चुनाव में काले धन का उपयोग

रचनाकारः वासुदेव मंगल
 
चुनाव में काले धन का बहुत अधिक मात्रा में उपयोग होता है। जो अनाप-शनाप रूपया पानी की तरह चुनाव अभियान के दौरान बहाया जाता है वह वास्तव में काला धन ही होता है। मतदाता इस बात से स्पष्ट सहज ही अनुमान लगा सकता है कि उसका प्रत्यासी चुनाव खर्च की सीमा का उल्लघन कर रहा है। इस बात से इन्‍कार नहीं किया जा सकता कि चुनाव अभियान में राजनैतिक पार्टियां और उम्मीदवार जितना जायज धन खर्च करते हैं उससे कई गुना ज्यादा नाजायज धन खर्च होता है।
 
कालेधन का कारोबार कितना गहरा है और इसकी जडें देश और विदेश में कितनी गहरी है, इसका अन्दाज लगाए बिना और एक साथ कई सरकारी एजेंसियों को शमिल किये बिना, राजनीति में काले धन के दखल को रोकना सम्भव नहीं है। हवाला से लेकर स्थानीय उद्योगपतियों और सट्टेबाजों से लेकर बेंचर कैपीटल (पूजी) से कारोबार करने वाले उद्यमियों तक से इसके तार जुडे़ हुऐ है। हवाला के जरिये राजनेताओं का काला धन देश से बाहर जाता है और जरूरत पड़ने पर उसी रूट (मार्ग) से वापस आता है इसलिये उस पर निगरानी के लिये खुफिया तंत्र का प्रभावी इस्तेमाल जरूरी है। हवाई अड्डो, रेल्वे स्टेशनो, बस अड्डों के साथ साथ यात्रा के दूसरे साधनों यहा तक की माल ढुलाई करने वाले वाहनों की भी निगरानी होनी चाहिए। सीमावर्ती इलाकों, जहा से तस्करी होती है, और हथियार व नशीली दवाएं सीमा के इस पार, उस पार की जाती है वहां निगरानी की और अधिक पुख्ता व्यवस्था की जानी चाहिए।
 
उम्मीदवारों के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष खर्च पर गहरी नजर भी इसकी एक जरूरी शर्त है। अगर कोई राजनेता अपने प्रचार खर्च को अपने समर्थक या शुभचिन्तक के मत्थे मंढता है तो नेता के साथ साथ उसके समर्थक-शुभ चिन्तक के स्त्रोतों की भी कड़ी जाच होनी चाहिये।
 
जाहिर है, इतने बडे़ पैमाने पर जाच व निगरानी की व्यवस्था मुश्किल है और आम लोगों को भी इससे परेशानी हो सकती है। लेकिन लोकतन्त्र की शुचिता (मार्यदा) सुरक्षित रखने और सही मायने में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए ऐसा करना जरूरी है। चुनाव आयोग द्वारा हजारों उम्मीदवारों को चुनाव खर्च दाखिल न करने पर अयोग्य घोषित करना व हवाई अड्डों पर दस लाख से ज्यादा बडी रकम लाने व ले जाने वालों से पूछताछ करने हेतु हवाई अड्डो की सुरक्षा में तैनात औद्योगिक सुरक्षा बल के जवानों को जरूरी निर्देश देना सराहनीय कदम है।
 
 

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