानिक व्यवस्था कर ब्यावर को सुव्यवस्थित तरीका प्रदान किया।
आप दखिये बाजार के एक चौराहे से दूसरे चौराहे तक अलग अलग वस्तु के व्यापार के लिये अलग अलग मार्केट बनाये। जैसे अजमेरी गेट से फत्तेहपुरिया चौपड़ तक कपास (रुई) बाजार, फिर महादेवजी की छत्री चौराहे तक फत्तेहपुरिया बाजार मे बुलियन वायदा का मार्केट, फिर मुख्य चौपाटी तक पन्सारी बाजार, फिर सुनारों की चौपड़ तक कपड़ा बाजार, फिर कल्याणमल तेजराज के चौराहे से मेवाड़ी दरवाजे तक ऊन बाजार, इधर सुरज पोल दरवाजे की सीध वाली गली मे ठठेरा गली, उसके बाद दरजी गली, उधर तेजाजी थान तक तेजा चौक, फिर लोहा बाजार, मुख्य चौपाटी के उस पार सीध में मनीहारी बाजार, फिर अनाज मण्डी, फिर मोजड़ी बाजार और फिर जनरल और फैन्सी सामान का बाजार मार्केेट अर्थात पाली बाजार।
वर्तमान मे लेकिन अब मुख्य चौपाटी तो डिक्सन छत्री, उधर मेवाड़ी दरवाजे तक महावीर बाजार इधर मुख्य चौपाटी महादेवजी की छत्री तक अग्रसेन बाजार नम्बर एक फिर महादेव छत्री से अग्रसेन बाजार दो फतेहपुरिया चौपड़ तक फिर अग्रसेन बाजार तीन अजमेरी गेट तक। इधर सुरजपोल गेट से डिक्सन छत्री तक लोहिया बाजार और छत्री के उस पार सीध में चांगगेट तक पाली बाजार कहलाता है। यह श्रद्धानन्द बाजार के नाम से भी जाना जाता है।
पहले लक्ष्मी क्लोथ इन्डोर मार्केट और शाह मार्केट दोनो एक ही हलवाई बाजार था। फिर इसे अलग अलग कर हलवाई बाजार शाह मार्केट के सामने वाली गली और आगे वाली गली मे शिफ्ट कर दिया गया। अब तो कोई पचास से सौ तक तो इन्डोर मार्केट है। अब हर गली ही ट्रेडीशनल मार्केट हो गई है।
 

स्थापना से ही ब्यावर का ट्रेड एण्ड कॉमर्स का उन्नयन
किस्त दो
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आलेख: वासुदेव मंगल, ब्यावर
ब्यावर का प्रतिबिम्ब हू ब हू जयपुर मैनियेचर है क्योंकि जयपुर का छोटा पैटर्न है ब्यावर। फर्क है तो मात्र ब्यावर के चार दरवाजे और जयपुर के सात दरवाजे। ब्यावर की बसावट क्रोस की आकृति पर और जयपुर की बसावट सात घोडों से जुते हुए रथ की आकृति पर है।
सन् 1838 से स्थापना से ब्यावर वूल कॉटन एण्ड बुलियन के व्यापार में अग्रहणी था। उस समय बावन बही बसनो के व्यापार के नाम से यह वायदा व्यापार जाना जाता था। मोदीजी तो अब शेयर मार्केट की बात कर रहे है परन्तु ब्यावर नगर तो एक सो सत्यासी बरस पहले ही इस व्यापार मे पारंगत था। मोदीजी तो अभी इस व्यापार की 2023-24 में 124 प्रतिशत जी डी पी ग्रोथ की बात कर रहे हैं जबकि ब्यावर मे तो जी डी पी ग्रोथ शत प्रतिशत ग्रोथ थी। इस व्यापार की जिसे सन् 1962 मे समूल नष्ट कर दिया गया ब्यावर के मार्केट से और लगभग चार सो व्यापारी, मुनिम गुमास्तो, दलालो के परिवारों को रोटी रोजी से महरूम कर दिया था फिर पांच हजार मील मजदूरों के परिवारों को इसी प्रकार सो साल तक रोजगार में लगे हुए को बेरोजगार कर रोजी से मरहूम कर दिया गया सन् 2000 आते आते ब्यावरवासियों को। स्वतन्त्र भारत ने कितनी तरक्की की है। उस समय सन् 1924 में सो साल पहले ब्यावर में सबसे पहले राजपूताना में ब्यावर सेण्ट्रल कोपरेटिव बैंक खुला था जो बाद में बन्द हो गया। फिर 1942 में भारत बैंक जो बाद मे पंजाब नेशनल बैंक में मर्ज हो गया था। फिर 26 सितम्बर 1946 में दी बैंक ऑफ जयपुर लिमिटेड जो 1959 में स्टेट बैंक ऑफ जयपुर और 1963 में स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एण्ड जयपुर और अभी हाल ही मे स्टेट बैंक आफ इण्डिया के नाम से है। फिर 1955 में इम्पीरियल बैंक की जगह स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया। परन्तु इससे पहले सन् 1943 में मानसिंगा द्वारा दी बैंक ऑफ राजस्थान लिमिटेड की शाखा भीब्यावर में खुल गई थी। तो आप दखिये ब्यावर में बुलियन मार्केट के साथ साथ बैंकिंग व्यवसाय भी फ्लोरिश है। अब तो कम से कम सोसवा सो बैंकिंग संस्थाएं ब्यावर में कार्यरत है। बैंकिंग पोटेन्शियलिटी ट्रेड एण्ड कॉमर्स की बेकबोन होती है। लेखक तो स्वयं बैंककर्मी रहे हैं। अतः बैंक का महत्व भली प्रकार जानते हैं ब्यावर तो स्थापना से ही ट्रेड एण्ड कॉमर्स का गढ़ रहा है। ब्यावर ने कई अन्तर्द्वन्द देखे है। अतः सरकार को ट्रेड, कॉमर्स इण्डस्ट्रिज ट्रेण्ड के अनुसार ब्यावर का विकास जाहिराना करना चाहिये न कि अनुमान के आधार पर यह ही लेखक का कहना है। सरकार को एक तरफा मात्र एक सिमेण्ट फैक्ट्री को ध्यान में रखकर विकास का नजरिया नहीं बनाना चाहिये। यहां पर तो कई प्रकार के बहुमुल्य कीमती खनिज पदार्थ और कई प्रकार की पैदावार होती है। उन सब को ध्यान मे रखना है न कि मात्र गेहूँ और क्वार्टज व जिप्सम। फेल्सपार के लिये सिरेमिक उद्योग को भी एवं ग्रेनाईट उद्योग को भी विकास के लिये बढ़ावा देना चाहिये क्योंकि येे स्थानीय प्रोडक्टस है ब्यावर की प्रचुर मात्रा में ये लेखक का मानना है। प्रोडक्ट तो ब्यावर की और इनका मार्केट कहीं ओर बनाना यह तो ब्यावर के साथ नाइन्साफी होगी। यह तो विकास नहीं शोषण अतः सरकार इसी नजरिये से सोचे।
13.12.2024
 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker

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