‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......
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✍वासुदेव मंगल की कलम से....... |
छायाकार - प्रवीण मंगल (फोटो जर्नलिस्ट)
मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर
Email - praveenmangal2012@gmail.com |
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ब्यावर का पराभव
सामयिक लेख: वासुदेव मंगल, ब्यावर
1925 से ब्रिटेन की हुकुमत ने भारतीय शासन में हिन्दुस्तानियों को कुछ
प्रतिशत हिस्सा देना शुरू किया। अजमेर मेरवाड़ा से हरविलासजी शारदा प्रतिनिधि
दिल्ली की एसेम्बली में रहे जिन्होंने बाल विवाह निषेध कानून शारदा एक्ट
लागू करवाया। तत्पश्चात अजमेर मेरवाड़ा में धार्मिक उन्माद आरम्भ हो गया।
साथ ही औद्योगिक प्रतिशोध भी शुरू हो गया। इसके अतिरिक्त राजनैतिक विचारधारा
की लड़ाई भी शुरू हो चुकी थी।
1934 में नरम दल के कांग्रेस के रुझान के अन्तर्गत स्वामी कुमारानन्दजी के
निमन्त्रण पर महात्मा गाँधी अछूतोद्धार आन्दोलन के सिले सिले में ब्यावर आए।
उनका ब्यावर आगमन पर सत्कार एवं ब्हिष्कार दोनों ही धार्मिक उन्माद हुए।
घीसूलालजी जाजोदिया के फुफा जमनालालजी बजाज गाँधीजी के अनन्य भक्त थे।
ब्यावर में चन्द्रशेखरजी शास्त्री ने गांधीजी का बह्निकार किया। ब्यावर में
राजनैतिक स्तर पर भी क्षेत्रवाद हावी रहा। मारवाड़, मेवाड़, धूंधार,
अजमेर-मेरवाड़ा आदि आदि। साथ ही प्रोद्यौगिक पार्क के कारण राजनीति दो खेमों
में बँट गई एक गुट मिल मजदूरों का और दूसरा गुट मिल मालिकों का। इसी कारण
1936 में ब्यावर मे मिल मजदूरों की साढ़े तीन महीनों तक लम्बी हड़ताल चली
जिसमे जाजोदियाजी ने अपना सब कुछ दाव पर लगाकर पाँच हजार मजदूरों के परिवारों
को भोजन कराया और अन्त मे जमनालालजी बजाज ने बर्धा से आकर समझौता कराया। उसी
समय 1938 में सामन्ती राज में प्रजा परिषद् शुरू हुई। ब्यावर में भी दो गुट
थे। एक जयनारायण व्यास गुट जो मारवाड का था और दूसरा माणिक्यलाल वर्मा गुट
जो मेवाड़ का था साथ में जय नारायण व्यास जैन गुरुकुल स्कूल में 1940 में
प्रधान अध्यापक रहे और चिम्मन सिंहजी लोढ़ा हॉस्टल वार्डन व असिस्टेण्ट थे
और शोभाचन्द्रजी भारिल्ल भी थे। 1939 में ब्यावर में शाह साहिब ने पावर
हाऊस चालू किया। 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध आरम्भ हो चुका था 1941 में
मुकुट बिहारीलालजी भार्गव सत्याग्रह आन्दोलन में गिरफ्तार हुए। 1942 में
अंग्रेज़ों भारत छोड़ो आन्दोलन शुरू हुआ। 1939 लेखक के पिताश्री बाबूलालजी के
ट्यूबरक्यूलासिस डिजिज हो गई। 1945 मे मुकुट जी भार्गव साहिब ब्यावर
म्युनिसिपल के चेयरमेन बने। इससे पहिले 1927 में 1945 लक्ष्मीनारायणजी
माथुर ने 1930 में नाथूलालजी घीया चेयरमेन थे। 1947 में भारत आजाद हुआ।
1944 में लेखक का रामगढ़िया नोहरे मे जन्म हुआ। 1945 की 6 व 9 अगस्त को
अमेरिका ने जापान पर परमाणु बम गिराये जिससे जापान ने युद्ध मे समर्पण किया।
24 अक्टुबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ संस्था बनी। 1945 में ही स्थानीय
काँग्रेस में गुटबाजी के कारण घीसूलालजी जाजोदिया और स्वामी कुमारानन्द
कम्युनिस्ट हो गए। 1948 में पाण्डित बृजमोहन लालजी शर्मा ने मजदूरों का अलग
इण्डियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस के नाम से अलग गुट बना लिया।
स्वतन्त्रता के बाद अक्सर मुकुट बिहारी लालजी अजमेर रहने लगे अतः ब्यावर
म्युनिसिपल का काम वाईस चेयरमेन बृज मोहन लाल जी शर्मा करने लगे। 1950 में
26 जनवरी को अजमेर मेरवाडा भारत का 14वां ‘स’ श्रेणी का राज्य बना। तब 1952
के चुनाव में बृजमोहनलाल शर्मा भी अजमेर राज्य में मिनिस्टर बने और मुकुटजी
दिल्ली में अजमेर राज्य के संसद सदस्य बने तब 1952 से श्री चिम्मन सिंह जी
लोढा ब्यावर म्युनिसिपल के चेयरमेन बने 1963 तक लगातार रहे। 1950 तक ब्यावर
का काम डिप्टी वाईस चेयरमेन श्याम सुन्दर लालजी एडवोकेट देखते रहे। इस
दरम्यान 1 नवम्बर 1956 में अजमेर मेरवाड़ा राज्य को राजस्थान प्रदेश में
मर्ज कर दिया गया तब ब्यावर को प्रशासनिक दृष्टि से ब्यावर को सब डिविजन
बनाकर हमेशा हमेशा के लिए ब्यावर के राजनैतिक पर काट दिये और ब्यावर की
राजनैतिक हत्या कर दी गई जिसके मातहत पिछले छासठ साल में तब से सबसे पहले
तो ब्यावर मेरवाड़ा बफर स्टेट के क्रानिकल व्यापार को ब्यावर से खत्म किया।
फिर एक एक करके सारे स्टेट स्तर के सारे प्रशासनिक कार्यालय ब्यावर से हटाना
शुरू किया। और अन्त में एक एक करके सारे क्रॉनिकल इण्डस्ट्रिज कल कारखाने
बन्द कर दिये। फिर ब्यावर का प्रशासनिक स्तर डिग्रेड करना शुरू किया और
अन्त में 2013 तक जो ब्यावर कभी मेरवाड़ा बफर स्टेट होता था उसे मात्र
ब्यावर तहसील पर लाकर छोड़ा। तो 1956 से लेकर 2022 तक अर्थात छासठ साल में
आपने ब्यावर स्टेट का पूरा ज्यूस निकाल लिया।
अब राज्य सरकार को समझ आई तब सात अगस्त 2023 को ब्यावर के अतीत में रहे हुए
गौरव को लौटाते हुए जिला बनाया जो 1 नवम्बर 1956 को ही जिला बन जाना चाहिए
था राजस्थान प्रदेश का उसका हक छासठ साल बाद लौटाया।
ब्यावर की मलाई तो दूसरे लोग ही खाते रहे ब्यावर को इस दरम्यान क्या मिला
ब्यावर का तो छासठ सालों में सब स्तर पर डिमोलीशन किया गया इसकी सम्पदा का
दोहन कर अन्य दूसरे क्षेत्रों का विकास होता रहा और ब्यावर का पराभव तो
लेखक भी इस छासठ साल की अवधी से ब्यावर की अवनति होते चश्मदीद साक्षी है
आत्मा को मानवता के नाते एक जागरूक इन्सान को काफी कलेश होता है।
कम से कम अब तो राज्य सरकार इसकी अस्मिता को लौटा दे शीघ्रताशीघ्र इसका
विकास कर।ऐसी अपेक्षा के साथ एक बार राज्य सरकार का पुनः धन्यवाद।
चूंकि ब्यावर सिटी अब डिस्ट्रीक्ट हेड क्वार्टर है। अतः ब्यावर सिटी का
विस्तार भी शिल्प आधार पर होना चाहिए। चूंकि पचास से अधिक पेराफेरी गाँव
ब्यावर अरबन शहर सीमा मे मिला दिये गए है अतः ब्यावर अरबन की परिधि सीमा
में परिवहन सेवा सुलभ कराई जानी जरूरी हो गई है। साथ ही शहर का वैज्ञानिक
तरीके से विस्तार के लिये ब्यावर मे नगर सुधार न्यास का दफ्तर तुरन्त
प्रभाव से खोला जाना चाहिए। साथ ही अलग विंग के सभी कार्यालय अलग अलग जगहों
पर खोले जाए।
सिटी एरिया का विस्तार हो जाने के कारण सीमा भी दूर तक हो गई है जिसका
परिसीमन कर नगर वार्डाे का पुनः निरीक्षण कर वार्डाे की संख्या बढ़ाने के
साथ साथ स्थानीय निकाय परिषद् को क्रमोन्नत कर निगम का दर्जा प्रदान किया
जाकर महापौर पद सृजित किया जावे। जिससे ब्यावर म्युनिसिपल कोरपोरेशन का
मेयर हो सके।
चूँकि ब्यावर जिला राजस्थान प्रदेश का मध्यवर्ती जिला है जिसका स्थिति के
हिसाब से विशेष महत्व है। अतः सभी रेल व रोड वाहनों का ठहराव ब्यावर में
होना चाहिए। मुमकिन हो सके तो ब्यावर मे शहरी विकास प्राधिकरण बनाया जाना
चाहिए। अन्त में यदि आधारभूत ढाँचे हेतु सभी अयस्क ब्यावर जिले मे उपलब्ध
है जिससे प्रौद्योगिक पार्क और विभिन्न प्रकार की जिन्सों का मार्केट
ब्यावर मे डवलप होंगे। अतः ब्यावर में हवाई सेवा हेतु भी मांगलियावास -
पीसांगन रूठ पर नया हवाई सेवा टर्मिनल बनाया जाना चाहिए जिसकी प्रतिकृति
अनुकूल है। ब्यावर मे व्यापार और उद्योगों की पोटेन्शियलिटी विभिन्न प्रकार
की है। अतः विभिन्न प्रकार के अनेक व्यापार और उद्योग का ब्यावर माकूल
स्थान है। अतः रेल, रोड़ और हवाई मार्ग सभी यातायात के लिए सुगम का ब्यावर
माकूल स्थान है। ताकि सभी प्रकार के जिन्सों के व्यापार और उद्योगों में
उत्तरोत्तर ईजाफा हो सके। ब्यावर डेवलोपमेन्ट आथेरिटी बनती है तो ब्यावर
विकास प्राधिकरण से दु्रतगति से निरन्तर उत्तरोत्तर विकास हो सकेगा ब्यावर
जिले का सघन और सर्वागीण विकास।
इत्तेफाक है कि मोहनलाल सुखाडिया जो माणिक्यलाल वर्मा गुट मेवाड़ से थे का
ईन्दु वाला के साथ विवाह ब्यावर में ही सन् 1937 में हुआ और सुखाड़ियाजी ने
ही ब्यावर का पतन ‘‘जिला न बनाकर’’ जयपुर महाराज सवाई मानसिंहजी द्वितीय के
कहने पर जयपुर को ही 1956 में राजधानी अजमेर की जगह जयपुर बरकरार रखकर
अजमेर को तो कुछ इन्सेन्टिव देकर राजधानी की जगह जिला बनाया ब्यावर को सब
डिविजन बना डाला जो जिला बनाये जाने के लिये अनुमोदित हुआ था और जिले की
घोषणा ही की जानी थी। क्या ब्यावर में उनकी शादी हुई थी इसलिये ब्यावर को
गुस्सा खाकर उपखण्ड का ईनाम दे डाला। यह तो सुखाड़ियाजी ही जाने उन्होंने ना
मालूम ऐसा क्यों किया? बार बार यह सवाल आज भी लेखक के जेहन में धूम रहा है।
अगर व्यासजी से अदावट थीं तो ब्यावर को क्यों बर्बाद किया? ब्यावर ने तो
आपकी शादी कर आपका भला ही किया था जिसको आपने ऐसा ईनाम दिया। ब्यावर ने तो
आपको उपकृत किया जिसका आपको अहसान मानना चाहिए कि आपका प्रेम विवाह कराया।
11.11.2024
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इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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