E-mail : vasudeomangal@gmail.com 

अंग्रेजी राज में ब्यावर की परवान चढ़ने की 

व राजस्थान में मिलाए जाने के बाद पराभव की कहानी

लेखक - वासुदेव मंगल

 

(1)  अंग्रेजी राज में ब्यावर मेरवाडा के परवान चढ़ने की कहानीः- 

ब्यावर को कर्नल चाल्र्स जॉर्ज डिक्सन ने सैनिक छावनी को बदलकर सिविल कॉलोनी के रूप में बसाया। ऐसा करके उन्होंने यहां के पर्वतीय क्षेत्र के मेर जाति के नागरिकों को व्यापार के जरिए समाज की मुख्यधारा से जोड़ा।  ब्यावर के साथ ही डिक्शन ने मेरवाड़ा स्टेट की स्थापना भी कर दी थी।  ब्यावर में नागरिक बस्ती की स्थापना एक किलेबंदी के रूप में की जहां पर चारों दिशाओं में चार दरवाजे परकोटे से जोड़ते हुए क्रोस की आकृति पर बनाए।  डिक्शन ने ग्रामीण नागरिकों को ऊन और कपास के व्यापार के लिए प्रोत्साहित किया। ब्यावर शहर को  ऊन और कपास की मंडी बनाई। ग्रामीण अपनी जोत ऊन और कपास को ब्यावर के मार्केट में लाकर बेचने लगे। देखते देखते शीघ्र ही ब्यावर भारतवर्ष में ऊन और कपास की राष्ट्रीय स्तर की मंडी बन गई। 

व्यापार में ब्यावर की ख्याति अंतरराष्ट्रीय स्तर की हो गई।  क्योंकि ऊन  और रुई भारत से बाहर ब्रिटेन के लंकाशायर, यार्कशायर और मैनचेस्टर आदि शहरों को जाने लगी, इसलिए ब्यावर राजपूताना का मैनचेस्टर कहलाने लगा।  कई विलायती दफ्तर ब्यावर में खुल गए।

 इस प्रकार सन 1836 ईस्वी में स्थापित किया गया मेरवाड़ा स्टेट और ब्यावर शहर व्यापार और उद्योग में भारतवर्ष में अग्रणी शहर और क्षेत्र बन गया। 

सन 1876 ईस्वी में ब्यावर में रेल्वे ने यात्री और मालगाड़ी आरंभ कर दी। अतः माल का लदान ब्यावर रेलवे स्टेशन के माल गोदाम से 1876 ईस्वी में होने लगा और व्यापार के सिलसिले में व्यापारी ब्यावर आने जाने लगे। साथ ही इसी समय रेल के साथ साथ संचार के साधन भी शुरु हुए।  समाचारों और संवाद का आदान प्रदान तार और टेलीफोन के जरिए होने लगा। 

इस प्रकार सन 1836 से लेकर 1955 तक लगभग 120 साल ब्यावर के व्यापार और उद्योग के परवान चढ़ने का समय था।

 चूंकि ब्यावर में मेरवाड़ा और अजमेर राज्य अंग्रेजी राज्य रियासत थी। इसलिए द्रुत गति से व्यापार और उद्योग में उन्नति की। मेरवाड़ा में 7 तहसीलें थी। ब्यावर, मसूदा, विजयनगर, बदनौर, टॉडगढ़, भीम और आबू। इन सब तहसील कर मुख्यालय ब्यावर था  चूंकि रेलवे व रोड परिवहन और संचार के साधन सुलभ थे।  इसलिए यात्रियों को ब्यावर आने जाने में वह माल को लाने में ले जाने में किसी प्रकार की परेशानी नहीं होती।  ब्यावर में उद्योग और व्यापार का वर्चस्व था। यह वर्चस्व पूरे मेरवाड़ा राज्य में कायम था  क्योंकि मेरवाड़ा ऊनऔर कपास का उत्पादन क्षेत्र था।  किसानकामगारव्यापारीसेठ साहूकार, मुनिम गुमास्ता, आडतियां, तुलावटीया, पल्लीदार सभी को रोजगार सुलभ था।  अतः सभी लोग खुशहाल थे।  लोग दिसावर से कमाई करने ब्यावर में आते थे। 

(2) राजस्थान में मिलाए जाने के बाद ब्यावर मेरवाडा क्षेत्र के पराभव की कहानीः- 

1 फरवरी सन 1836 में ब्यावर में मेरवाड़ा राज्य की स्थापना से लेकर 31 अक्टूबर सन् 1956 ईसवी लगभग 121 साल तक ब्यावर मेरवाड़ा का स्वर्णिम काल था। 1 नवंबर सन 1956 ईसवी को ब्यावर मेरवाड़ा को राजस्थान में मिलाए जाने के बाद से लेकर आज तक 61 साल हुए राजस्थान की सरकार ने सभी प्रकार से ब्यावर की रीड कमर तोड़कर रख दी। क्या राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिकव्यापारिक, औद्योगिक, सभी क्षेत्रों में ब्यावर मेरवाड़ा को बर्बाद कर दिया। ऐसा करने से सरकार को क्या मिला यह तो सरकार ही जाने?

लेकिन भारतवर्ष की स्वतंत्रता ब्यावर क्षेत्र के लिए अभी तक अभिशाप बनी हुई है। नहीं जाने क्यों राजस्थान सरकार ब्यावर के साथ ऐसा भेदभाव क्यों बरत रही हैलेखक के विचार से सरकार ब्यावर, राजनीतिक दृष्टि से सोतेला व्यवहार इसलिए कर रही है शायद तुष्टिकरण की नीति के कारण उनकी स्वार्थ सिद्धि हो रही है।

राजस्थान राज्य में ब्यावर मेरवाड़ स्टेट को 1 नवंबर 1956 को जिला बनाया जाना था जिसे जानबूझकर उपखंड का दर्जा देकर इस से 3 तहसीलें छीन ली गई। आबू, भीम, और बदनोर। नतीजन 48 ग्राम पंचायतों के 480 गांव तोड़। इस प्रकार विकास की जगह अभी तक विनाश किया जा रहा है। दूसरा नुकसान 30 मई 2002 ईस्वी में मसूदा को ब्यावर से अलग कर किया जिससे 36 ग्राम पंचायतों के 144 राजस्व गांव ब्यावर उपखंड से तोड़ दिए गए और मात्र 216 राजस्व गांव ही ब्यावर उपखंड में रखे गए। अतः 624  राजस्व गांव मेरवाड़ा राज्य से 30 मई 2002 तक तोड़ दिए गए। 

 यहां तक भी सरकार संतुष्ट नहीं। तीसरा नुकसान सन 2013 ईस्वी में टाटगढ की 7 ग्राम पंचायत के 21 राजस्व गांवों को पुनः ब्यावर उपखंड से अलग कर अभी तक 645 राजस्व गांवों को मेरवाड़ा राज्य ब्यावर से अलग कर कुल 195 दो सौ  राजस्व गांव ब्यावर उपखंड में अभी रखे हुए हैं। लेखक को ऐसा लग रहा है कि सरकार ब्यावर के पूरा पलीता लगाकर इसको मात्र उपखंड से तहसील मुख्यालय बनाने पर तुली हुई है।  शायद ब्यावर अपवाद है। दुधारू गाय है। सोने का अंडा देने वाली मुर्गी हैं इसलिए नौकरशाहजनप्रतिनिधि व सभी माफियाओं के गठजोड़ द्वारा पिछले 61 साल से ब्यावर का उत्तरोत्तर राजनीतिक शोषण किया जा रहा है क्योंकि ब्यावर की जल, जंगल और जमीन स्वतंत्र है अंग्रेजों के भारत से जाने के बाद जिसे सरकार चाहे जब इसका उपभोग और उपयोग अपने और अपने चहतों के लिए कर रही है। मिल बांट कर खाने की प्रवति अपनाए हुए हैं। जिला होता तो सभी सरकारी कार्यालय कार्यरत रहते। ऐसा विकास तो शायद ही दुनिया में कहीं हुआ होगा जैसा विनाश ब्यावर का हमारे रहनुमा पिछले 61 साल से कर रहे है। धन्य हो अत्याचार, अन्याय और भ्रष्टाचार। क्या होगा मेरे ब्यावर का भविष्य, के गर्त में है इसका उत्तर।

समाधान:- 

राजस्थान राज्य की 15 वीं सरकार का आखिरी बजट है।  देर से आए दुरुस्त आए।  अभी भी वसुंधरा सरकार के लिए वक्त है।  इस आने वाले बजट में महारानी के लिए ब्यावर को जिला घोषित कर इतिहास में अमर होने का शुभ अवसर है। हाथ से नहीं जाने दे। ऐसा मौका फिर कभी ऐसा मौका नहीं आएग। तो अब की बार महारानी को ब्यावर को जिला घोषित कर देना ही चाहिये। 

वर्तमान में जेतारण के सुरेंद्र जी गोयल जो राज्य सरकार में मंत्री भी हैं ने कहा है कि ब्यावर को जिला घोषित किए जाने में जैतारण और रायपुर के निवासी भी इच्छुक है क्योंकि रायपुर ब्यावर से मात्र 37 मील की दूरी पर है और जेतारण 45 मिल। यह दोनों इलाके रोजमर्रा के काम के लिए ब्यावर से जुड़े हुए है। रायपुर जेतारण के लोग ब्यावर को जिला बनाए जाने के प्रबल इच्छुक हैं और वह भी पैरवी करते है।

अगर ब्यावर जिला घोषित किया जाता है तो सरकार को कोई परेशानी नहीं होगी।  रायपुर, जेतारण, टॉडगढ़, ब्यावर, मसूदा, विजयनगर, बदनोर और भीम लगभग 6 उपखंण्ड, 8 तहसीलबारह तेरह थाने, आंठ नौ लाख जनसंख्यालगभग इतना ही पशुधन और लगभग 600 राजस्व गांव लगभग 170-175 ग्राम पंचायतें, और 5 पंचायत समितियां ब्यावर के प्रस्तावित जिले में सम्मलित की जा सकेगी। पालीभीलवाड़ाऔर राजसमंद जिलों  को किसी तरह का नुकसान नहीं होगा। 

 

आलेख - वासुदेव मंगल

 

E mail : praveemangal2012@gmail.com 

Copyright 2002 beawarhistory.com All Rights Reserved